चंबल की रानी फूलन देवी. कभी चंबल उसके नाम से जाना जाता था. बीहड़ में उसकी दहशत थी. फिर किस्मत ने ऐसी पलटी खाई कि चंबल से निकल कर वह जेल पहुंची. जेल से सीधे संसद भवन. एक डाकू सांसद बन गई. मगर किस्मत फिर पलटी खाती है. 25 जुलाई 2001 को संसद भवन से घर लौटते हुए ठीक उसके सरकारी घर के बाहर उसे गोली मार दी गई.
फूलन देवी ने फांसी न दिए जाने की शर्त पर साल 1983 में सरेंडर किया था. 1994 में फिल्म 'बैंडिट क्वीन' की शक्ल में फूलन की रॉबिनहुड छवि रुपहले पर्दे पर उतरी थी. समाजवादी पार्टी ने फूलन के नाम को भुनाया और मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव लड़वाया. चुनाव जीतकर फूलन देवी संसद भवन जा पहुंची. लेकिन चंबल की परछाई ने फूलन का पीछा नहीं छोड़ा.
25 जुलाई 2001 को संसद का सत्र चल रहा था. दोपहर के भोजन के लिए संसद से फूलन 44 अशोका रोड के अपने सरकारी बंगले पर लौटीं. बंगले के बाहर सीआईपी 907 नंबर की हरे रंग की एक मारुति कार पहले से खड़ी थी. जैसे ही फूलन घर की दहलीज पर पहुंची. तीन नकाबपोश अचानक कार से बाहर आए. फूलन पर ताबड़तोड़ पांच गोलियां दाग दी.
एक गोली फूलन के माथे पर जा लगी. गोलीबारी में फूलन देवी का एक गार्ड भी घायल हो गया. इसके बाद हत्यारे उसी कार में बैठकर फरार हो गए. यह एक राजनीतिक हत्या थी या कुछ और पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लग पाया. इसके बाद सामने आया शेर सिंह राणा का नाम, जिसने कत्ल के बाद खुद दुनिया के सामने कहा, 'हां, मैंने फूलन को मारा है.'
चंबल की रानी फूलन देवी की दास्तान
- चंबल के बीहड़ों से संसद तक पहुंची फूलन देवी का जन्म साल 1963 में 10 अगस्त को हुआ था.
- 18 साल की उम्र में उनके साथ गांव के ही ठाकुर समाज के कई लोगों ने गैंगरेप किया. उनके बेहोश होने तक दरिंदगी की गई.
- गैंगरेप की वारदात के बाद इसका बदला लेने के लिए उन्होंने 22 ठाकुरों की हत्या कर दी, जो बहमाई हत्याकांड के नाम से जाना जाता है.
- सरेंडर करने वक्त 48 मामले दर्ज थे उन पर, जिनमें से 30 डकैती और बाकी अपहरण और लूट के थे.
- 11 साल बिना सुनवाई के जेल में रही, लेकिन बाद में यूपी सरकार ने सारे आरोप वापस ले लिए.
- साल 1996 में यूपी के मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं.
- साल 1994 में शेखर कपूर ने उनके जीवन पर आधारित बैंडिट क्वीन फिल्म बनाई. जो काफी विवादों और चर्चा में रही.