छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार की महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना में जमकर धांधली उजागर हुई है. गरीबों को गंभीर बीमारियों का मुफ्त इलाज मुहैया कराने के उद्देश्य से शुरू की गई इस योजना का लाभ दरअसल मरीजों की बजाय अस्पताल और डॉक्टर उठा रहे हैं.
इसके अलावा हेल्थ कार्ड धारकों से मिलीभगत कर सरकारी खजाने को भी जमकर चूना लगाया जा रहा है. इन सबके बीच सरकारी अस्पतालों में दलालों और एजेंटों की भी बन आई है. ये दलाल हेल्थ कार्ड धारक स्वस्थ व्यक्ति को मरीज के तौर पर अस्पताल में भर्ती दिखा देते हैं और कार्ड स्क्रैच कर मोटी रकम निकाल लेते हैं. इस रकम का आधा हिस्सा अस्पताल और दलाल जबकि शेष रकम हेल्थ कार्ड धारक के बीच बांट दिया जाता है.
हेल्थ कार्ड धारक स्वस्थ व्यक्ति भी दलालों और अस्पताल एजेंटों के जरिए निर्धारित अवधि के भीतर अपना स्मार्ट कार्ड स्क्रैच कर नकद रकम प्राप्त कर रहे हैं. बगैर इलाज किए कुछ अस्पताल आधी रकम उस शख्स को नकद दे रहे हैं, तो कुछ अस्पताल मात्र 10,000 रुपये वसूल कर शेष 40 हजार की रकम लौटा दे रहे हैं.
पूरी तरह स्वस्थ कार्ड धारकों को भी मरीज बताकर उनका क्लेम तैयार किया जा रहा है. स्वस्थ व्यक्ति अस्पताल के दस्तावेजों में अपने हस्ताक्षर और अंगूठा लगाकर खुद को मरीज साबित करता है. फिर अस्पताल के कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत उसके इलाज संबंधी फर्जी दस्तावेज तैयार कर बीमा क्लेम का लाभ उठा रहे हैं. इस तरह के फर्जी क्लेम से स्वास्थ्य बीमा योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है.
बीमारी छोटी लेकिन इलाज महंगा
स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत अधिक से अधिक रकम उड़ाने के चक्कर में अस्पताल मनमाना इलाज कर रहे हैं, बल्कि कई मरीजों से स्मार्ट कार्ड की रकम वसूलने के लिए अनावश्यक और जटिल व महंगी प्रक्रियाओं के जरिए इलाज किया जा रहा है. हाल ही में 'पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क' द्वारा किए गए सर्वे ने पूरी योजना की पोल खोल दी है.
राज्य के अलग अलग जिलों में किए गए सर्वे के बाद यह खुलासा हुआ. सर्वे में पता चला है कि जिन लोगों के पास स्मार्ट कार्ड था, उन्हें सामान्य बीमारी के लिए भी औसतन 7530 रुपए खर्च करने पड़े.
सीमा से अधिक पैसों की हो रही वसूली
रायपुर के स्लम इलाकों में किए गए सर्वे से पता चला है कि 96 फीसदी स्मार्ट कार्ड धारकों को अपने इलाज के लिए 50 हजार रुपये से अधिक ही खर्च करना पड़ा है. वहीं सरगुजा और बस्तर जैसे इलाकों में इस योजना के तहत केवल 16 फीसदी क्लेम सामने आए.
रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग जैसे बड़े शहरों में बने निजी हॉस्पिटल्स का क्लेम का आंकड़ा 63 फीसदी से ऊपर रहा. पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क ने अपने सर्वे का हवाला देते हुए कहा है कि खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके बैगा जनजाति में सिर्फ 13 फीसदी कार्ड धारकों ने इस योजना का लाभ उठाया.
इस सर्वे के मुताबिक हेल्थ कार्ड वाले मरीजों के इलाज के लिए अस्पताल प्रबंधन जानबूझकर जटिल प्रक्रिया के दौर से मरीजों को गुजारता है, ताकि स्मार्ट कार्ड की अधिकतम रकम क्लेम की जा सके.
दांत, आंख के मरीज कर रहे सर्वाधिक क्लेम
यूं तो कई बिमारियों के फर्जी क्लेम हो रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा मामले दांत की बीमारियों से जुड़े हैं. दांत के डॉक्टरों और अस्पतालों ने स्वास्थ्य बीमा योजना का सर्वाधिक अनुचित लाभ उठाया है.
सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में 50 फीसदी से ज्यादा क्लेम दांत और आंख की बीमारियों से जुड़े थे, जबकि राज्य के शहरी इलाकों से ग्रामीण अंचलों तक सरकार ने सैकड़ों आई कैंप लगवाए. यह बात सामने आई कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर ब्लॉक और जिला अस्पतालों में दांत और आंख के इलाज का अच्छा बंदोबस्त है.
एटीएम की तरह इस्तेमाल हो रहा हेल्थ कार्ड
छत्तीसगढ़ के कई सामाजिक संगठनों ने स्मार्ट हेल्थ कार्ड घोटाले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग की है. इन संगठनों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के सैकड़ों निजी अस्पताल स्मार्ट कार्ड का लाभ उठाने के लिए स्वास्थ्य विभाग का चक्कर काट रहे हैं.
ज्ञात हो कि यहां उन्हीं अस्पतालों को इस योजना से जोड़ा जा रहा है जो मोटा कमीशन देने को राजी हो रहे हैं. लिहाजा यह योजना एक तरह से डिस्काउंट स्किम और एटीएम कार्ड की तरह उपयोग की जा रही है.
हेल्थ कार्ड के चलते और खराब हुईं स्वास्थ्य सेवाएं
छत्तीसगढ़ सरकार ने 2009 में गरीबों को मुफ्त इलाज मुहैया कराने के लिए इस योजना की शुरुआत की थी. शुरुआत में हेल्थ कार्ड धारकों को 30 हजार रुपये तक मुफ्त इलाज दिया जा रहा था. बाद में सरकार ने बीमा की रकम 30 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी.
जैसे ही यह रकम बढ़ी, वैसे ही यह योजना निजी क्षेत्र के कई अस्पतालों के लिए आय का जरिया बन गई. पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क की स्टेट कन्वेनर सुलक्षणा नंदी के मुताबिक, बीमा योजना की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं का हाल छत्तीसगढ़ में और भी ख़राब हुआ है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना को स्मार्ट कार्ड देकर कैश-लैस बनाया गया था. लेकिन यह योजना अब डिस्काउंट स्कीम बन गई है. उधर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के स्टेट नोडल अधिकारी विजेंद्र कटारे का कहना है कि संदिग्ध अस्पतालों के क्लेम का ऑडिट कराया जा रहा है. फिलहाल छत्तीसगढ़ में यह योजना मरीजों की बजाय निजी अस्पतालों के लिए वरदान साबित हो रही है.