इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि रेप की वजह से पैदा हुई संतान को उसके जैविक पिता की जायदाद में वारिसाना हक होगा. न्यायमूर्ति शबीहुल हसनैन और डीके उपाध्याय की पीठ ने कहा कि रेप से जन्मी संतान अभियुक्त की नाजायज औलाद मानी जाएगी.
कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसे बच्चे को किसी और व्यक्ति या दंपति द्वारा बाकायदा गोद ले लिया जाता है, तो उसका अपने असली पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा. उनका कहना था कि उत्तराधिकार का संबंधित संतान की जन्म की परिस्थितियों से कोई संबंध नहीं होता है.
खंडपीठ ने कहा कि असल पिता की संपत्ति पर वारिसाना हक का मामला जटिल पर्सनल लॉ से जुड़ा है. यह कानून या परंपरा से संचालित होता है. न्यायपालिका के लिए रेप के बाद पैदा हुई औलाद के लिए वारिसाना हक से संबंधित कोई सिद्धांत या नियम तय करना संभव नहीं होगा.
वेलफेयर सोसाइटी को बच्चे की जिम्मेदारी
कोर्ट ने यह आदेश एक नाबालिग रेप पीड़िता के बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी चाइल्ड वेलफेयर सोसाइटी को सौंपते हुए दिया. याची ने उसके बच्चे को गोद देने की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश देने का आग्रह किया था. नवजात बच्चे का पिता उसे अपने साथ रखने को तैयार नहीं है.
मुफ्त शिक्षा, मुआवजा और नौकरी का आदेश
कोर्ट ने राज्य सरकार को रेप पीड़िता को स्नातक तक मुफ्त शिक्षा और 10 लाख रुपये की मुआवजा राशि देने के आदेश दिए हैं. इसको किसी नेशनल बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट किया जाएगा. लड़की 21 साल की होने पर इसकी हकदार होगी. उसके बाद उसे सरकारी नौकरी देने का भी निर्देश दिया गया है.