दिल्ली की एक अदालत ने, 16 दिसम्बर की रात राजधानी में हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले की सुनवाई बंद कमरे में करने का सोमवार को आदेश दिया.
अदालत ने यह आदेश अदालत कक्ष में पैदा हुए अभूतपूर्व हालात के बाद दिया. अदालत ने मीडिया को भी न्यायालय की अनुमति के बगैर इस मामले से सम्बंधित कोई खबर प्रकाशित करने से प्रतिबंधित कर दिया.
इससे पहले महानगरीय दंडाधिकारी नम्रता अग्रवाल ने कहा कि वह तब तक मामले की सुनवाई शुरू नहीं करेंगी, जबतक भीड़ नहीं छंट जाती. उन्होंने कहा कि सुनवाई कक्ष में आरोपियों को पेश करने के लिए जगह नहीं है. यह कहते हुए वह अपने कक्ष में चली गईं. सुनवाई कक्ष में सुरक्षा व्यवस्था के लिए 40 सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया था.
इस बीच, आरोपियों का मुकदमा लड़ने को लेकर विवाद पैदा हो गया है. कुछ वकीलों ने उनका मुकदमा लड़ने की इच्छा जताई है, लेकिन अन्य ने ऐसा करने से मना कर दिया है.
एक अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि आरोपी के परिवार ने उनसे सम्पर्क किया और मुकदमा लड़ने का आग्रह किया. उन्होंने इसके लिए आरोपियों से मुलाकात की अनुमति मांगी, ताकि वह वकालतनामा पर उनके हस्ताक्षर ले सकें लेकिन न्यायाधीश ने इसकी अनुमति नहीं दी और वकील को इसके लिए तिहाड़ जेल जाने के लिए कहा.
मीडिया की ओर से भी दो वकील अदालत में पेश हुए और उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस ने मीडिया को अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग न करने के लिए कहा है, जबकि पुलिस के पास ऐसे निर्देश देने का अधिकार नहीं है. इस पर अदालत ने कहा कि वह इस मामले में तब तक कोई निर्देश नहीं जारी करेगी, जब तक कि अभियोजन पक्ष का आवेदन नहीं मिल जाता. इसका अर्थ यह हुआ कि मीडिया अदालती कार्यवाही की रिपोर्ट प्रकाशित कर सकती है.