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ये है दिल्ली में आने वाले अवैध हथियारों की इनसाइड स्टोरी

हाल के दिनों में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच जैसी इकाइयों ने ऐसे कई गन रैकेट्स का पर्दाफ़ाश किया है, जो हाई क्वालिटी के सॉफिस्टिकेडेट हथियारों का धंधा करते थे. हकीकत तो ये है कि पहली बार इन हथियारों की क्वालिटी को देख कर पुलिसवाले भी चौंक गए थे. पुलिस की मानें तो ये अस्लहे किसी भी मायने में फैक्ट्रियों में बने प्रॉपर हथियारों से कम नहीं हैं, बस कमी है, तो सरकारी फैक्ट्री की मुहर की.

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अवैध हथियारों का गढ़ बन गया है दिल्ली
अवैध हथियारों का गढ़ बन गया है दिल्ली

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हाल के दिनों में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच जैसी इकाइयों ने ऐसे कई गन रैकेट्स का पर्दाफ़ाश किया है, जो हाई क्वालिटी के सॉफिस्टिकेडेट हथियारों का धंधा करते थे. हकीकत तो ये है कि पहली बार इन हथियारों की क्वालिटी को देख कर पुलिसवाले भी चौंक गए थे. पुलिस की मानें तो ये अस्लहे किसी भी मायने में फैक्ट्रियों में बने प्रॉपर हथियारों से कम नहीं हैं, बस कमी है, तो सरकारी फैक्ट्री की मुहर की.

एक्सपर्ट भी देखकर खा जाएं धोखा
दिल्ली पुलिस के कब्जे में आए अवैध हथियारों को देखकर पहली नज़र में कोई एक्सपर्ट भी धोखा खा जाए. मुमकिन है कि उसे भी इन हथियारों के फैक्ट्री मेड होने की गलतफ़हमी हो जाए. इन नाजायज़ अस्लहों को ना तो किसी गन फैक्ट्री से चुराया जाता है और ना ही इन्हें किसी बड़ी फैक्ट्री में बनाया गया है बल्कि हथियारों के तस्करों ने इन्हें जुर्म की दुनिया में खपाने के लिए अपने छोटे-मोटे अड्डों पर ही तैयार किया है.

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मशीनगन

मुंहमांगी कीमत पर बिकते हैं हथियार
हथियारों की शानदार क्वालिटी ये साबित करती है कि बदलते वक्त के साथ ये धंधेबाज़ ना सिर्फ़ और पेशेवर हो गए हैं, बल्कि अच्छी क्वालिटी का माल देकर ग्राहकों से भी मुंहमांगी क़ीमत वसूल करने लगे हैं. धंधेबाज़ों के पास .32 की पिस्टल, 9 एमएम की पिस्टल और .30 बोर की पिस्टल जहां 20 से 25 हज़ार रुपए में मिल जाती है, वहीं .32 बोर की रिवॉल्वर 18 से 25 हज़ार रुपए में और 12 बोर की गन 40 से 50 हज़ार रुपए में मिल जाती है.

मध्य प्रदेश से भी आ रहे हैं हथियार
पुलिस सूत्रों की मानें तो कुछ सरकारी गन फैक्ट्रियों के बंद होने के बाद वहां से बेरोज़गार हुए लोगों ने ही अब अवैध हथियार बनाने की शुरुआत कर दी है. यही वजह है कि अब बिहार के मुंगेर की जगह मध्य प्रदेश के कई ठिकानों से ऐसे अस्लहों की आमद शुरू हो गई है. लिहाज़ा इस धंधे पर रोक लगाने के लिए सिर्फ़ गिरफ्तारी नहीं, बल्कि अस्लहों के पुराने कारीगरों का पुनर्वास भी ज़रूरी हो गया है.

गैंगस्टर्स में बढ़ा ऐसे हथियारों का चलन
ये धंधा बेशक ग़ैरकानूनी हो, लेकिन किसी भी दूसरे धंधे के तरह नाजायज़ अस्लहों का ये कारोबार भी मांग और पूर्ति की गणित पर ही टिका है. जानकारों की मानें तो हाल के दिनों में दिल्ली और आस-पास के गैंगस्टरों में ऐसे सॉफिस्टिकेटेड किस्म के हथियारों के दीवानगी काफ़ी बढ़ी है और इसी वजह से इन धंधेबाज़ों को भी अच्छा-ख़ासा मुनाफ़ा होने लगा है. हालत ये हो गई है कि अब बिचौलियों ने बाक़ायदा हथियार बनाने वालों को वर्क ऑर्डर तक देना शुरू कर दिया है. अवैध हथियारों का धंधा यानी लागत कम और मुनाफा ज्यादा है. अंडरवर्ल्ड की दुनिया से जुड़े इस काले धंधे में लगे गिरोहों की चांदी है.

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पिस्टल

तस्कर सीधे गैंग को बेचते हैं हथियार
विशेषकर आर्म्स डीलरों की मिलीभगत से यह काला धंधा फल-फूल रहा है. अवैध हथियार और मनमानी कीमत. फिर भी असलहों के बाजार में खरीदारों की लाइन लगी है. अवैध हथियारों की तस्करी में लगे गिरोह ऐसे ही किसी के हाथ में हथियार नहीं बेच देते. बाकायदा इनके एजेंट होते हैं. जो दिल्ली के अपराधियों को हथियारों की सप्लाई करते हैं, जब जैसी जरूरत होती है, जिस तरह की जरूरत होती है, वैसे ही हथियारों की तस्करी की जाती है. सीधे गैंग को हथियार बेचने में तस्करों को पकड़े जाने का खतरा कम रहता है.

अवैध हथियारों का गढ़ बन रही है दिल्ली
हाल के दिनों में दिल्ली में जिस तेज़ी से हथियार और हथियारों के सौदागार पकड़े गए हैं, उसने साबित कर दिया है कि दिल्ली अब खतरनाक तस्करों के लिए एक पसंदीदा ट्रांज़िट रूट बन चुका है. लेकिन सवाल ये है कि आख़िर देश की राजधानी दिल्ली में ऐसी कौन सी बात है, जो हथियारों के तस्कर पुलिस की तमाम चौकसी के बावजूद यहीं से होकर अपना माल खपाने का रास्ता ढूंढ़ते हैं? तो जानकारों के पास इस सवाल का भी जवाब मौजूद है. दरअसल, दिल्ली भौगोलिक तौर पर एक ऐसा राज्य है, जो उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों से घिरा तो है ही साथ ही राजस्थान, उत्तराखंड जैसे राज्य भी यहां से ज़्यादा दूर नहीं हैं. घनी आबादी और कई तरह के मोड ऑफ़ ट्रांसपोर्ट होने की वजह से तस्कर आसानी से यहां अपना माल खपाने की फिराक में रहते हैं. इन्हीं बातों ने दिल्ली को एक बड़े आर्म्स ट्रांज़िट रूट में तब्दील कर दिया है. दिल्ली पुलिस जब भी किसी गिरोह को पकड़ती है, तो उससे बरामद हथियारों की प्रदर्शनी लगाती है. लेकिन जितने हथियार पुलिस के हाथ लगते हैं, उससे कहीं ज्यादा हथियार अपराधियों तक पहुंच जाते हैं.

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कारतूस

चंद सालों में पकड़े गए लाखों के हथियार
देश की राजधानी अब हथियारों के सौदागरों की मनपसंद जगह बनती जा रही है. हाल के चंद सालों में दिल्ली पुलिस ने यहां से जितने धंधेबाज़ों और हथियारों की खेप बरामद की है, वो आंकड़ा अपने आप में दिल्ली का नया सच बयान करता है. ज़्यादा पीछे जाने की ज़रूरत नहीं है. साल 2011 में दिल्ली पुलिस ने 561 गैर कानूनी हथियारों के साथ तकरीबन 150 लोगों को गिरफ्तार किया था, 2012 में 562 हथियारों के साथ कुल 1190 तस्कर धर दबोचे गए. जबकि साल 2013 में पुलिस ने 309 अवैध पिस्टल्स के साथ कुल छह गैंग्स का पर्दाफ़ाश किया.

मध्यप्रदेश के हथियार बने चुनौती
आंकड़े तो पूरी दिल्ली पुलिस के हैं, पिछले दो सालों से नाजायज़ अस्लहों के खिलाफ़ अभियान चला रही दिल्ली पुलिस की इकाई स्पेशल सेल ने जहां अकेले पिछले साल 196 अस्लहों के साथ 33 बदमाशों को गिरफ्तार किया था. लेकिन आकड़ों में किसी तरह की कमी नहीं आ रही है. पुलिस की मानें तो पहले दिल्ली में लूट और कत्ल की ज्यादातर वारदातों में मुंगेर से लाए गए हथियारों का ही इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब मुंगेर की जगह मध्यप्रदेश के हथियार ने ले ली है. वहां के तस्करों ने नए सिरे से पुलिस की पेशानी पर बल डाल दिए हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश से आने वाले ये हथियार बिहार के मुंगेर बने हथियारों के मुकाबले क्वालिटी में बहुत ही उम्दा और खूबसूरत किस्म के हैं और इन हथियारों की यही ख़ासियत बदमाशों को लुभाने लगी है. नाजायज़ अस्लहों के धंधे का बदलता ट्रेंड पुलिस के लिए एक बड़ी मुसीबत तो है ही, मगर हर रोज़ इस धंधे में आ रहे नए खिलाड़ी पुलिस की लिए सरदर्द साबितो हो रहे हैं.

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