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दिल्ली गैंगरेपः पीड़ित छात्रा के दोस्त ने सुनाई 'उस' रात की खौफनाक कहानी

दिल्ली की सड़कों पर 16 दिसंबर की रात खौफनाक मंजर का एकमात्र गवाह और पीड़ित छात्रा के दोस्त ने बताया कि उनको मरा हुआ समझकर छह आरोपियों ने उन्हें बस से फेंक दिया था. साथ ही उन्हें बस से कुचलने की भी कोशिश की गई थी.

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दिल्ली की सड़कों पर 16 दिसंबर की रात खौफनाक मंजर का एकमात्र गवाह और पीड़ित छात्रा के दोस्त ने बताया कि उनको मरा हुआ समझकर छह आरोपियों ने उन्हें बस से फेंक दिया था. साथ ही उन्हें बस से कुचलने की भी कोशिश की गई थी.

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पीड़ित छात्रा की 29 दिसंबर को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में मृत्यु हो गई थी. एक न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान पीड़ित छात्रा के दोस्त ने बताया कि 16 दिसंबर की रात हैवानियत वाली घटना के बाद भी उनकी दोस्त जीना चाहती थी.

मदद के लिए कोई नहीं आया आगे
उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया. यहां तक कि पुलिस की तीन-तीन पीसीआर वैन आई और पुलिस थानों को लेकर उलझी रही. उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक का समय लगा दिया गया.

उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. गैंगरेप के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं. उन्होंने कहा, ‘इस भयावह घटना पर मीडिया में बहुत सारी चीजें आई हैं और लोग इसके बारे में अलग-अलग बातें कर रहे हैं. मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि हमारे साथ उस रात क्या हुआ. मैं बताना चाहता हूं कि मैंने और मेरी दोस्त ने उस रात किन-किन मुश्किलों का सामना किया.’

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उम्‍मीद है लोगों को मिलेगा सबक
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस घटना से अन्य लोग सबक सीखेंगे और दूसरे का जीवन बचाने के लिए आगे आएंगे. उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने 16 दिसंबर की रात उन्हें बस में चढ़ने के लिए प्रलोभन दिया.

पीड़ित लड़की के दोस्त ने बताया, ‘बस में काले शीशे और पर्दे लगे थे. बस में सवार लोग पहले भी शायद अपराध में शामिल थे. ऐसा लगा कि बस में सवार आरोपी पहले से तैयार थे. ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा बस में सवार अन्य सभी यात्री की तरह बर्ताव कर रहे थे. हमने उन्हें किराए के रूप में 20 रुपए भी दिए. इसके बाद वे मेरी दोस्त पर कमेंट करने लगे. इसके बाद हमारी उनसे नोकझोंक शुरू हो गई.’

उन्होंने जी न्‍यूज को बताया, ‘मैंने उनमें से तीन को पीटा लेकिन तभी बाकी आरोपी लोहे की रॉड लेकर आए और मुझ पर वार किया. मेरे बेहोश होने से पहले वे मेरी दोस्त को खींच कर ले गए.’ पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘हमें बस से फेंकने से पहले अपराध के साक्ष्य मिटाने के लिए उन्होंने हमारे मोबाइल छीने और कपड़े फाड़ दिए.’

पीड़ित छात्रा के दोस्त ने बताया, ‘जहां से उन्होंने हमें बस में चढ़ाया, उसके बाद करीब ढाई घंटे तक वे हमें इधर-उधर घुमाते रहे. हम चिल्ला रहे थे. हम चाह रहे थे कि बाहर लोगों तक हमारी आवाज पहुंचे लेकिन उन्होंने बस के अंदर लाइट बंद कर दी थी. यहां तक कि मेरी दोस्त उनके साथ लड़ी. उसने मुझे बचाने की कोशिश की. मेरी दोस्त ने 100 नंबर डॉयल कर पुलिस को बुलाने की कोशिश की लेकिन आरोपियों ने उसका मोबाइल छीन लिया.’

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आरोपियों ने की कुचलकर मारने की कोशिश
उन्होंने कहा, ‘बस से फेंकने के बाद उन्होंने हमें बस से कुचलकर मारने की कोशिश की लेकिन समय रहते मैंने अपनी दोस्त को बस के नीचे आने से पहले खींच लिया. हम बिना कपड़ों के थे. हमने वहां से गुजरने वाले लोगों को रोकने की कोशिश की. करीब 25 मिनट तक कई ऑटो, कार और बाइक वाले वहां से अपने वाहन की गति धीमी करते और हमें देखते हुए गुजरे लेकिन कोई भी वहां नहीं रुका. तभी गश्त पर निकला कोई व्यक्ति वहां रुका और उसने पुलिस को सूचित किया.'

देर से पहुंची पुलिस
पीड़िता के दोस्त ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि बस से फेंके जाने के करीब 45 मिनट बाद तक घटनास्थल पर तीन-तीन पीसीआर वैन पहुंचीं लेकिन करीब आधे घंटे तक वे लोग इस बात को लेकर आपस में उलझते रहे कि यह किस थाने का मामला है. अंत में एक पीसीआर वैन में हमने अपनी दोस्त को डाला.

वहां खड़े लोगों में से किसी ने उनकी मदद नहीं की. संभव है लोग ये सोच रहे हों कि उनके हाथ में खून लग जाएगा. दोस्त को वैन में चढ़ाने में पुलिस ने मदद नहीं की क्योंकि उनके शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा था. घटनास्थल से सफदरजंग अस्पताल तक जाने में पीसीआर वैन को दो घंटे से अधिक समय लग गए.

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लोग बने रहे तमाशबीन
दिवंगत लड़की के दोस्त ने बताया कि पुलिस के साथ-साथ किसी ने भी हमें कपड़े नहीं दिए और न ही एम्बुलेंस बुलाई. उन्होंने कहा, ‘वहां खड़े लोग केवल हमें देख रहे थे.’ उन्होंने बताया कि शरीर ढकने के लिए कई बार अनुरोध करने पर किसी ने बेड शीट का एक टुकड़ा दिया.

उन्होंने बताया, ‘वहां खड़े लोगों में से किसी ने हमारी मदद नहीं की. लोग शायद इस बात से भयभीत थे कि यदि वे हमारी मदद करते हैं तो वे इस घटना के गवाह बन जाएंगे और बाद में उन्हें पुलिस और अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे.’

किसी ने कपड़े तक नहीं दिए
उन्होंने बताया, ‘यहां तक कि अस्पताल में हमें इंतजार करना पड़ा और मैंने वहां आते-जाते लोगों से शरीर पर कुछ डालने के लिए कपड़े मांगे. मैंने एक अजनबी से उनका मोबाइल मांगा और अपने रिश्तेदारों को फोन किया. मैंने अपने रिश्तेदारों से बस इतना कहा कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं. मेरे रिश्तेदारों के अस्पताल पहुंचने के बाद ही मेरा इलाज शुरू हो सका.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे सिर पर चोट लगी थी. मैं इस हालत में नहीं था कि चल-फिर सकूं. यहां तक कि दो सप्ताह तक मैं इस योग्य नहीं था कि मैं अपने हाथ हिला सकूं.’

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उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार मुझे अपने पैतृक घर ले जाना चाहता था लेकिन मैंने दिल्ली में रुकने का फैसला किया ताकि मैं पुलिस की मदद कर सकूं. डॉक्टरों की सलाह पर ही मैं अपने घर गया और वहां इलाज कराना शुरू किया.’

उन्होंने कहा, ‘जब मैं अस्पताल में अपनी दोस्त से मिला था तो वह मुस्कुरा रही थीं. वह लिख सकती थीं और चीजों को लेकर आशावान थीं. मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह जीना नहीं चाहती.’

उन्होंने बताया, ‘पीड़िता ने मुझसे कहा था कि यदि मैं वहां नहीं होता तो वह पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाती. मैंने फैसला किया था कि अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाऊंगा.’

पीड़िता के दोस्त ने बताया कि उनकी दोस्त इलाज के खर्च को लेकर चिंतित थी. उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का हौसला बढ़ाए रखने के लिए मुझे उनके पास रहने के लिए कहा गया.’

ऐसी क्रूरता तो कोई जानवर भी नहीं दिखाता
उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने महिला एसडीएम को जब पहली बार बयान दिया तभी मुझे इस बात की जानकारी हुई कि उनके साथ क्या-क्या हुआ. उन आरोपियों ने मेरी दोस्त के साथ जो कुछ किया, उस पर मैं विश्वास नहीं कर सका. यहां तक जानवर भी जब अपना शिकार करते हैं तो वे अपने शिकार से इस तरह की क्रूरता के साथ पेश नहीं आते.’

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दिवंगत लड़की के दोस्त ने कहा, ‘मेरी दोस्त ने यह सब कुछ सहा और उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा कि आरोपियों को फांसी नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें जलाकर मारा जाना चाहिए.’

सही था पीड़‍िता का पहला बयान
उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने एसडीएम को जो पहला बयान दिया वह सही था. मेरी दोस्त ने काफी प्रयास के बाद अपना बयान दिया था. बयान देते समय वह खांस रही थीं और उनके शरीर से रक्तस्राव हो रहा था. बयान देने को लेकर न तो किसी तरह का दबाव था और न ही हस्तक्षेप, लेकिन एसडीएम ने जब कहा कि बयान दर्ज करते समय उन पर दबाव था तो मुझे लगा कि सभी प्रयास व्यर्थ हो गए. महिला एसडीएम का यह कहना कि बयान दबाव में दर्ज किए गए, गलत है.’

पुलिस को जल्‍द उठाने चाहिए जरूरी कदम
यह पूछे जाने पर कि इस तरह की घटना दोबारा से न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए वह क्या सुझाव देना चाहेंगे. इस पर उन्होंने ने कहा, ‘पुलिस को यह हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति को जितनी जल्दी संभव हो अस्पताल पहुंचाया जाए. पीड़ित को भर्ती कराने के लिए पुलिस को सरकारी अस्पताल नहीं ढूढ़ना चाहिए. साथ ही गवाहों को भी परेशान नहीं किया जाना चाहिए.’

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मोमबत्तियां जलाने से नहीं बदलेगी मानसिकता
उन्होंने कहा कि कोई मोमबत्तियां जलाकर किसी की मानसिकता को नहीं बदल सकता. उन्होंने कहा, ‘आपको सड़क पर मदद मांग रहे लोगों की सहायता करनी होगी.’ उन्होंने कहा, ‘विरोध-प्रदर्शन और बदलाव की कवायद केवल मेरी दोस्त के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी होना चाहिए.’

पीड़िता के दोस्त ने कहा कि सरकार द्वारा गठित जस्टिस वर्मा समिति से वह चाहते हैं कि वह महिलाओं की सुरक्षा और बेहतर करने और शिकायतकर्ता के लिए आसान कानून बनाने के लिए उपाय सुझाए.

कानून तो पहले से ही बहुत हैं
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ढेर सारे कानून हैं लेकिन आम जनता पुलिस के पास जाने से डरती है क्योंकि उसे भय है कि पुलिस उसकी प्राथमिकी दर्ज करेगी या नहीं. आप एक मसले के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह फास्ट ट्रैक कोर्ट हर मामले के लिए क्यों नहीं.’

सरकार में से किसी ने संपर्क नहीं किया
पीड़िता के दोस्त ने खुलासा किया, ‘मेरे इलाज के बारे में जानने के लिए सरकार की तरफ से किसी ने मुझसे संपर्क नहीं किया. मैं अपने इलाज का खर्च स्वयं उठा रहा हूं.’ उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का इलाज यदि अच्छे अस्पताल में शुरू किया गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती.’

उन्होंने बताया, ‘पुलिस अपना काम करने का श्रेय क्यों लेना चाहती थी? सभी लोग अगर अपना काम अच्छी तरह करते तो इस मामले में कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं पड़ती.’

अभी लड़नी है लंबी लड़ाई
पीड़िता के दोस्त ने कहा, ‘हमें लम्बी लड़ाई लड़नी है. मेरे परिवार में यदि वकील नहीं होते तो मैं इस मामले में अपनी लड़ाई जारी नहीं रख पाता.’ उन्होंने कहा, ‘मैं चार दिनों तक पुलिस स्टेशन में रहा, जबकि मुझे इसकी जगह अस्पताल में होना चाहिए था. मैंने अपने दोस्तों को बताया कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं.’ उन्होंने कहा, ‘मामले में दिल्ली पुलिस को स्वयं आकलन करना चाहिए कि उसने अच्छा काम किया है अथवा नहीं.’

उन्होंने कहा, ‘अगर आप किसी की मदद कर सकते हैं तो उसकी मदद कीजिए. उस रात किसी एक व्यक्ति ने यदि मेरी मदद की होती तो आपके सामने कुछ और तस्वीर होती. मेट्रो स्टेशन बंद करने और लोगों को अपनी बात कहने से रोकने की कोई जरूरत नहीं है. व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जिसमें लोगों का विश्वास कायम रहे.’

उन्होंने बताया, ‘हादसे की रात मैं अपनी दोस्त को छोड़कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा. ऐसी घड़ी में यहां तक कि जानवर भी अपने साथी को छोड़कर नहीं भांगेंगे. मुझे कोई अफसोस नहीं है, लेकिन मेरी इच्छा है कि शायद उसकी मदद के लिए मैं कुछ कर पाया होता. कभी-कभी सोचता हूं कि मैंने ऑटो क्यों नहीं किया, क्यों अपनी दोस्त को उस बस तक ले गया.’

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