मानव तस्करी की बढ़ती घटनाओं के बीच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की पुलिस ने अपनों से दूर हो चुके लोगों को अपनों से मिलवाने के लिए ऑपरेशन मिलाप शुरू किया है. इसमें बच्चों की संख्या ज्यादा है जो किसी के झांसे में आकर परिवार के दूर हो गए हैं. क्राइम ब्रांच ने इस ऑपरेशन के तहत देश के विभिन्न हिस्सों के 333 बच्चों को उनके परिवार से अब तक मिलवाया है.
दिल्ली पुलिस अलग अलग जगहों से बच्चों को बरामद करके बच्चों की फोटो और अन्य जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करती है, जिससे परिवार के लोग बच्चों तक पहुंच सकें.
अधिकतर बच्चों को नौकरी का झांसा देकर या बहला-फुसला कर लाया जाता है और इन बच्चों को ह्यूमन ट्रैफिकिंग से जुड़े गिरोहों द्वारा रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, भीड़-भाड़ वाले अन्य स्थानों पर सड़क किनारे भीख मांगने के काम में धकेल दिया जाता है. आपरेशन मिलाप के तहत 1 जनवरी से 7 जुलाई के बीच परिवार से मिलवाए गए 333 बच्चों में से ज्यादातर बच्चे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा से हैं. पुलिस ने दिल्ली के 57 लोगों को भी उनके बिछड़े अपनों से मिलवाया है. इनमे 14 नाबालिग और 37 महिलाएं हैं, जिन्हें नौकरी का झांसा दिया गया था.
हजारों बच्चों का अब भी नहीं है पता
हजारों बच्चे अब भी लापता हैं. अकेले दिल्ली की बात करें तो साल 2019 में अभी तक 2324 बच्चों के लापता होने की शिकायत दर्ज की गई है. इनमे से 1241 बच्चों का पता लगा, जबकि अन्य के संबंध में पुलिस कोई जानकारी एकत्रित नहीं कर सकी है. गौरतलब है कि साल 2018 में 6541 बच्चों की गुमशुदगी की शिकायतें दर्ज हुई थीं. इनमे से 6146 बच्चों का पता लगाया जा चुका है.
भयावह है गुमशुदगी का आंकड़ा
बच्चों की गुमशुदगी का ये आंकड़ा जितना डरावना है उतना ही हैरान करने वाला भी. कैसे हजारों की संख्या में मासूम बच्चों को उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है. हैरानी की बात ये भी है कि सबसे ज्यादा गुमशुदगी के मामले 12 से 18 साल तक के बच्चों की तादाद अधिक है. आंकड़ों पर नजर डालें तो 2018 में 12 से 18 साल के बच्चों की गुमशुदगी की 3653 शिकायतें दर्ज की गई थीं.
रोजाना बच्चों का गायब होना, खास तौर पर दिल्ली में मिसिंग बच्चों के ये आंकड़े माता पिता के लिए एक चेतावनी हैं. साथ ही साथ दिल्ली पुलिस के लिए भी एक बड़ी चुनौती भी.