दिल्ली के बुराड़ी में 11 मौत ने सबको सन्न करके रख दिया. लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता रहस्य, अनुमान, आशंका, तंत्र-मंत्र से ढंकी इस कहानी के कई सिरे पकड़ में आने लगे हैं. सबसे बड़ा सबूत और गवाह वो रजिस्टर है, जो बुराड़ी की हत्याओं की इनसाइड स्टोरी बता रहा है.
सूत्रों के मुताबिक बुराड़ी के घर में हुई एक साथ 11 मौत का शक अब परिवार के छोटे बेटे ललित पर आ कर टिक गया है. घर में बरामद हुए रजिस्टर, डायरी और बाकी सबूतों से इशारा मिल रहा है कि तंत्र-मंत्र के फेर में ही बुराड़ी का भाटिया परिवार हमेशा-हमेशा के लिए उजड़ गया.
दरअसल जो कुछ बीती शनिवार और रविवार की दरमियानी रात को हुआ उसकी भूमिका आज से कई साल पहले बननी शुरू हो गई थी. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से निकलकर दिल्ली में अपनी मेहनत के बलबूते घर और व्यापार जमानेवाले ललित के पिता भोपाल सिंह का देहांत हो गया.
परिवार का सबसे छोटा बेटा होने की वजह से ललित उनके बेहद करीब था. जाहिर है, पिता की मौत का सबसे बड़ा सदमा भी ललित को ही पहुंचा, जो वक्त के साथ लगातार गहराता गया. फिर जैसे इतना ही काफी नहीं था कि कुछ साल पहले ललित की आवाज एक हादसे में चली गई.
लंबे इलाज के बावजूद ललित की आवाज वापस नहीं आई. पिता की गैर मौजूदगी और बोल ना पाने की वजह से ललित टूटने लगा, लेकिन इसी बीच एक अजीब बात घटने लगी. ललित ने 5-6 साल पहले से दावा करना शुरू किया कि उसे पिता भोपाल सिंह दिखाई देते हैं. उससे बातें भी करते हैं.
एक दिन फिर वो हुआ जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. ललित की खोई आवाज वापस लौट आई. ललित ने अपनी आवाज़ लौटने का पूरा श्रेय पूजा-पाठ और अपनी धार्मिक आस्था को दिया. पहले से अति धार्मिक रुझान की उसकी पत्नी टीना ने भी उसका साथ दिया.
आवाज लौट आने के बाद तो ललित को अपने पिता लगातार दिखाई देने लगे. वो उनके आदेशों को सुनने और मानने लगा. पिता का असर अब उस पर ऐसा था कि वो उनकी आवाज़ भी हूबहू निकालने लगा. ललित का दावा था कि मृत पिता भोपाल सिंह उसके जरिए पूरे परिवार से संपर्क में हैं.
बकौल पुलिस ललित अपने पिता के हर आदेश को उन रजिस्टरों में लिखता गया जो घर से बरामद हुए हैं. भाटिया परिवार को भी ललित के इन अहसासों पर अंधा भरोसा था, इसलिए वो ललित के बताए अनुसार ही काम करते थे. एक रोज़ ललित के पिता ने उसे परिवार से उनकी मुलाकात कराने का आदेश भी दिया.
एक रजिस्टर में ललित ने पिता का हवाला देते हुए लिखा है, 'मैं कल या परसों आऊंगा, नहीं आ पाया तो फिर बाद में आऊंगा.' रजिस्टर में लिखी हर बात ललित लिख रहा था. वो पिता से मिलने के बाद अब इसी रजिस्टर में भगवान से मिलने की भी बात लिखने लगा. सारी बातें इस तरह लिखी गईं जैसे पिता भोपाल सिंह लिख रहे हों.
रजिस्टर में आगे लिखा था, 'तुम्हें पता है कि भगवान कभी भी हमारे घर में आ सकते हैं इसलिए पूरी तैयारी रखो.' बीते शनिवार की रात और रविवार के बीच जो कुछ भाटिया परिवार ने किया उस के बारे में भी ललित ने रजिस्टर के एक पन्ने पर तफ्सील से सबकुछ लिखा है.
'आखिरी समय पर झटका लगेगा, आसमान हिलेगा, धरती हिलेगी. लेकिन तुम घबराना मत, मंत्र जाप तेज़ कर देना, मैं तुम्हे बचा लूंगा. जब पानी का रंग बदलेगा तब नीचे उतर जाना, एक दूसरे की नीचे उतरने में मदद करना. तुम मरोगे नहीं, बल्कि कुछ बड़ा हासिल करोगे.' शायद यही वह आदेश था जिसे पूरा करने के फेर में पूरे परिवार की जान चली गई.
सूत्रों के मुताबिक, ललित मानसिक बीमारी से ग्रसित था. मेडिकल साइंस में इसे शेयर्ड साइकोटिक डिसऑर्डर या डाइल्यूज़न भी कहते हैं. ये एक तरह की बीमारी है. इसमें कोई अपना मरने के बाद भी दिखाई और सुनाई देने लगता है. ऐसे लोग फिर अपने करीबियों को भी वही महसूस करवाना चाहता है. मेडिकल साइंस में इसका इलाज है.
ललित ने मनोचिकित्सकों से मिलने के बजाय बाबाओं की शरण ले ली. पत्नी ने भी साथ दिया. शायद कोई नहीं था जो ललित को सही वक्त पर सही सलाह दे सकता. वक्त बढ़ने के साथ ही ललित की बीमारी भी बढ़ती गई. घरवाले उसकी बात और भी ज़्यादा मानने लगे. यहां तक कि अपनी भांजी की शादी ना होने पर उसने विशेष पूजा की तो उसका रिश्ता तय हो गया.
घर खंगालने के दौरान पुलिस को कई डायरियां और रजिस्टर मिले हैं. इनमें 200 पन्नों का वो रजिस्टर सबसे अजीब है, जो पूजास्थल पर रखा हुआ था. इस पर 27 मई 2013 से लिखने की शुरुआत हुई थी, जो बीच में बंद हो गई. लेकिन इसके बाद फिर 2015 में रजिस्टर में कुछ बातें लिखी गईं. इस साल जनवरी महीने से रजिस्टर में तरह-तरह की बातें लिखी जाती थीं.
पुलिस को पता चला है कि ललित ये बातें लिख कर रजिस्टर पूजास्थल में रख देता था और रजिस्टर में लिखी बातों के हिसाब से ही इस परिवार के लोग अपनी दिनचर्या यानी रूटीन तय करते थे. अब हाल के दिनों में लगातार हो रही एंट्री को देख कर ये साफ़ है कि ललित इन दिनों इस खास किस्म की मानसिक बीमारी से कुछ ज़्यादा ही ग्रसित था.