झारखंड में आरटीआई कार्यकर्ता सुनील पांडे की दिन दहाड़े हत्या ने पुलिस विभाग पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. सुनील पांडे ने बीते दिनों नक्सली-पुलिस गठजोड़ का खुलासा कर पूरे राज्य में खलबली मचा दी थी.
झारखंड के पलामू जिले में विश्रामपुर निवासी आरटीआई कार्यकर्ता सुनील कुमार पांडे को उस वक्त वक़्त गोली मार दी गयी थी, जब वह अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर बाजार से होकर जा रहे थे. सुनील को एक बेबाक और निडर आरटीआई कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता था.
मृतक सुनील ने फरवरी 2014 के दौरान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर नक्सलियों और पुलिस के बीच चल रहे गठजोड़ का खुलासा किया था. उन्होंने अदालत में दावा किया था कि राज्य के कई IPS अधिकारियों समेत 300 से ज्यादा अधिकारियों के ताल्लुकात नक्सलियों के साथ हैं.
सुनील के मुताबिक इन अधिकारीयों में सीओ और BDO भी शामिल हैं. उन्होंने उग्रवादियों के नाम, फोन नंबर और उनसे लगातार बात करने वाले अफसरों के फोन नंबर भी अदालत को उपलब्ध कराए थे. याचिका दाखिल करते हुए सुनील ने मांग की थी कि इन नंबरों के कॉल डिटेल्स निकलवाएं जाएं तो सारा मामला साफ हो जाएगा.
सुनील ने इस पूरे मामले की जांच एनआईए या सीबीआई से कराने की मांग की थी. इस दौरान सुनील ने पुलिस अधिकारियों से खुद को जान का खतरा बताया था. उन्होंने साफतौर पर उनकी हत्या किए जाने की आशंका जाहिर की थी. लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोई सुरक्षा नहीं दी गई.
राज्य में अधिकारीयों और नक्सलियों के नापाक गठबंधन भंडाफोड़ करने वाला सुनील पहले खुद पुलिस का मुखबिर हुआ करता था लेकिन बाद में उसने यह काम छोड़ कर पुलिस-नक्सली गठजोड़ का खुलासा किया. इसी बात से उसकी जान पर बन आई.
पहले भी सुनील पर तीन बार जानलेवा हमले हुए थे. झारखंड पुलिस पर नक्सली संगठनो के साथ सांठ-गांठ के आरोप पहले भी लगते रहे लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि किसी ने हाईकोर्ट में इस बाबत याचिका दायर की. और एनआईए या सीबीआई से जांच कराने की मांग की.