पत्रकार विनोद वर्मा की जमानत को लेकर सोमवार को रायपुर कोर्ट में बचाव पक्ष और अभियोजन के बीच करीब सवा घंटे तक बहस चली. बचाव पक्ष की ओर से दलील दी गई कि पुलिस ने पत्रकार विनोद वर्मा के खिलाफ जो धारा 384 लगाई है. वो प्रभावशील ही नहीं होती.
उन्होंने आईपीसी का हवाला देते हुए कहा कि ना तो विनोद वर्मा ने किसी को धमकाया और ना ही रकम मांगी है. उनके मुताबिक पुलिस ने धारा 384 को सिर्फ आरोपित किया है स्थापित नहीं. बचाव पक्ष ने यह भी दलील दी कि जो अपराध ही नहीं बनता उस पर एफआईआर कायम की गई और गिरफ्तारी भी हुई.
इस दौरान यह भी सवाल उठाया गया कि शिकायतकर्ता को किसने धमकी दी और डर्टी सीडी में देखा जा रहा शख्स आखिर कौन है. यह प्रमाणित ही नहीं हो पाया. इसके बावजूद बगैर प्रमाणिकता के कैसे पुलिस ने पत्रकार विनोद वर्मा की गिरफ्तारी की. अंतिम दौर में बचाव पक्ष के वकील फैजल रिज़वी ने पुलिस की सभी कार्रवाई को जूठा बताते हुए दफा 384 और 385 की व्याख्या की.
जांच को प्रभावित कर सकते हैं वर्मा
उधर केस डायरी में दर्ज तथ्यों को पेस करते हुए सरकारी पक्ष ने बचाव पक्ष की सभी दलीलों को गैर-वाजिब करार दिया. उन्होंने कहा कि विनोद वर्मा की गिरफ्तारी पूरे सबूतों और गहन विवेचना के आधार पर हुई है. अभियोजन पक्ष की दलील थी कि पत्रकार विनोद वर्मा एक पार्टी से जुड़े हुए हैं. अभी सीडी की जांच रिपोर्ट नहीं आई है. इसलिए जांच प्रभावित हो सकती है. अभियोजन पक्ष ने उनकी जमानत का विरोध किया. प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेड भावेश वट्टी ने दोनों पक्षों की दलीले सुनने के बाद पत्रकार विनोद वर्मा की जमानत याचिका खारिज कर दी.
बता दें कि पत्रकार विनोद वर्मा को 26 और 27 अक्टूबर की दरमियानी रात में उनके गाजियाबाद स्थित निवास से छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया था. पुलिस उन्हें तीन दिन के ट्रांजिट रिमांड पर गाजियाबाद से रायपुर लाई थी. रायपुर के पंडरी थाने में ब्लैकमेलिंग के एक मामले में विनोद वर्मा के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है.