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पत्नी को भी लड़ाया था चुनाव, कई राजनीतिक दलों में है विकास दुबे की पकड़

जानकारी के मुताबिक हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का वैसे कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है. लेकिन बसपा के कई नेताओं से उसे समर्थन मिलता रहा है. बताया जाता है कि बसपा के शासनकाल में विकास दुबे ने कानपुर नगर तक अपना खौफ कायम कर लिया था.

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विकास दुबे जिस पार्टी या प्रत्याशी को समर्थन देता था, उसी को गांववाले वोट देते थे (फोटो- आजतक)
विकास दुबे जिस पार्टी या प्रत्याशी को समर्थन देता था, उसी को गांववाले वोट देते थे (फोटो- आजतक)

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  • सियासी गलियारों में विकास दुबे की पकड़
  • पंचायत चुनाव में बसपा, सपा से मिला था समर्थन

कानपुर में दबिश देने गई पुलिस टीम पर हमले का मास्टर माइंड कुख्यात अपराधी विकास दुबे सियासी गलियारों में भी दखल रखता है. सीधे तौर पर भले ही वो किसी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं है. लेकिन यूपी की तीनों प्रमुख पार्टियों में उसकी पकड़ बताई जाती है. पंचायत चुनाव के दौरान भी उसे बसपा से समर्थन मिला था. जबकि उसकी पत्नी को चुनाव में सपा से समर्थन हासिल हुआ था.

जानकारी के मुताबिक हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का वैसे कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है. लेकिन बसपा के कई नेताओं से उसे समर्थन मिलता रहा है. यूपी में साल 2002 के दौरान बसपा की सरकार थी. उन दिनों मायावती राज्य की मुख्यमंत्री थीं. बताया जाता है कि उसी दौरान विकास दुबे ने बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में भी अपना खौफ कायम कर दिया था.

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इस दौरान शातिर अपराधी विकास दुबे ने कई जमीनों पर अवैध कब्जे किए. यहीं नहीं, इसके अलावा जेल में बंद रहते हुए भी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने शिवराजपुर से नगर पंचयात भी लड़ा था, जिसमें उसे जीत हासिल हुई थी. स्थानीय पुलिस अधिकारियों के अनुसार बिकरू समेत आसपास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों में विकास दुबे के नाम से लोग खौफ खाते थे.

जरायम की दुनिया में नाम कमाने के बाद विकास दुबे की दहशत का आलम ये था कि किसी भी चुनाव में वह जिस पार्टी या उम्मीदवार को समर्थन देता था, गांववाले उसे ही वोट देते थे. यही एक बड़ी वजह थी कि चुनाव के वक्त इन गांवों में वोट पाने के लिए सपा, बसपा और भाजपा के कुछ नेता उसके संपर्क में रहते थे.

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ये उसकी दहशत का ही नतीजा था कि विकास दुबे ने 15 वर्षों से जिला पंचायत सदस्य का पद कब्जा रखा है. वह खुद तो जिला पंचायत है ही, साथ ही उसने अपनी पत्नी ऋचा को घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़वाया था. जिसमें वह जीत गई थीं. यही नहीं उसने अपने चचेरे भाई अनुराग दुबे को पंचायत सदस्य बनवाया था. बताया जाता है कि उसका हर पार्टी के नेताओं के साथ उठना बैठना था.

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