कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों को धोखे से मौत के घाट उतारने वाले गैंगस्टर विकास दुबे का हिसाब यूपी पुलिस ने 8 दिन के अंदर कर दिया. जिस कानपुर में खौफनाक वारदात को अंजाम देकर वो भागा था, उसी कानपुर की चौहद्दी में वो मारा गया. उस वक्त जब यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को उज्जैन से लेकर आ रही थी, तो उसने भागने का प्रयास किया और फिर एनकाउंटर में चली चार गोलियों ने उसका काम तमाम कर दिया, लेकिन इस एनकाउंटर ने कुछ बड़े-बड़े प्रश्न छोड़ दिए हैं.
यहां सबसे अहम सवाल यह है कि गैंगस्टर विकास दुबे मारा गया, लेकिन इसके जरिए किसको बचाया गया. विकास दुबे एनकाउंटर में खत्म हुआ, तो किसका राज़ शुरू हो गया है. इन चुभते सवालों का उत्तर जानने के लिए पहले आप कानपुर चलिए, जहां विकास दुबे के नाम की तूती बोलती थी. विकास दुबे ने खुद कबूल किया कि उत्तर प्रदेश के दो विधायकों के साथ उसका उठना-बैठना था.
विकास दुबे ने पहले चोरी और छिनैती से अपराध की दुनिया में कदम रखा, लेकिन जल्द ही बंदूक की ट्रिगर पर उसकी उंगलियां थिरकने लगीं. शुक्रवार को चार-चार गोलियों का शिकार हुआ विकास दुबे अब तक 16 लोगों को गोलियों से छलनी कर चुका है, तो सवाल है कि ऐसा अपराध वो अपने दम पर कर रहा था या खाकी और खादी के रसूखदार लोगों का उसके ऊपर हाथ था.
बीजेपी के जिन दो विधायकों का उसने नाम लिया था, उन दोनों का मानना है कि विकास दुबे गलत कह रहा था. अवैध जमीन कब्जे से लेकर केबल के कारोबार तक कानपुर में जहां भी सिक्का खनकता हो, वहां विकास दुबे की हाजिरी होती थी. उन चांदी के जूतों को वो बड़े-बड़े रसूखदारों के सिर पर बजाता था और लोग उसको हाथों हाथ लेते थे. वरना 8 पुलिसकर्मियों की मौत में पुलिस महकमे से भी भेदिया नहीं निकलता.
विकास दुबे की नहीं बनती थी सीओ से
अब एसएचओ विनय तिवारी को ही ले लीजिए, जो गिरफ्तार हो चुका है. विकास दुबे के खिलाफ पुलिस और एसटीएफ लगी थी, इसकी जानकारी उस तक पुलिस का यही भेदिया पहुंचाता था और इस बात को किसी और ने नहीं बल्कि खुद विकास दुबे ने उज्जैन पुलिस से कहा था कि सीओ देवेंद्र मिश्र से मेरी नहीं बनती थी. कई बार वो देख लेने की धमकी दे चुके थे. पहले भी बहस हो चुकी थी. विनय तिवारी ने भी बताया था कि सीओ तुम्हारे खिलाफ हैं. लिहाजा मुझे सीओ पर ग़ुस्सा आता था.
विकास ने बताया था, कैसे सीओ को मारा गया
गैंगस्टर विकास दुबे ने पूछताछ में बताया कि सीओ देवेंद्र मिश्र को सामने के मकान में मारा गया था. हालांकि मैंने सीओ को नहीं मारा, लेकिन मेरे साथ के आदमियों ने दूसरी तरफ के अहाते से कूदकर मामा के मकान के आंगन में मारा था. सीओ के पैर पर भी वार किया था, क्योंकि वो बोलते थे कि विकास का एक पैर गड़बड़ है. दूसरा भी सही कर दूंगा. सीओ का गला नहीं काटा था, गोली पास से सिर पर मारी गई थी, इसलिए आधा चेहरा फट गया था.
कानपुर गोलीकांड के बाद अनंतदेव की निष्ठा पर भी सवाल
यूपी पुलिस में बड़े हनक वाले ऑफिसर की पहचान अनंतदेव तिवारी की भी है, जो ढाई साल तक कानपुर के एसएसपी रहे, लेकिन विकास दुबे के कानपुर कांड के बाद सवालों के घेरे में अनंतदेव तिवारी की निष्ठा भी आ गई और इसलिए इनको हटा दिया गया. जब अनंतदेव तिवारी कानपुर के एसएसपी थे, उस वक्त उनके पास विकास दुबे की चार्जशीट पहुंची, लेकिन ये कहकर उन्होंने विकास दुबे की चार्जशीट फाड़ दी थी कि उस पर कोई अपराध नहीं बनता.
अब आप सोचिए कि जिस विकास दुबे ने 19 साल पहले थाने में घुसकर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री की हत्या कर दी थी और लगे हाथ दो पुलिस वालों को भी उड़ा दिया था, वो विकास दुबे तब इसलिए बच गया था कि थाने के 19 पुलिस वालों में एक ने भी उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी.
अब कैसे सामने आएगी 68 पुलिसकर्मियों की सच्चाई?
एक ईमानदार पुलिस अधिकारी देवेंद्र मिश्रा ने विकास दुबे को पकड़ने की प्लानिंग बनाई. पुलिस महकमे से ही विकास दुबे को सारी जानकारी मिल गई और विकास दुबे ने घात लगातर सात अन्य पुलिसकर्मियों के साथ देवेंद्र मिश्रा को गोलियों से भुन डाला. पुलिस का बदलापुर देखिए कि 8वें दिन विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया. तो सवाल है कि संदेह के घेरे में आए 68 पुलिस वालों की सच्चाई कैसे सामने आएगी, जिनको लाइन हाजिर कर दिया गया? बाकी पुलिस वालों का ट्रांसफर हुआ, उनकी भूमिका का पता कैसे चलेगा?
विकास दुबे से आला अधिकारियों की साठगांठ को कौन खोलेगा?
गिरफ्तार और निलंबित एसएचओ विनय तिवारी से विकास दुबे के साठगांठ को अब कौन खोलेगा? और कानपुर के एसएसपी रहे अनंतदेव तिवारी की भूमिका पर उठते संदेह के बादल कैसे दूर होंगे? इसलिए एनकाउंटर पर सवाल शहीद पुलिस अधिकारी देवेंद्र मिश्रा के रिश्तेदार भी उठा रहे हैं. विकास दुबे का आपराधिक इतिहास और रिकॉर्ड बताता है कि कैसे खादी, खाकी और तिजोरी वाले उसका इस्तेमाल करते रहे?
ऐसे विकास दुबे को मिलता रहा नेताओं का संरक्षण
साल 1990 में जब विकास दुबे ने लूटपाट शुरू की थी, तब पूर्व विधायक नेकचंद पांडे ने विकास दुबे की मदद की थी. इसके बाद जब उसने जमीन पर कब्जे का धंधा शुरू किया, तो उसको बीजेपी नेता हरिकिशन श्रीवास्तव का संरक्षण मिला था. उन्हीं दिनों वो पूर्व सांसद श्याम बिहारी मिश्र के संपर्क में भी आया.
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1996 में हरिकिशन श्रीवास्तव बीएसपी में गए तो विकास दुबे ने भी बहुजन का झंडा उठा लिया. इस दौरान अपना राजनीतिक वर्चस्व बढ़ाने के लिए तीन गांवों में अपने घर वालों की प्रधानी पक्की करा दी.
यहा तक कि दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला की हत्या के मामले में भी तत्कालीन यूपी सरकार के एक मंत्री पर ही उंगली उठी कि परदे के पीछे से वही विकास को शह दे रहे हैं. कानपुर के पूर्व कांग्रेस सांसद अमरपाल सिंह से भी विकास दुबे के नजदीकी संबंधों के आरोप लगे. खुद विकास दुबे ने अपने अपराध की बंदूक को आगे किया, तो दूसरी तरफ सियासत के बड़े नामों से अपना नाम जोड़ने लगा.
एक राजनीतिक दल तक नहीं सिमटा रहा विकास दुबे
विकास दुबे किसी एक राजनीतिक दल तक सिमटा नहीं था. बीएसपी, एसपी, बीजेपी हर घाट का पानी पी चुका था, लेकिन उसका स्थायी ठिकाना अपराध था. उसके दामन पर लगे गुनाहों के दाग खाकी, खादी और तिजोरी पर लगे दागों को सामने नहीं आने देते थे, इसलिए सियासी विरोधी योगी सरकार पर इस एनकाउंटर को लेकर सवाल उठा रहे हैं.
विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर सियासत
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर शायराना अंदाज में योगी सरकार पर निशाना साधा. राहुल गांधी ने लिखा, 'कई जवाबों से अच्छी है खामोशी उसकी. ना जाने कितने सवालों की आबरू रख ली.'
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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर सवाल उठाए हैं. प्रियंका गांधी ने कहा कि इस मामले की सुप्रीम कोर्ट के जज से जांच करानी चाहिए. वहीं, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि कार नहीं पलटी, सरकार को पलटने से बचा लिया गया. हालांकि इस एनकाउंटर के समर्थन में बीजेपी खड़ी हो गई है.
विकास दुबे के गुनाहों की कोई भी सजा बहुत छोटी होती, लेकिन कानून के दरवाजे तक वो पहुंचा तो वैसे बहुत सारे गुनहगार चेहरे भी बेनकाब होते, जिनका काला सच शायद ही अब सामने आ पाए.