इसे भारतीय परिवारों में लगातार घटती व्यक्तिगत सहनशीलता की नजीर कह लीजिये या सात जन्मों के बंधन में बढ़ते अवसाद का डरावना सबूत, देश में कुंवारों की तुलना में शादीशुदा लोगों में जिंदगी से हार मानकर खुदकुशी की प्रवृत्ति ज्यादा है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में अपने जीवन का खुद अंत करने वालों में 65.9 फीसद विवाहित थे, जबकि 21.1 प्रतिशत ऐसे थे जो शादी के बंधन में नहीं बंधे थे. खुदकुशी करने वालों में 1.4 फीसदी लोग एकाकी जीवन जी रहे थे.
मनोचिकित्सक डॉ. अभय जैन ने कहा कि ये आंकड़े भारतीय परिवारों के ताने-बाने में गंभीर बदलावों की ओर इशारा करते हैं. देश में सामूहिक परिवार तेजी से एकल परिवारों में तब्दील हो रहे हैं. इससे परिवारों में टकराव बढ़ रहा है. सहनशीलता कम हो रही है.
उन्होंने बताया कि यह देखा जा रहा है कि एकल परिवारों में रहने वाले ज्यादातर पति-पत्नी अपनी पेशेवर और निजी समस्याएं एक-दूसरे से साझा नहीं करते. उनसे अकेले ही जूझते रहते हैं. इससे वे अवसाद का शिकार हो जाते हैं.