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यहां होती हैं सबसे ज्यादा हत्याएं, मुर्गा और बीड़ी के लिए चल जाती है कुल्हाड़ी

क्या आप जानते हैं कि देश में किस इलाके में सबसे ज्यादा हत्याएं होती हैं? देश के कौन से थाने के रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर सबसे ज्यादा हत्याएं दर्ज हैं. ये इलाका है छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का कोड़ानेर इलाका. बताते हैं कि ये इलाका सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में सबसे ज्यादा हत्याओं के लिए कुख्यात है. इस इलाके में मामूली बातों जैसे कि नमक, मुर्गा, बीड़ी से लेकर टोना-टोटका के संदेह में एक-दूसरे को मौत के घाट उतार दिया जाता है.

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छत्तीसगढ़ के बस्तर के कोड़ानेर की कहानी
छत्तीसगढ़ के बस्तर के कोड़ानेर की कहानी

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क्या आप जानते हैं कि देश में किस इलाके में सबसे ज्यादा हत्याएं होती हैं? देश के कौन से थाने के रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर सबसे ज्यादा हत्याएं दर्ज हैं. ये इलाका है छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का कोड़ानेर इलाका. बताते हैं कि ये इलाका सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में सबसे ज्यादा हत्याओं के लिए कुख्यात है. इस इलाके में मामूली बातों जैसे कि नमक, मुर्गा, बीड़ी से लेकर टोना-टोटका के संदेह में एक-दूसरे को मौत के घाट उतार दिया जाता है.

बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर कोड़ानेर स्थित है. हत्याओं की वजह से ये क्षेत्र दशकों से बदनाम है. इसी वजह से 1982 में यहां कोड़ानेर थाने की शुरुआत हुई. बताया जाता है कि तब से यहां अब तक 500 से भी ज्यादा हत्याएं दर्ज हो चुकी है. हालांकि आईजी कार्यालय में हत्याओं का रिकॉर्ड 1990 से ही उपलब्ध है, जिसके मुताबिक अब तक यहां 307 हत्याएं हुई है. कोड़ानेर थाने के रिकार्ड में 2003 से 174 हत्याएं दर्ज हैं.

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आदिवासी बहुल इस इलाके में शिक्षा की रोशनी खास नहीं पहुंची है. मुर्गा लड़ाई के नाम पर यहां टंगिया (कुल्हाड़ी) चलना आम बात है. यहां कोई बीड़ी मांगे और दूसरा नहीं दे तो इस बात पर भी हत्या हो जाती है. यहां हत्याओं के मामलों को सुलझाने के लिए पुलिस को अधिक वक्त नहीं लगता है. ज्यादातर मामलों में आरोपी खुद ही थाने पहुंच कर खु को पुलिस के हवाले कर देते हैं. यहां के लोग स्वभाव से ही गुस्सैल हैं. उनका यही स्वभाव अपराध का कारण बनता है.

बताया जाता है कि खाना देने में होने वाली देर भी मां या पत्नी की हत्या की वजह बन जाता है. कोड़ेनार थाने के प्रभारी बी एल राठिया के मुताबिक यहां के लोग आपराधिक प्रवृत्ति के नहीं हैं, लेकिन गुस्से में जल्दी ही आपा खो बैठते हैं. इन्हें जब अपने अपराध का बोध होता है तो खुद ही थाने में आकर समर्पण भी कर देते हैं. इलाके में अधिक हत्याओं के लिए अशिक्षा और अंधविश्वास जिम्मेदार है.

कई वर्षों से इलाके के लोगों के बीच रहकर उनके मनोभाव को समझने वाले वकील विक्रमादित्य झा कहते हैं कि यहां पुरानी रंजिश या जर, जोरू, जमीन जैसे मुद्दों पर हत्याएं नहीं होतीं बल्कि इमली बेचने या महज 25 रुपए के बंटवारे के झगड़े पर ही हत्या हो जाती है. यहां के लोग मेहनती भी बहुत होते हैं लेकिन गुस्सा हर वक्त इनकी नाक पर रहता है. लांदा, सल्फी जैसे नशे करने के बाद ये आपा खो बैठते हैं.

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