मुंबई में बुधवार को विशेष अदालत ने एक दिव्यांग व्यक्ति को प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम अफेंसेस (पोक्सो) एक्ट के तहत नाबालिग लड़की से दुष्कर्म का दोषी ठहराया है. पीड़ित लड़की शेल्टर होम से भाग गई थी, जिसके साथ अभियुक्त ने दुष्कर्म किया था. अदालत ने इस जुर्म में विकलांग धनेश कुमार को दोषी ठहराते हुए 10 साल कारावास की सजा सुनाई है.
पीड़ित लड़की सेंट्रल मुंबई के एक शेल्टर होम में रहती है. उसकी मां नहीं है और पिता के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. वह बगल के एक स्कूल में पढ़ने जाती थी, जहां का एक केयरटेकर उसे शेल्टर होम से लेने और वापस छोड़ने का काम करता था. लड़की छह महीने से शेल्टर होम में रहती थी लेकिन उसे स्कूल पसंद नहीं था. इसलिए नवंबर 2014 में स्कूल में अपना बैग और किताब कॉपी छोड़ वह भाग गई. लड़की भागकर पास के रेलवे स्टेशन पहुंची जहां उसे धनेश कुमार मिला. उसने मदद के बहाने ट्रेन की खाली बोगी में दुष्कर्म किया.
शेल्टर होम के अधिकारियों को लड़की के भागने की खबर मिलते ही मुंबई पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज कराई गई. दूसरी ओर अभियुक्त धनेश कुमार लड़की को एक जगह से दूसरी जगह ले जाता रहा ताकि पुलिस की नजरों से बच सके. इसी बीच वह लड़की को अपने चाचा के घर ले गया. यहां आरोपी के चाचा ने भी लड़की के साथ दुष्कर्म किया.
एक महीने की गुमशुदगी के बाद आरोपी धनेश कुमार पीड़ित लड़की को उसके शेल्टर होम के पास छोड़ कर भाग गया. लड़की को शेल्टर होम की अन्य लड़कियों ने देखा और अधिकारियों की इसकी सूचना दी. मेडिकल जांच के लिए उसे अस्पताल ले जाया गया जहां दुष्कर्म की पुष्टि हुई. सरकारी वकील गीता शर्मा ने ये केस देखने का जिम्मा लिया. लड़की के साथ दिक्कत ये थी कि उसके पास खुद को नाबालिग सिद्ध करने के लिए कोई कागजात नहीं था.
वकील गीता शर्मा पीड़ित लड़की को उस डॉक्टर के पास लेकर गईं जिसने मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि की थी. उस डॉक्टर ने अदालत को बताया कि पीड़ित लड़की नाबालिग है. शर्मा ने अदालत में दलील दी कि पीड़ित अनाथ है और 33 साल के अभियुक्त ने उसके साथ दुष्कर्म किया है. अभियुक्त के वकील की दलील थी कि लड़की झूठ बोल रही है और वह किसी तरह शेल्टर होम से भागने की फिराक में थी लेकिन शेल्टर होम की अन्य लड़कियों ने इस बात को नकार दिया.
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद जज ने धनेश कुमार को नाबालिग लड़की से दुष्कर्म का दोषी ठहराया. आरोपी को 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई और 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया.