निर्भया गैंगरेप मामले में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को चारों दोषियों का डेथ वारंट जारी कर दिया. इन चारों दोषियों को 22 जनवरी की सुबह 7 बजे फांसी दी जाएगी. वहीं, अगर चारों दोषी चाहें तो क्यूरेटिव पिटीशन या दया याचिका दाखिल कर सकते हैं. आइए जानते हैं क्या होता है डेथ वॉरेट. डेथ वारंट को ब्लैक वारंट भी कहा जाता है.
दोषी को 'तब तक फांसी के फंदे पर लटका कर रखा जाए, जब तक उसकी मौत न हो जाए'. यह वाक्यांश क्रिमिनल प्रोसीजर के फॉर्म नंबर 42 पर छपे तीन वाक्यों के दूसरे भाग का हिस्सा है, जिसे डेथ वारंट के नाम से जाना जाता है. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) का फॉर्म नंबर 42 असल में, दोषी को फांसी की सजा का अनिवार्य आदेश है, जिसे मौत की सजा सुनाई गई है.
राष्ट्रपति से की थी दया की मांग
फांसी पर लटकाने के लिए इसी फॉर्म नंबर 42 यानी डेथ वारंट का इस्तेमाल होता है. बता दें कि चार दोषियों में एक ने राष्ट्रपति से दया की मांग की थी जबकि एक अन्य दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके मौत की सजा पर पुनर्विचार करने की मांग की थी.
डेथ वारंट दंड प्रक्रिया संहिता में फॉर्म्स की एक सूची का हिस्सा है. जिस पर किसी अपराध की जांच, साक्ष्य एकत्र करने, निर्दोषता का निर्धारण करने या अभियुक्तों को अपराधी ठहराने और उन्हे दंडित करने की प्रक्रिया का विवरण होता है. दंड प्रक्रिया संहिता में डेथ वॉरंट वॉरंट 42वां फॉर्म होता है जिसे 'वॉरंट ऑफ एक्ज़ीक्युशन ऑफ़ ए सेंटेंस ऑफ डेथ' कहा जाता है.
क्या होता है डेथ वारंट में
डेथ वारंट उस जेल प्रभारी को संबोधित करते हुए भेजा जाता है, जहां दोषी को कैद करके रखा गया होता है. इसके बाद दोषी का नाम होता है जिसे मौत की सजा सुनाई गई है. डेथ वारंट में कोर्ट की ओर से दी गई मौत की सजा की पुष्टि भी होती है. डेथ वारंट में दोषी का नाम दर्ज होता है और यह भी लिखा होता है कि दोषी को 'तब तक फांसी के फंदे पर लटका कर रखा जाए, जब तक उसकी मौत न हो जाए'. इस वारंट में दोषी को फांसी देने के समय और स्थान का भी बकायदा जिक्र होता है. साथ ही डेथ वॉरंट में ट्रायल कोर्ट के उस जज का सिग्नेचर भी होता है, जिसने मौत की सजा सुनाई होती है.