एनकाउंटर पर नोएडा के एसएसपी और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अजय पाल शर्मा ने एक लेख लिखा है. इस लेख को उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट किया है. उन्होंने लिखा, 'एनकाउंटर, यह शब्द सिर्फ शब्द नहीं बल्कि हर उस वर्दीधारी की जिंदगी का एक अध्याय है जिसने किसी वक्त बदमाशों की गोलियों का सामना किया है. यह फिक्र किये बिना कि घने अंधेरे में चली वो गोली किसके लहू से खुद को रंग के निकलेगी, यह गोली उसके जिस्म को छलनी कर देगी तो क्या होगा?
वो मर्द यह नहीं सोचता कि क्या इस गोली के उसके साथ युद्ध के बाद वो अपने पैर पर खड़ा हो पाएगा, क्या उसका परिवार फिर से उसको मिल पाएगा, क्या यह दिल इसके अगले पल धड़केगा, क्या यह नजर फिर किसी अपने को देख पाएगी. यह कुछ पलों का खेल होता है जो कई बार आखरी खेल बन जाता है.
चलती गोलियों के बीच जान बूझकर जाने के लिए एक जिगर चाहिए. ऐसे हालात को झेलने के लिए एक जनून चाहिए. सब कुछ दांव पर लगाकर अपना फर्ज निभाने के लिए एक रट चाहिए, जुर्म के खिलाफ लड़ने की. यह मौका हर किस को जिंदगी में नहीं मिल पाता, लेकिन जिन्हें मिलता है वो बहुत नसीब से मिलता है. कोई साथी इसी जनून को जीते हुए गुजर गया. कोई जिंदगी भर के लिए अपना हाथ, पैर या कुछ और खो बैठा. कुछ ऐसी यादों के साथ जी रहे हैं जो कभी ऐसी याद नहीं चाहते थे.
जिसके साथ लड़े उनसे कोई अपना झगड़ा नहीं था लेकिन धुन थी कि अपने रहते किसी को किसी की जिंदगी, किसी की आबरू पर हाथ नहीं डालने देंगे. जो शहीद हुए उनके दर्द को करीब से देखने वाले भी दिन ब दिन कम होते गए. कभी किसी को उनके अधिकारों की बात करते नहीं देखा, जो उन बेरहमों के हाथों मारे गए. जो बिना दोष कई लोगों को अपनों से दूर कर गया, जो किसी की मेहनत की सालों की कमाई पल में उसके बच्चे को बंदूक की नोक पर रख लूट ले गया और साथ ही घर की आबरू भी न छोड़ी.
ऐसे घिनोने काम वाले के लिए अब रोने वाले और लड़ने वाले तो कई आ गए लेकिन जब वो औरों को रुला रहा था तब इन्होंने कुछ नहीं बोला. एक दिन जी के देखो उनके साथ जिन्होंने अपने बेटे को खोया, अपने पति को खोया, अपने बाप को खोया तब बात करना उनके अधिकारों की. खलता है साहब, बहुत खलता है उनका जाना, जो इस लड़ाई में मेरे साथी थे. और भी खलता है जब उनकी कुरबानी को झुठलाने की कोशिश की जाती है, जब उन के सिर में लगी गोली को किसी गंदी नियत से साजिश कह दिया जाता है.
शरीर पे एक खरोंच न सहने वालों, उसका सोचो जो अपने अंगूठा व अपना हाथ खो बैठा और उसका जो जान गंवा बैठे. वो शायद तुम्हारे लिए लड़ रहा था कि कोई तुम्हे कभी राह चलते मार न जाए, शायद तुम्हारे बच्चों के लिए लड़ रहा था कि कोई किसी लालच के लिए उसका अपहरण न कर ले. वो शायद इस लिए लड़ रहा था कि तुम्हारी बहन, तुम्हारी पत्नी इज्जत से जी सके. इसलिए लड़ा था वो आज जिसको तुमने झूठ बता दिया. इज्जत करो उसकी जो तुमहारे लिए खुद की खुदी मिटा गया. सम्मान करो उसका जो खुद न जिया पर कई लोगों के लाल बचा गया.
खैर जिनमें जज्बा है बुराई से लड़ने का वो हमेशा लड़ते रहेंगे क्योंकि हौंसला विरासत में मिलता है, खून में मिलता है, किसी बाजारों में नहीं. खाकी है ये किसी भी वक्त सच के लिए शान से खाक में मिलने को तैयार.