बलात्कार पीड़ितों को इंसाफ और मदद दिलाने के लिए यूं तो सरकार और कानून दोनों ही नये नयी स्कीम और योजनाएं शुरू कर देते हैं. लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि ये सिर्फ योजनाओं के नाम पर एक भद्दा मजाक ही साबित होती हैं जो बलात्कार पीड़ित के दर्द को और बढ़ा देती है.
अपराध या ज्यादती के शिकार पीड़ितों को मुआवजे के लिए सरकार ने लीगल सर्विस अथॉरिटी तो बना दी. लेकिन इस साल सिर्फ चार पीड़ितों को 12 लाख का मुआवजा मिल सका जबकि इस साल रेप के 635 मामले दर्ज हुए. लीगल सर्विस अथॉरिटी रेप, तेज़ाब, अपहरण और बाल उत्पीड़न के शिकारों के लिए बनाई गई. सरकार ने इस स्कीम के लिए 15 करोड़ की राशि भी तय कर दी. लेकिन ये रकम पीड़ितों तक नहीं पहुंच पा रही.
मुआवजा न मिलने की एक बड़ी वजह ये है कि अथॉरिटी मुआवजे के लिए महिलाओं के घर का पता पूछती है जबकि कई पीड़ित महिलाएं बेघर होती हैं. इस बारे में लीगल सर्विस अथॉरिटी से कोई भी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. महिला आयोग भी अथॉरिटी के इस रवैये से नाराज है.
अध्यक्ष, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह ने कहा, 'पहले ज्यादा अच्छी व्यव्स्था थी. उसको अपने इलाज के लिए कुछ पैसे की व्यवस्था हो जाती थी.'
जाहिर है पीड़ितों को मुआवजा मिलना और मुश्किल हो गया है. ऐसे पीड़ितों को इलाज और कानूनी लड़ाई का खर्चा भी खुद ही उठाना पड़ रहा है.