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मसूद अजहर पर कसा शिकंजा, लेकिन अभी बाकी है हाफिज सईद और दाऊद

वो 18 बरस तक खून के आंसू रुलाता रहा. 18 बरस तक वो भारत को लहुहलुहान करता रहा. 18 बरस तक वो आतंक फैलाता रहा और अब 18 बरस बाद जाकर ये माना गया कि मौलाना मसूद अज़हर इंटरनेशनल टेररिस्ट यानी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है.

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इंटरपोल ने मसूद अजहर के खिलाफ 2 बार रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया था
इंटरपोल ने मसूद अजहर के खिलाफ 2 बार रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया था

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संसद भवन से लेकर पुलवामा हमले तक का मास्टमाइंड और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अज़हर 1 मई 2019 से इंटरनेशनल आंतकवादी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मसूद अज़हर को आखिरकार ग्लोबल टेररिस्ट करार दे दिया. मगर सवाल ये है कि क्या इससे मसूद को उसके किए की सजा मिल जाएगी? क्या मसूद अज़हर का आतंक अब खत्म हो जाएगा? तो जवाब में बस इतना जान लीजिए कि पाकिस्तान में मसूद अजहर से पहले ही दो-दो और इंटरनेशनल टेररिस्ट बैठे हैं, एक हाफिज सईद और दूसरा दाऊद इब्राहीम.

वो 18 बरस तक खून के आंसू रुलाता रहा. 18 बरस तक वो भारत को लहुहलुहान करता रहा. 18 बरस तक वो आतंक फैलाता रहा और अब 18 बरस बाद जाकर ये माना गया कि मौलाना मसूद अज़हर इंटरनेशनल टेररिस्ट यानी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है. जी हां, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आखिरकार बुधवार 1 मई 2019 को एलानिया तौर पर जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी करार दे दिया.

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जो काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था. उसे अमल में आते आते 18 बरस लग गए. पिछले 18 सालों से दिन-रात जो शख्स भारत के खिलाफ साज़िश रच रहा था. आखिरकार संयुक्त राष्ट्र ने उसे उसके किए की सज़ा सुना दी. दरअसल मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करके उसे सज़ा नहीं दी. सिर्फ उसके आतंकी होने पर ठप्पा लगाया है. सज़ा तो इस आतंकी को अभी मिलनी बाकी है. सजा संसद हमले में मारे गए बेगुनाहों के खून की. सज़ा पठानकोट में मारे गए मासूमों की. सज़ा श्रीनगर विधानसभा के बाहर धमाके में लोगों को मारने की. सज़ा हिंदुस्तान में हुए बीस से ज्यादा आतंकी हमले कराने की.

31 दिसंबर 1999 को कांधार हाईजैकिंग के बदले जब से भारतीय जेल से मसूद अजहर रिहा हुआ. तब से इसने अपनी ज़िंदगी का एक ही मक़सद बनाया हुआ था. भारत की तबाही. जैश जैसे संगठन का सरगना जिस पर सैकड़ों बेगुनाहों के क़त्ल का इल्ज़ाम है. जो दुनिया का सबसे घाघ आतंकवादी है. मगर कमाल देखिए कि संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अज़हर के संगठन जैश को तो 18 साल पहले यानी 2001 में ही आतंकवादी संगठन करार दे दिया था. मगर उसे 18 साल लग गए ये फैसला करने में कि जिसका संगठन आतंकी है. उसका सरगना कैसे आतंक़वादी नहीं?

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ऐसा नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पहले कभी मसूद अज़हर को आतंकी घोषित करने की कोशिश नहीं की. या उसके सामने मसूद अज़हर को आतंकी घोषित करने का मामला नहीं आया. भारत ने एक नहीं कई बार जैश के इस सरगना को आतंकी घोषित किए जाने का मामला उठाया मगर हर बार वीटो पावर का इस्तेमाल करके चीन ने अडंगा लगा दिया. मगर इस बार दुनिया के दबाव में चीन को झुकना पड़ा.

पुलवामा हमले के बाद 27 फरवरी को भारत के समर्थन में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस संयुक्त राष्ट्र में अजहर के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आए थे. 10 से ज़्यादा देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था. तय किया गया कि अगर सुरक्षा परिषद के किसी सदस्य को इस पर ऐतराज़ ना हो तो जैश के सरगना मसूद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया जाएगा. प्रस्ताव की समय सीमा 13 मार्च रात 12:30 बजे खत्म हो रही थी. लगा इस बार तो मसूद को उसके किए की सज़ा मिल ही जाएगी.

मगर प्रस्ताव की समय सीमा खत्म होने से सिर्फ एक घंटा पहले चीन ने इस पर अड़ंगा लगा दिया. हालांकि इस प्रस्ताव पर अड़ंगे के बाद सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने चीन को साफ चेतावनी दी कि अगर वो मसूद अज़हर को लेकर अपने रुख को नहीं बदलेगा तो कार्रवाई के दूसरे विकल्प भी खुले हैं.

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ऐसे में चीन पर ना सिर्फ भारत बल्कि दूसरे देशों का दबाव भी बना हुआ था. और आखिरकार अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अपनी किरकिरी देख चीन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को चीन बुलाया. प्रधानमंत्री इमरान खान को मसूद अज़हर पर नकेल कसने के लिए राजी कर लिया. हालांकि इसके बदले चीन ने पाकिस्तान को ये भरोसा दिलाया है कि वो हर मुश्किल वक्त में उसके साथ खड़ा रहेगा. ये वही चीन है जो अब तक चार बार संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में वीटो का इस्तेमाल कर मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किए जाने से रोकता आया था.

पिछले 10 सालों में चीन मसूद अजहर को बचाने के लिए चार बार चाल चल चुका था. 2009 में भारत खुद ये प्रस्ताव लेकर आया था. वहीं 2016 में भारत ने पी-3 देशों (अमेरिका,फ्रांस और ब्रिटेन) के साथ मिलकर प्रस्ताव पेश किया था. फिर 2017 में पी-3 देशों ने ही ये प्रस्ताव पेश किया था और इस बार पुलवामा आतंकी हमले के बाद ये प्रस्ताव फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका लेकर आया.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मार्च में हुई बैठक में हालांकि चीन ने प्रस्ताव को गिराने के लिए वीटो पॉवर का इस्तेमाल नहीं किया था. मगर प्रस्ताव को ‘टेक्निकल होल्ड’ पर रखकर विचार करने के लिए वक्त मांगा था. मगर एक महीने बाद इस मसले पर दोबारा हुई बैठक में चीन को झुकना पड़ा और वो जैश के सरगना मसूद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किए जाने पर राज़ी हो गया .इसी के बाद इधर चीन ने मसूद के सिर से हाथ हटाया, उधर मसूद अज़हर अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित हो गया.

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