पाकिस्तान की पनाह में पल रहे आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को लेकर पाकिस्तानी सेना और सरकार कैसे झूठ बोलती है, इस बात का खुलासा आजतक की एसआईटी ने कर दिया है. दरअसल, जैश एक बैन आतंकवादी संगठन है. मगर इसी जैश का पाकिस्तान से अपना अखबार निकलता है और बाकायदा उसी अखबार में जैश को चंदा देने के लिए इश्तेहार भी छपता है. और ये चंदा बाकायदा पाकिस्तानी बैंक के अकाउंट में जाता है. आजतक की इनवेस्टिगेशन टीम ने भी जैश को चंदा देने के नाम पर फोन घुमा दिया.
रंग बदलना किसे कहते हैं. ये समझना हो तो पहले पाकिस्तान को समझिए. जिसने बालाकोट में इंडियन एयरफोर्स की स्ट्राइक के बाद कहा जैश का सरगना मसूद अज़हर पाकिस्तान में हैं. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने खुद बयान देते हुए कहा कि मसूद पाकिस्तान में है. पता चला है कि वो काफी बीमार है. चल फिर भी नहीं सकता. और फिर अंतरराष्ट्रीय दबाव को देखते हुए महज़ एक हफ्ते में अपनी ही धुरी पर 180 डिग्री घूम गया. लब्बोलुआब ये कि आतंकियों को बचाने के लिए पाकिस्तान किसी भी हद तक जा सकता है.
मगर आजतक ने पाकिस्तान के हर झूठ से पर्दा हटाने के लिए पूरी पड़ताल कर ली है. हमारी स्पेशल इनवेस्टीगेटिंग टीम ने ना सिर्फ जैश को मिल रही पाकिस्तानी आर्मी की शह का खुलासा करने जा रही है. बल्कि उसे मिल रही विदेशी फंडिंग की कड़ी भी हमने जोड़ दी है.
पेशावर से छपने वाला एक साप्ताहिक उर्दू अखबार है अल-क़लम. जिसे जैश के सरगना मसूद अजहर का मुखपत्र माना जाता है. और इसी के ज़रिए आतंकी संगठन जैश अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए आर्थिक मदद इकट्ठा करता है. जैश का ये साप्ताहिक अखबार ऑनलाइन भी उपलब्ध है. जिसमें ज़्यादातर भारत और जम्मू-कश्मीर से जुड़ी खबरें रहती हैं. आतंकियों को मुजाहिदीन कहकर उनकी तारीफ की जाती है.
पेशावर से छपने वाला ये अखबार दरअसल, एक आदमी की ज़िम्मेदारी है. जिसका नाम है तल्हा सैफ. मसूद अजहर का बेहद करीबी और जैश के प्रोपेगैंडा विंग का चीफ. ये वही तल्हा है जिसका ज़िक्र भारत ने पुलवामा हमले के मामले में पाकिस्तान को सौंपे डोज़ियर में भी किया है. जब हमने जैश के इस अखबार के पिछले एडिशन्स को खंगाला. तब हमारी नज़र से गुज़रा जैश का ये पुराना इश्तेहार. जो इस बात का सबूत है कि जैश को सिर्फ पाकिस्तान से ही नहीं बल्कि दुनियाभर में रईस उद्योगपतियों से भी फंडिग होती है. और इसी के ज़रिए वो पाकिस्तानी युवाओं को बेहतर ज़िंदगी का लालच देकर आतंकी बनाते हैं.
बहरहाल, जब हमने इश्तहार में दिए गए नंबर को खंगाला तो पता चला कि जिस मोहम्मद रियाज़ का नाम दर्ज है वो अभी भी जैश के लिए फंड इकट्ठा कर रहा है. आजतक की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम के एक सदस्य ने इसकी पड़ताल करने के लिए जैसे ही दुबई में बसे एक पाकिस्तानी बिज़नेस मैन का मुखौटा पहना. एक-एक करके जैश का तमाम राज़ परत दर परत खुलने लगा. फोन पर रियाज़ ने ना सिर्फ अपनी पहचान कबूली बल्कि उसने लाहौर में जैश के एक और आतंकी का नाम सुझाया जिसे डोनेशन दी जानी थी.
रिपोर्टर- अस्सलाम वालेकुम. मैं जब्बार बोल रहा हूं.
मो. रियाज़- वालेकुम अस्सलाम.
रिपोर्टर- क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं.
मो. रियाज़- मोहम्मद रियाज़ बोल रहा हूं.
रिपोर्टर- आपका इश्तेहार मैंने देखा था.
मो. रियाज़- अच्छा.. मैं तो कराची में रहता हूं. जो हमारे साथी होते हैं वहां (लाहौर) के. इसमें पंजाब का नंबर होगा और मरकज़ी नंबर लिखा होगा. जहां आपने मेरा नंबर देखा है.
रिपोर्टर- आपका जो अखबार निकलता है उसमें से मैंने आपका नंबर देखा है.
मो. रियाज़- ये मेरा बलूचिस्तान का नंबर लिखा है. अगर आप लाहौर में हैं तो आपको पंजाब वाले नंबर पर बात करनी चाहिए. या मरकज़ी नंबर पर. मैं आपको नंबर लिखवाता हूं. लिख लें.
रिपोर्टर- ये किन साहब का नंबर है रियाज़ साहब.
मो. रियाज़- ये अब्दुल्ला नदीम साहब का नंबर है.
कुल मिलाकर इस बातचीत से ये साफ हो गया कि जैश की पकड़ पाकिस्तान के किसी एक हिस्से में नहीं है, बल्कि पूरे पाकिस्तान में फैले हैं जैश के कारिंदे. और पाकिस्तानी सरकारों की नाक के नीचे आतंक की दुकान चलाने के लिए चंदे भी इकट्ठा कर रहे हैं. मगर सरकार ने आंखें मूंद रखी हैं. जब हमने जैश से जुड़े हुए मोहम्मद रियाज़ से बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया तो सुनिए क्या हुआ.
रिपोर्टर- हां.. जैश का अकाउंट नंबर लिखवा दीजिए.
मो. रियाज़- जैश का कोई अपना अकाउंट नंबर नहीं है. मैं आपको अपना अकाउंट नंबर लिखवा सकता हूं. अगर आप कुछ पैसे जमा करना चाहें. मैं उन्हें दे दूंगा.
रिपोर्टर- ये बैंक कौन सी है जनाब?
मो. रियाज़- मोहम्मद रियाज़ के नाम से है. बैंक इस्लामिक में. एआईए ब्रांच.
रिपोर्टर- और शहर कौन सा होगा?
मो. रियाज़- कराची. मोहम्मद रियाज़ के नाम से. 100200****
जैश का ये ऑपरेटिव आतंकी गतिविधियों के लिए पाकिस्तानी बैंकों के ज़रिए फंड जुटा रहा है. वो भी कराची जैसे बड़े शहर की ब्रांच का. तो ये कैसे हो सकता है कि पाकिस्तानी एजेंसियों को इन लेन-देन का भनक ना हो.
रिपोर्टर- अभी मैं जो आपको मदद दूंगा. आपके अकाउंट में जो पैसे डालूंगा तो मेरे लिए कोई दिक्कत तो नहीं होगी. क्योंकि पाकिस्तान में जैश पर जो पाबंदियां लगाई जा रही हैं, इमरान खान की जो सरकार है उसकी तरफ से.
मो. रियाज़- कोई दिक्कत नहीं है. ये तो मेरा प्राइवेट अकाउंट है. किसी को कोई ख़बर नहीं लगेगी.
रिपोर्टर- तो आप ये पैसे पहुंचा देंगे ना जैश को?
मो. रियाज़- जी.
ज़ाहिर है इतनी बातचीत काफी है ये साबित करने के लिए कि पाकिस्तान आतंकी के लिए जन्नत है. वो यहां जैसे चाहे रहते हैं. जहां से चाहे पैसे मंगवाते हैं. और पाकिस्तान उन्हीं पैसों से इन आतंकियों को पालती है पोसती है. और फिर अशांति फैलाने के लिए इस्तेमाल करती है. इन आतंकी संगठनों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें ये फंडिंग कहां से आ रही है. उन्हें मतलब है तो सिर्फ तबाही मचाने से.