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बालाकोट से कुपवाड़ाः POK के रास्ते भारत में घुसपैठ करते थे जैश के आतंकी

Jaish-e-Mohammed PoK Terrorist infiltration 6 एकड़ में फैले बालाकोट के इस फ़िदायीन फैक्ट्री में मुख्य ट्रेनिंग कैम्प मदरसे के पास था. इस मदरसे के दो दरवाज़े थे. जहां शीश महल और मस्कीन महल दो अहम जगह थी. पाकिस्तानी सेना और ISI यहां रहने वाले आतंकियों को थ्री स्टार सुविधा मुहैया कराती थी

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भारतीय वायु सेना ने बालाकोट में जैश के सभी आतंकी ठिकाने तबाह कर दिए (फाइल फोटो)
भारतीय वायु सेना ने बालाकोट में जैश के सभी आतंकी ठिकाने तबाह कर दिए (फाइल फोटो)

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बालाकोट मे जैश के इस शीशमहल में तमाम सुविधाएं थीं. आतंकियों के रुकने.. रहने और खाने पीने के लिए 3 स्टार होटल जैसे इंतजाम थे. आतंक के इस शीशमहल में करीब 600 से ज़्यादा आतंकी थे. जिन्हें यहां AK47, LMG, रॉकेट लॉन्चर, और हैंड ग्रेनेड चलाने की ट्रेनिंग देकर मान्यता प्राप्त आतंकी होने का सर्टिफिकेट दिया जाता था. इसके बाद कहर बरपाने के लिए इन ट्रेंड आतंकियों को POK के रास्ते कश्मीर घाटी में भेजा जाता था.

बालाकोट के आतंकी कैंप के ध्वस्त होने की बात सबको पता है. सब ये भी जानते हैं कि कैसे भारतीय वायु सेना के जांबाजों ने आतंक की फैक्ट्री को धुआं धुआं कर दिया है. अब आपको इस टेरर कैंप के अंदर के हालात बताते हैं. दरअसल, आतंक के इस शीशमहल के अंदर आतंक के तमाम सबूत हैं. वो शीशमहल ही जैश-ए-मोहम्मद का फिदायिन टेरर कैंप था.

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पाकिस्तान के मनसेहरा नारन जलखांड रोड पर मौजूद इस आतंक के ठिकाने को नेशनल हाईवे 15 भी कहा जाता है. इस आतंकी ट्रेनिंग कैंप में 600 से ज्यादा आतंकी एक साथ 5 से 6 बड़ी-बड़ी बिल्डिंग में रहते थे. इन आतंकियों को इस शीश महल के अंदर ही बने आयशा सादिक नाम के मदरसे की आड़ में फ़िदायीन हमले करने की ट्रेनिंग दी जाती थी.

आइये अब आपको बताते हैं कि कैसे होती थी जैश के आतंकियों की भर्ती? और बालाकोट के इस आतंकी कैंप में जैश के मास्टरमाइंड किस तरीके से आतंकवादियों को ब्रेनवाश कर उनको आतंकी ट्रेनिंग में शामिल करते थे. इस बात का पूरा कच्चा चिट्ठा भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास मौजूद है.

मुज्जफराबाद के सवाई नाला में मौजूद जैश के ऑफिस में सबसे पहले आतंकियों को छांटा जाता था, फिर उनके लिए इजाज़तनामा तैयार किया जाता था. फिर उसे मुजफ्फराबाद के सवाई नाला में मौजूद आतंकी कमांडर की साइन वाली चिट्ठी दी जाती थी. इस चिट्ठी में अल रहमत ट्रस्ट की मोहर लगी होती थी. इस स्टैंप के लगे होने का मतलब था कि उस आतंकी की भर्ती जैश में हो चुकी है.

खुफिया एजेंसियों से आजतक को मिली जानकारी के मुताबिक मुजफ्फराबाद के इस ऑफिस में एक रात रुकने के बाद गाड़ी के जरिए बालाकोट के आतंकी कैम्प में भर्ती हुए इन आतंकवादियों को ले जाया जाता था और फिर होता था उन्हें फ़िदायीन या आत्मघाती बनाने का सिलसिला.

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6 एकड़ में फैले बालाकोट के इस फ़िदायीन फैक्ट्री में मुख्य ट्रेनिंग कैम्प मदरसे के पास था. इस मदरसे के दो दरवाज़े थे. जहां शीश महल और मस्कीन महल दो अहम जगह थी. पाकिस्तानी सेना और ISI यहां रहने वाले आतंकियों को थ्री स्टार सुविधा मुहैया कराती थी, ताकि वो यहां से वापस न जा सकें.

यहां आतंकियों के कमांडर के साथ-साथ मसूद अजहर और उसका भाई अब्दुल रऊफ आतंकियों का ब्रेनवाश किया करते थे. वहीं पाक आर्मी के रिटायर्ड अफसर और आईएसआई बालाकोट के इस कैंप में मौजूद आतंकवादियों को हथियारों और गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दिया करते थे. बालाकोट के इस कैंप में 50 आतंकी हर समय ट्रेनिंग लिया करते थे. जिनमें से 20 से 25 आत्मघाती हमलावर होते थे.

बालाकोट के इस कैम्प में जैश के आतंकियों को 3 महीने की ट्रेनिंग दी जाती थी. ये ट्रेनिंग तीन दौर की होती थी. दौरा ए ख़ास या एडवांस कॉम्बैट कोर्स. दौरा-अल-राद या एडवांस आर्म्ड ट्रेनिंग कोर्स और रिफ्रेशर ट्रेनिंग प्रोग्राम. आतंकवादियों को बालाकोट के जैश कैम्प में AK 47, LMG, रॉकेट लॉंचर, UBGL और हैंड ग्रेनेड चलाने की ट्रेनिंग दी जाती थी. जैश के आतंकियों को यहां पर जंगल सर्वाईवल, गोरिल्ला युद्ध, कॉम्युनिकेशन, इंटरनेट और GPS मैप की ट्रेनिंग भी दी जाती थी. यही नहीं आतंकियों को तलवारबाजी, तैराकी, और घुड़सवारी का प्रशिक्षण भी दिया जाता था. और इसके बाद बालाकोट से ट्रेंड आतंकियों को POK के रास्ते कश्मीर घाटी के कुपवाड़ा में भेज दिया जाता था.

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