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सोहराबुद्दीन का भाई बोला- अमित शाह का नाम मैंने नहीं, CBI अफसर ने जोड़ा

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस समय-समय पर राजनीतिक मुद्दा बनता रहा है. ऐसे में सीबीआई कोर्ट के सामने सोहराबुद्दीन के भाई का बयान इस पूरे मामले में एक नया मोड़ ला सकता है.

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सोहराबुद्दीन केस (फाइल फोटो)
सोहराबुद्दीन केस (फाइल फोटो)

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बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. सोहराबुद्दीन शेख के भाई नयाबुद्दीन शेख ने सीबीआई कोर्ट को बताया है कि CBI ने अपने आप ही भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और गुजरात पुलिस ऑफिसर अभय चुडास्मा का नाम इस मामले में जोड़ा था. हालांकि, इस मामले में दोनों को बाद में बरी कर दिया गया था.

नयामुद्दीन ने हादसे के दिन का जिक्र करते हुए कोर्ट को बताया कि उसने अपने भाई और भाभी को बस स्टैंड पर छोड़ा था. वो दोनों हैदराबाद जा रहे थे. उन्होंने कहा कि सीबीआई ने इस केस में तुलसीराम का नाम भी जानबूझ कर प्लांट किया.

इसके अलावा उन्होंने अपने एक पुराने बयान पर सफाई दी. जो सीबीआई अफसर डीएस डागर ने लिया था. नयामुद्दीन ने कहा कि मैंने उस बयान में इस हिस्से को कभी बोला ही नहीं.

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2010 के बयान में कहा गया था कि जब मैंने चुडास्मा को बताया कि हम अपनी याचिका वापस नहीं लेंगे, तब उन्होंने मुझे धमकाया और कहा कि मेरा हाल भी सोहराबुद्दीन जैसा ही होगा. मैं इस बारे में अमित भाई से बात करूंगा और ये मध्यप्रदेश में ही हो जाएगा. वहां पर भी उनकी ही सरकार है.

नयामुद्दीन ने कहा कि उसपर कभी भी बीजेपी की तरफ से दबाव नहीं बनाया गया था, मैंने कभी आज़म खान का नाम नहीं सुना था. डागर साहब पहली बार एक ऑटोरिक्शा पर मेरे गांव में जांच करने आए थे.

मैंने कभी नहीं कहा कि चूड़ास्मा ने उन्हें 50 लाख का ऑफर दिया और याचिका वापस लेने की बात कही थी. नयामुद्दीन ने बताया कि उसने बाद में पूछा कि आखिर क्यों उसके बयान से छेड़छाड़ की गई. नयामुद्दीन ने साफ कहा कि अमित शाह और चुडास्मा ने कभी भी उसे नहीं धमकाया.

सीबीआई कोर्ट के द्वारा नयामुद्दीन को सलाह दी गई है कि वह इस केस के बारे में मीडिया से बात ना करे. नयामुद्दीन के अलावा रुबादुद्दीन और डागर भी जल्द बयान दे सकते हैं.

क्या था केस?

आपको बता दें कि सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी का नवंबर 2005 में एनकाउंटर हुआ था. इस मामले की जांच और सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजरात में इस केस की जांच को प्रभावित किया जा रहा था और केस को 2012 में मुंबई ट्रांसफर कर कहा था कि इस मामले की शुरू से अंत तक सुनवाई एक ही जज करेगा. हालांकि 2014 में ही जज जेटी उत्पत का ट्रांसफर कर दिया गया.

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उत्पत के बाद इस केस में जज बृजगोपाल लोया को लाया गया. नियुक्ति के छह महीने बाद लोया की नागपुर में एक कार्यक्रम में मौत हो गई थी. जिसपर काफी विवाद हुआ था. हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में मीडिया रिपोर्टिंग पर लगे बैन को हटा दिया था. मीडिया की रिपोर्टिंग पर बैन निचली अदालत ने 29 नवंबर के अपने आदेश में लगाया था.

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