झारखंड के धनबाद में 21 मार्च को पूर्व डिप्टी मेयर और कोयले के कारोबार के बड़े महारथी नीरज सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. नीरज सिंह माफिया किंग से राजनेता बने सूरज देव सिंह का भतीजा था. कहते हैं कि सूरज देव सिंह के इर्द-गिर्द ही फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर की कहानी बुनी गई थी. इसमें तिग्मांशु धूलिया ने रामधीर सिंह के नाम से उनका किरदार निभाया था. सूरज देव सिंह का रसूख ये था कि उनके घर पीएम भी चूड़ा-दही खाने पहुंचते थे.
धनबाद की कहानी थोड़ी टेढ़ी है. बाहर से देखिएगा तो ये सीधे साधे लोगों का शहर लगता है. मगर अंदर झाकिएगा तो मालूम चलेगा कि एक से बढ़कर एक तुर्रम खां यहां गुजरे. अव्वल कितने साबित हुए ये तो अलग बात है. कम से कम जीते जी तो यहां सारे के सारे अपने आपको फन्ने खां ही समझते रहे. हां, लेकिन एक नाम है जो जीते जी भी और मरने के बाद भी धनबाद का राजा बना, वो थे सूरज देव सिंह. जिनकी जवानी में तूती बोलती थी. लोग सिर झुकाते थे.
दो दशकों तक कायम रखा सिक्का
ये कोयलांचल हैं. जिसे हम धनबाद कहते हैं. यहां जमीन के नीचे खदानें मुद्दत से सुलग रही हैं. जमीन के ऊपर माफिया गैंगवार की जो आग लगी है. उसकी आंच पांच दशक गुज़र जाने के बाद भी बुझी नहीं है. शुरुआत 50 के दशक में हुई. जब बी.पी. सिन्हा इस इलाके में ट्रेड यूनियन के सबसे बड़े नेता के रूप में उभर रहे थे. उन्होंने बिहार और यूपी के लठैतों और बाहुबलियों की एक फौज से करीब दो दशकों तक इस इलाके में अपना सिक्का कायम रखा था.
धनबाद का सबसे बड़ा माफिया किंग
साल 1979 में उन्हें उसी सूरजदेव सिंह ने मारा जिसे उन्होंने पाला था. बीपी सिन्हा के बाद बलिया का रहने वाला सूरजदेव सिंह धनबाद का सबसे बड़ा माफिया किंग बना. सरायढेला में उसका सिंह मेंशन लंबे वक्त तक धनबाद कोयलांचल में कोयले के कारोबार से लेकर रंगदारी के धंधे और ट्रेड यूनियन के सेल्फ स्टाइल्ड सेक्रेटेरियट के रूप में मशहूर रहा. सूरज देव सिंह के मुंह से जो फरमान निकलता था. वो उस वक्त कोयलांचल का कानून बन जाता था.
डॉन के साथ खाना खाते थे पीएम
धनबाद के किसी अफसर की हिम्मत नहीं होती थी कि वो सूरज देव सिंह के कानून को चुनौती दे. धनबाद के अलग अलग थानों में सूरज देव सिंह के खिलाफ हत्या से लेकर रंगदारी के दो दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज थे. इसके बावजूद उसका राजनीतिक रसूख इतना था कि प्राइम मिनिस्टर रहे चंद्रशेखर तक उसके घर पर चूड़ा-दही खाने पहुंचते थे. लंबे वक्त तक एमएलए रहे सूरजदेव सिंह की दिल का दौरा पड़ने से 1991 में मौत हो गई. लेकिन गैंगवार होता रहा.