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SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पीछे यह था पूरा मामला

गायकवाड़ पुणे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में स्टोर कीपर हैं और उन्होंने 2011 में अपने तीन उच्च अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करवाया था. गायकवाड़ ने आरोप लगाया था कि तीनों उच्च अधिकारी उन्हें प्रताड़ित करते हैं.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

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एससी/एसटी एक्ट को कथित तौर पर शिथिल किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के जिस आदेश को लेकर सोमवार को पूरा देश जल उठा, वह पुणे के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में स्टोर कीपर का काम करने वाले दलित भास्कर गायकवाड़ की याचिका पर दिया गया था. उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए आजतक से कहा कि आरोपियों ने सर्वोच्च अदालत को गलत जानकारी दी. सर्वोच्च अदालत को गुमराह किया गया.

54 वर्षीय भास्कर गायकवाड़  पुणे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में स्टोर कीपर हैं और उन्होंने साल 2011 में अपने तीन उच्च अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करवाया था. गायकवाड़ ने आरोप लगाया था कि तीनों उच्च अधिकारी उन्हें प्रताड़ित करते हैं. गायकवाड़ के मुताबिक यह मामला साल 2009 का है, जब वो सातारा जिले के कराड शहर में सरकारी नौकरी कर रहे थे.

दरअसल गायकवाड़ का आरोप है कि उनके तीन वरिष्ठ अधिकारियों- किशोर बुराडे, सतीश भीसे और सुभाष महाजन- ने साल 2009 में विभाग में डेढ़ लाख रुपये का भ्रष्टाचार किया था और गायकवाड़ को इसका पता लग गया था. इसके बाद तीनों अधिकारी गायकवाड़ पर भ्रष्टाचार की बात छिपाने का दबाव बनाने लगे. लेकिन गायकवाड़ ने जब उनका भ्रष्टाचार छिपाने में मदद देने से मना कर दिया, तो वे गायकवाड़ को प्रताड़ित करने लगे. आखिरकार अधिकारियों की प्रताड़ना से तंग आकर गायकवाड़ ने 2011 में दलित एट्रोसिटीज एक्ट के तहत FIR दर्ज करवाया.

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इसके बाद तीनों अधिकारी गायकवाड़ पर FIR वापस लेने का दबाव बनाने लगे. गायकवाड़ का आरोप है कि 2011 से 2016 तक पुलिस भी अधिकारियों का ही साथ देती रही. इसलिए गायकवाड़ ने 2016 में दोबारा उनके खिलाफ केस दर्ज करवाया.

अबकी बार तीनों अधिकारियों ने गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट की शरण ली. लेकिन हाईकोर्ट ने अधिकारियों की याचिका खारिज कर दी. इसके बाद आरोपी अधिकारियों में से सुभाष महाजन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर गायकवाड़ पर दलित एट्रोसिटीज एक्ट के दुरुपयोग का आरोप लगा दिया.

सुभाष महाजन की इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को जांच अधिकारी को आदेश दिया कि दलित एट्रोसिटीज ऐक्ट के तहत FIR दर्ज करने से पहले तफ्तीश की जाए और प्रारंभिक जांच में शिकायत वाजिब पाए जाने के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही दलित एट्रोसिटीज ऐक्ट में बदलाव की बात भी कही.

सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ सोमवार को दलित संगठनों ने देशव्यापी बंद का आह्वान किया था. हालांकि दलितों का यह भारत बंद हिंसक हो गया. उपद्रवियों ने देशभर में जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की. इस देशव्यापी हिंसा में 10 लोगों की मौत भी हो गई. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला जीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के सामने रखा, जिस पर मंगलवार को सुनवाई हुई. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व आदेश को वापस लेने से इनकार कर दिया है.

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