अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और दिल्ली के जामिया में भड़काऊ भाषण देने वाले शरजील इमाम को पुलिस लगातार तलाश कर रही है. लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिल रहा है. शरजील की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली और अलीगढ़ पुलिस की टीम दिल्ली, यूपी समेत बिहार में भी छापेमारी कर रही हैं. उसके खिलाफ दिल्ली और अलीगढ़ पुलिस मे मामला दर्ज किया है. उस पर आईपीसी की 3 धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है.
कौन है शरजील इमाम
शरजील मूल रूप से बिहार की राजधानी पटना का रहने वाला है. वह वर्तमान में जवाहरलाल यूनिवर्सिटी (जेएनयू) का छात्र है. जहां से वो स्कॉलरशिप के साथ पीएचडी कर रहा है. हाल ही में उसके कुछ वीडियो सामने आए हैं. जिनमें वो सीएए और एनआरसी के विरोध में भड़काऊ और आपत्तिजनक भाषण दे रहा है. उसने 13 दिसंबर 2019 को जामिया में इसी तरह का भड़काऊ भाषण दिया था. उसके बाद सरकार के खिलाफ उसका एक और भड़काऊ भाषण सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से वायरल हो रहा है. अब गिरफ्तारी के डर से शरजील इमाम फरार है. 2 दिन से उसका मोबाइल फोन भी बंद आ रहा है. शरजील की लास्ट लोकेशन पटना के पास दिघा मार्ग की थी. उसकी तलाश में बिहार के जहानाबाद में भी छापेमारी की गई है. उधर, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित जानी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा कि वह शरजील की गर्दन काटने वाले को अपनी निजी कमाई से 1 करोड़ रुपया इनाम देगा.
ये ज़रूर पढ़ें- What is Section-144, कानून व्यवस्था बनाने में होता है इस्तेमाल
शरजील के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा
दिल्ली पुलिस ने शरजील इमाम के बयानों को मद्देनजर रखते हुए उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए, 153 ए और 505 ए के तहत मुकदमा दर्ज किया है. इन धाराओं का इस्तेमाल शब्दों द्वारा अपराध, या तो बोला गया या लिखित रूप से कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ असहमति. अलग धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने के इरादे से बयान देना या उन्हें बढ़ावा देना. सार्वजनिक उपद्रव के लिए जिम्मेदार बयान भी इसकी वजह हो सकते हैं. इन धाराओं में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को तीन साल तक की कैद हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. अब आपको विस्तार से बताते हैं इन धाराओं के बारे में.
आईपीसी की धारा 124 ए
भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 124 ए को ही राजद्रोह का कानून कहा जाता है. अगर कोई व्यक्ति देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधि को सार्वजनिक रूप से अंजाम देता है तो वह 124 ए के अधीन आता है. साथ ही अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है. राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है. इन गतिविधियों में लेख लिखना, पोस्टर बनाना, कार्टून बनाना जैसे काम भी शामिल हैं. इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर शख्स को 3 साल की कैद से लेकर अधिकमत उम्रकैद की सजा का प्रावधान है.
कानून का इतिहास
यह कानून अंग्रेजों के जमाने का है. यह कानून अंग्रेजों ने 1860 में बनाया था. 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया. उस वक्त अंग्रेज इस कानून का इस्तेमाल उन भारतीयों के लिए करते थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाते थे. आजादी की लड़ाई के दौरान भी देश के कई क्रांतिकारियों और सैनानियों पर इस धारा के तहत मामले दर्ज किए गए थे. आजादी से पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक को भी इस कानून के चलते सजा दी गई थी. तिलक को 1908 में उनके एक लेख की वजह से 6 साल की सजा सुना दी गई थी. वहीं महात्मा गांधी को भी अपने लेख की वजह से इस कानून के तहत आरोपी बनाया गया था. देश आजाद होने के बाद इस कानून में कई बदलाव भी किए गए हैं. अगर हाल ही के चर्चित मामलों की बात करें तो पिछले सालों में काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी, हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार आदि को इस कानून के तहत ही गिरफ्तार किया गया था.
Must Read: कानून की इस धारा के तहत मिल सकती है सजा-ए-मौत
आईपीसी की धारा 153 ए
भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 153 के अनुसार, जो भी कोई शख्स अवैध बातें करके किसी व्यक्ति को द्वेषभाव या बेहूदगी से निशाना बनाता है और ऐसे भाषण या बयान से परिणामस्वरूप उपद्रव हो सकता है. तो वे मामले इसी धारा के तहत आते हैं. अगर उपरोक्त भाषण या बयान की वजह से उपद्रव होता है, तो दोषी व्यक्ति को किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया भी जा सकता हैय साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. या फिर सजा के तौर पर दोनों ही लागू हो सकते हैं. लेकिन अगर उपरोक्त आपत्तिजनक भाषण या बयान से उपद्रव नहीं होता तो भी दोषी को किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है और उस सजा को 6 माह तक बढ़ाया जा सकता है. या जुर्माना और कैद दोनों हो सकते हैं.
ऐसे अपराध में लिप्त दोषी को उपद्रव हो जाने पर एक वर्ष कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों हो सकते हैं. हालांकि यह एक जमानती और संज्ञेय अपराध है. जो किसी भी मेजिस्ट्रेट की अदालत में विचारणीय हो सकता है. अगर उपरोक्त मामले में उपद्रव नहीं होता है तो दोषी को 6 महीने कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों हो सकते हैं. यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है. जिसे प्रथम श्रेणी के मेजिस्ट्रेट सुन सकते हैं. इस तरह के मामले में समझौता नहीं हो सकता.
आईपीसी की धारा 505 ए
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 505 के अनुसार, अगर भारत की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक विद्रोह करे या वह अपने कर्तव्य की अवहेलना करे या उसके पालन में असफल रहे. या सामान्य जन या जनता के किसी भाग को ऐसा डर हो, जिससे कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध या सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो. या किसी वर्ग या समुदाय को किसी दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए उकसाया जाए. या इस तरह के बयानों या आपत्तिजनक भाषणों की रचना, प्रकाशित और प्रसार करे. तो आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 505 ए के तहत मुकदमा होता है. दोषी पाए जाने पर उस शख्स को किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया भी जा सकता है. ये दोनों
धारा 505 की उपधारा 1
विभिन्न वर्गों में दुश्मनी या नफरत पैदा करना. वैमनस्य पैदा करना. या आपत्तिनक भाषण या बयान देना, जिससे विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करना या धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधार पर लोगों को बांटना या ऐसी कोशिश करना. या इससे संबंधित साजिश रचना. ऐसे विचारों को प्रचारित प्रसारित करना. इसी धारा के तहत आता है. ऐसे में दोषी पाए गए व्यक्ति को किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है. उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. या फिर कैद और जुर्माना दोनों.
धारा 505 की उपधारा 2
पूजास्थल आदि में किसी जनसमूह में, जो धार्मिक पूजा या कर्म करने में लगा हुआ हो और उन्हें कोई व्यक्ति आपत्तिनक भाषण या बयान के माध्यम से भड़काने की कोशिश करे तो दोषी को किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है, जिसे पांच साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है. साथ ही इसमें जुर्माने का प्रावधान भी है.
सैन्य-विद्रोह या सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराध करने के मकसद से झूठे बयान देना आदि परिचालित करना. विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने के आशय से झूठे बयान आदि फैलाना. शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने के आशय से पूजा के स्थान आदि में झूठे बयान या भाषण आदि देना. इसी धारा के तहत आते हैं. ये गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है. जो समझौता करने योग्य नहीं हैं.