ऐसी संभावना है कि भारत फिर से मिशन शक्ति (Mission Shakti) करे. ताकि यह जांच की जा सके कि पृथ्वी डिफेंस व्हीकल मार्क-2 (PDV MK-II) का प्रोडक्शन स्टेटस, उसकी ताकत और क्षमता की जांच की जा सके. भविष्य में होने वाले एंटी-सैटेलाइट टेस्ट ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
संभव है कि किसी एक जगह पर रुके हुए सैटेलाइट की जगह इस बार निशाना कोई तेजी से चलता हुआ इलेक्ट्रॉनिक सैटेलाइट या यंत्र हो. हालांकि अभी तक इसे लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं आई है. लेकिन ऐसी खबरें आ रही हैं. 27 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल टेस्ट की जानकारी देकर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था.
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इस टेस्ट में DRDO द्वारा बनाई गई पृथ्वी डिफेंस व्हीकल मार्क-2 (PDV MK-II) से भारतीय सैटेलाइट माइक्रोसैट-आर को धरती की निचली कक्षा में मार गिराया गया था. पर मुद्दा ये है कि इस तरह के टेस्ट जरूरी क्यों हैं? क्या इनके होने से दुनिया में देश की ताकत का प्रदर्शन होता है? क्या इससे भारत की ताकत में सच में इजाफा होगा?
भारत के पास कौन सा ASAT है?
भारत के पास एंटी-सैटेलाइट मिसाइल के लिए पृथ्वी एयर डिफेंस (पैड) सिस्टम है. इसे प्रद्युम्न बैलिस्टिक मिसाइइल इंटरसेप्टर भी कहते हैं. यह पृथ्वी के वातावरण से बाहर और पृथ्वी के वातावरण से अंदर के टारगेट पर हमला करने में सक्षम हैं. हमारे वैज्ञानिकों ने पुराने मिसाइल सिस्टम को अपग्रेड किया है.
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उसमें नए एलीमेंट जोड़े हैं. इसका मतलब ये है कि पहले से मौजूद पैड सिस्टम को अपग्रेड कर तीन स्टेज वाला इंटरसेप्टर मिसाइल बनाया गया. फिर मिशन शक्ति के परीक्षण में उसी का मिसाइल का इस्तेमाल किया गया. भारतीय ASAT मिसाइल की रेंज 2000 किमी है. यह 1470 से 6126 km/hr की रफ्तार से स्पेस में जाती है.
बाद में इसे अपग्रेड कर ज्यादा ताकतवर और घातक बनाया जा सकता है. DRDO ने बैलिस्टिक इंटरसेप्टर मिसाइल के जरिए 300 किमी की ऊंचाई पर मौजूद उपग्रह को मार गिराया था.
क्या हैं एंटी-सैटेलाइट हथियार?
ऐसी मिसाइल या रॉकेट जो तेज गति से जाकर अंतरिक्ष में दुश्मन देश के सैटेलाइट को मार गिराए. उसे एंटी-सैटेलाइट हथियार (ASAT Weapon) कहते हैं.
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एंटी-सैटेलाइट हथियारों का इतिहास
बात 1957 की है जब सोवियत संघ ने दुनिया का पहला सैटेलाइट स्पुतनिक-1 लॉन्च किया. अमेरिका को लगा कि दुश्मन धरती की कक्षा में परमाणु हथियार तैनात कर रहा है. तब अमेरिका ने पहला ASAT बनाया. यह हवा से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल थी, जिसका नाम था बोल्ड ओरियन.
फिर सोवियत ने भी अपना ASAT बना डाला. नाम दिया को-ऑर्बिटल्स (Co-Orbitals). ये हथियार अपने और दुश्मन के सैटेलाइट के साथ उड़ते रहते. जैसे जरूरत पड़ती उसके मुताबिक ये खुद फट जाते. साथ ही दुश्मन के सैटेलाइट को खत्म कर देते.
2007 में चीन भी इस रेस में शामिल हुआ. उसने अपनी बैलिस्टिक मिसाइल से अंतरिक्ष में अपने पुराने मौसम सैटेलाइट को उड़ाया. जिससे अंतरिक्ष में काफी ज्यादा कचरा फैल गया.
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एंटी-सैटेलाइट हथियार के प्रकार?
ASATs दो तरह के होते हैं. पहला मिसाइल की काइनेटिक ऊर्जा का फायदा उठाकर किसी सैटेलाइट से टकरा देने से सैटेलाइट खत्म हो जाती है. दूसरा नॉन-काइनेटिक हथियार. यानी साइबर अटैक किया जाता है. सैटेलाइट्स को लेजर के जरिए बेकार कर दिया जाता है. ऐसे हमले हवा, धरती की निचली कक्षा या फिर जमीन से भी कर सकते हैं.
कौन से देश है इस रेस में शामिल?
चार देशों ने अब तक अपने पुराने सैटेलाइट्स को मार गिराने के लिए अपनी मिसाइलों का उपयोग किया है. ये है- भारत, अमेरिका, रूस और चीन. लेकिन बाद में अमेरिका और रूस ने आपस में यह तय किया कि वो ASATs को खत्म करेंगे. ताकि परमाणु हथियारों के जंग से राहत मिल सके. रूस ने जब अपने पुराने सैटेलाइट्स को उड़ाया तब अमेरिका ने मिसाइलों से सैटेलाइट्स को उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया. क्योंकि इससे निकलने वाला कचरा अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के लिए खतरनाक साबित होता है.