लगता है कि मणिपुर हिंसा का दूसरा फेज शुरू हो गया है. कुकी-जो आतंकियों ने इंफाल के कोत्रक में हाईटेक ड्रोन्स के जरिए कई जगहों पर RPG गिराए. आरपीजी यानी रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रैनेड्स. कम से कम ऐसे सात आरपीजी का इस्तेमाल किया गया. हाईटेक ड्रोन का मतलब वो नहीं जो रूस, यूक्रेन, इजरायल और ईरान इस्तेमाल कर रहे हैं.
ये वो सामान्य क्ववॉडकॉप्टर ड्रोन्स हैं, जो कैमरे से लैस हैं. नेविगेशन सिस्टम लगा है. उन्हें आसानी से एक घंटे तक उड़ाया जा सकता है. उनमें लगे हथियार को कहीं भी गिराया जा सकता है. पर इस तरह के हमले का आइडिया कहां से आया? विदेशी जंग देख कर. असल में कहानी शुरू होती है जून महीने से. वो भी असम से.
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इस साल 14 जून को गुवाहाटी से करीब 30 किलोमीटर पूर्व दिशा में मणिपुर के एक व्यक्ति को 10 इंटेलिजेंट फ्लाइट बैटरी के साथ टोल गेट पर पुलिस ने पकड़ा. असम पुलिस इस घटना से हैरान रह गई. लगा कि सिविल वॉर से जूझ रहा म्यांमार भारत के अंदर कुछ न कुछ पका रहा है. यह संदेह तब पुख्ता हो गया, जब गुवाहाटी के रूपनगर इलाके में एक व्यक्ति दोपहिया गाड़ी में ड्रोन के पार्ट्स लेकर पकड़ाया.
जून में सामने आई दो कहानियां जो ड्रोन हमले की आशंका बताती हैं
पहले टोल गेट की कहानी... मणिपुर के कांगपोक्पी जिले के गामन्गई गांव के 27 वर्षीय खाईगोलेन किपगेन को गुवाहाटी से 30 किलोमीटर दूर सोनापुर टोल गेट पर पकड़ा गया. इसका लिंक कुकी-जो आतंकियों के साथ था. उधर जो रूपनगर में संजीब कुमार मिश्रा के पास से जो ड्रोन के पार्ट्स मिले थे, वो मैतेई समूहों के लिए जा रहे थे.
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जून में असम पुलिस के आला अधिकारियों ने ये बात मानी थी कि दोनों नस्लीय समूह अपने अपने हथियारबंद दस्ते के लिए ड्रोन्स का जुगाड़ कर रहे हैं. इनकी सप्लाई के दो ही रास्ते हैं. पहला एनएच-27 जो नगालैंड से होते हुए मणिपुर जाता है. दूसरा सिलचर वाला रास्ता जो असम की बराक घाटी से जाता है.
म्यांमार से आए रेफ्यूजी को भी था ड्रोन के जरिए हवाई हमले का डर
इन दोनों घटनाओं से कुछ दिन पहले ही असम राइफल्स के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल प्रदीम चंद्रन नायर ने कहा था कि मणिपुर के कामजोंग जिले में मौजूद म्यांमार के 5400 रेफ्यूजी को हवाई हमले का डर है. आशंका किसी तरह के ड्रोन हमले की है. तब तक ड्रोन का इस्तेमाल किसी नस्लीय समूह ने नहीं किया था.
🚩On 30th Aug., we WARNED of high possibility of 2nd round of #ManipurViolence by Myanmar based Kuki Terrorists. Look what they have done in Koutruk in Imphal Valley yesterday (1st Sept.2024). They have used drone to drop bombs in civilian areas and killed a mother and villager,… https://t.co/4iB9M5v4NW pic.twitter.com/yYxmiujR01
— Kaito.W (@KaitoMeitei) September 2, 2024
ड्रोन हमले का इस्तेमाल एथनिक ग्रुप्स में नहीं हो रहा था. यह पहली बार है जब कुकी समुदाय के लोगों ने मैतेयी को निशाना बनाने के लिए ड्रोन से आरपीजी गिराए. इंफाल घाटी मणिपुर के केंद्र में है. कोत्रक गांव भी. ऐसे में ये इलाके ड्रोन हमले के लिए सबसे ज्यादा मुफीद है. इन हथियारों को आराम से उड़ाया जा सकता है.
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Deadly escalation in Manipur, use of drones and RPGs to target villagers, says police.
— ASHUTOSH MISHRA (@JournoAshutosh) September 1, 2024
"In an unprecedented attack in Koutruk, Imphal West, alleged Kuki militants have deployed numerous RPGs using high-tech drones. While drone bombs have commonly been used in general war fares,… https://t.co/Z8xN0WiQTO
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कुछ वीडियो दिखाई दे रहे हैं. जिनकी सत्यता आजतक प्रमाणित नहीं करता. उनमें दिखाया जा रहा है कि कैसे कुछ लोग क्वॉडकॉप्टर में आरपीजी लटका कर उसे उड़ा रहे हैं. उसके बाद बाकायदा हमले का वीडियो बनाया जाता है. इसका मतलब ये है कि हो सकता है कि इन्हें किसी प्रोफेशनल से ट्रेनिंग मिली हो.
पिछली हिंसा में पुलिस से 5600 हथियार, 6.5 लाख गोलियां लूटी गईं
पहाड़ियों और पेड़ों के ऊपर से बम गिराए जा सकते है. पिछले छह दशकों से आतंकियों के लिए मणिपुर आसान रास्ता रहा है. पिछले साल हुई कुकी-मैतेयी हिंसा के दौरान 5600 हथियारों और 6.5 लाख गोलियों की लूट हुई थी. ये हथियार मणिपुर पुलिस आर्मरी से लूटे गए थे. अब तक पुलिस ने 1757 लूटे हुए हथियारों को जमा किया है.
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कुकी-मैतेयी एथनिक वॉर में ड्रोन हमले का क्या मतलब है?
पिछले साल तक ड्रोन का इस्तेमाल एक दूसरे के इलाकों में हथियारबंद गुटों पर नजर रखने के लिए होता था. लेकिन बीते दो दिनों में ड्रोन से बमबारी की घटना गंभीर सवाल खड़े कर रही है. मणिपुर पुलिस के मताबिक ड्रोन का इस्तेमाल आधुनिक वॉरफेयर में होता है पर इसका इस्तेमाल सिविलियन के खिलाफ नई आक्रामकता दिखा रहा है.
साल 2023 के जुलाई और अगस्त महीने में आक्रामक हिंसा के दौरान एक दूसरे के इलाकों में रॉकेट से हमला करने के लिए पंपी गन का इस्तेमाल होता था. यह एक तरह का रॉकेट लॉन्चर था जिसे घरेलू पाइप से बनाते थे. इसका इस्तेमाल करके एक दूसरे के इलाकों में लंबी दूरी तक बम फेंकने के लिए भी किया जाता था.
मणिपुर निवासी और कारगिल युद्ध में रहे रिटा. लेफ्टिनेंट जनरल कोशय हिमालय कहते हैं कि मणिपुर में संघर्ष सिर्फ़ जातीय संघर्ष नहीं है. यह मैतेयी-कुकी जातीय संघर्ष से कहीं आगे निकल गया है. ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है. पिछले 48 सालों में ड्रोन हमले हमारे देश के आंतरिक सुरक्षा तंत्र के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए.
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ड्रोन हमले की तकनीक कुकी उग्रवादियों को कहां से मिली हो सकती है?
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल हिमालय कहते हैं कि इन उग्रवादियों के पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) के साथ बहुत करीबी संबंध हैं. ये आतंकी संगठन पड़ोसी देश म्यांमार की सैन्य जुंटा के खिलाफ हैं. पीडीएफ म्यांमार सेना के खिलाफ हमलों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है.
पूरी संभावना है कि चीन में बने ऐसे ड्रोन म्यांमार के रास्ते इन उग्रवादियों के पास पहुंच रहे हों. लेकिन जिस तरह से इन ड्रोन को लोकल हथियारों के साथ वेपन का इस्तेमाल हो रहा है. ऐसे में पूरी संभावना है कि विदेशी शक्तियां भी इसमें शामिल हों.
ड्रोन हमले का मणिपुर के Security Apparatus पर क्या असर हो सकता है?
हिमालय कहते हैं कि सोफिस्टिकेटेड हथियार और ड्रोन का इस्तेमाल करके बॉम्बिंग पूरे मणिपुर के लिए खतरा है. एक नए आतंकी हमले का तरीका है. इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों को चौकस होना होगा. क्योंकि यह सिर्फ मणिपुर नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है. जिस तरह नई तकनीक और नए तरीकों से आतंकी हमलों को अंजाम दिया जा रहा है. सुरक्षा एजेंसियों को नई रणनीति के तहत अब इन्हें हैंडल करना होगा.