यूक्रेन-रूस से गाजा वॉर तक ड्रोन साबित हो रहा मॉडर्न वॉरफेयर का अचूक हथियार. क्षेत्रीय सुरक्षा, रक्षा आधुनिकीकरण और व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य के लिए बेहद जरूरी है. ड्रोन सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. वे सटीक मारक क्षमता के साथ मानव जोखिम को कम करते हैं. पहले वे टोही और निगरानी के लिए उपयोग होते थे, लेकिन अब वे हमले में भी उपयोग किए जाते हैं.
भारत की ड्रोन रणनीति क्या है?
भारत, पाकिस्तान और चीन के साथ अपनी सीमाओं की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए अपनी ड्रोन क्षमताओं में सुधार कर रहा है. भारतीय सेना अपनी सीमाओं पर स्थिति की जानकारी और खुफिया तंत्र को मजबूत करने के लिए ड्रोन का उपयोग कर रही है.
स्वदेशी प्रयास
भारत विदेशी निर्भरता कम करने के लिए स्वदेशी ड्रोन बना रहा है. DRDO ने रुस्तम और नेत्र जैसे ड्रोन विकसित किए हैं, जो टैक्टिकल निगरानी और टोह लेने में मदद करते हैं.
यह भी पढ़ें: Bangladesh New Drone: बांग्लादेश ने भारत सीमा के पास तैनात किया खतरनाक ड्रोन, अलर्ट पर इंडियन आर्मी
ड्रोन का रणनीतिक उपयोग
भारत ने भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन सीमाओं पर ड्रोन तैनात किए हैं. ये ड्रोन निगरानी और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने में मदद करते हैं. वास्तविक समय में दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखते हैं.
आतंकवाद विरोधी अभियान
भारत ने जम्मू-कश्मीर में अपने आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी ड्रोन का उपयोग किया है. यूएवी आतंकवादी ठिकानों की पहचान करने और जमीनी बलों को खुफिया जानकारी प्रदान करने में मदद करते हैं. 2019 पुलवामा हमले जैसी घटनाओं के बाद अधिक उन्नत ड्रोन प्रणालियों की आवश्यकता और तैनाती को बढ़ा दिया है ताकि खतरों को सटीकता से निष्क्रिय किया जा सके.
अधिग्रहण और साझेदारी
भारत ने अपनी ड्रोन क्षमता बढ़ाने के लिए इज़राइल और अमेरिका के साथ समझौते किए हैं. इससे भारत को लंबी दूरी की निगरानी और लक्षित हमलों की क्षमता मिलेगी. इज़राइल के हेरोन ड्रोन और अमेरिकी एमक्यू-9 रीपर भारतीय सेना के लिए फायदेमंद साबित हो रहे हैं.
यह भी पढ़ें: जिस ड्रोन से हुआ था अल-जवाहिरी का खात्मा वो इंडिया को मिलने जा रहा, जानिए MQ-9B Hunter Killer Drone की खासियत
अब जानिए भारतीय ड्रोन्स के बारे में...
MQ9 Reaper
अमेरिका के साथ इस ड्रोन की डील हुई है. भारत में ड्रोन्स के मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल के लिए फैसिलिटी भी बनाई जाएगी. यानी इस डील की कुल कीमत है 34,500 करोड़ रुपए. इस डील के तहत 31 ड्रोन्स में से तीनों सेनाओं को अलग-अलग संख्या में ड्रोन्स मिलेंगे.
दुनिया का सबसे खतरनाक ड्रोन है MQ-9B रीपर. इन ड्रोन्स को चार जगहों पर तैनात किया जाएगा. चेन्नई में आईएनएस राजाली, गुजरात के पोरबंदर में. इनका संचालन भारतीय नौसेना करेगी. वायुसेना और आर्मी इन्हें गोरखपुर और सरसावा एयरफोर्स बेस पर संचालित करेंगे.
गोरखपुर और सरसावा बेस से चीन के लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश पर निगरानी रखना आसान हो जाएगा. 15 ड्रोन्स समुद्री इलाकों की निगरानी के लिए होंगे. बाकी चीन और पाकिस्तान की सीमाओं की निगरानी के लिए तैनात किए जाएंगे.
सर्विलांस, जासूसी, सूचना जमा करना या फिर दुश्मन के ठिकाने पर चुपके से हमला करना. ज्यादा समय तक और ज्यादा ऊंचाई से निगरानी करने में सक्षम हैं. इसकी रेंज 1900 KM है. यह अपने साथ 1700 KG वजन का हथियार लेकर जा सकता है. इसे दो कंप्यूटर ऑपरेटर्स ग्राउंड स्टेशन पर बैठकर वीडियो गेम की तरह इसे चलाते हैं. इस ड्रोन की लंबाई 36.1 फीट, विंगस्पैन 65.7 फीट, ऊंचाई 12.6 फीट होती है. ड्रोन का खाली वजन 2223 Kg होता है.
ड्रोन में 1800 किलोग्राम ईंधन की क्षमता होती है. इसकी गति 482 km/hr है. जो 50 हजार फीट की ऊंचाई से दुश्मन को देखकर उसपर मिसाइल से हमला कर सकता है. आमतौर पर 25 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ाया जाता है. हथियारों के नाम पर मिसाइल लगाए जाते हैं. इसमें सात हार्ड प्वाइंट होते हैं, इसमें 4 AGM-114 Hellfire मिसाइलें लगी होती हैं, ये हवा से जमीन पर सटीकता से हमला करती हैं. इसके अलावा दो लेजर गाइडेड GBU-12 Paveway II बम भी लगाए जाते हैं.
यह भी पढ़ें: इंडियन नेवी को जल्द मिलेगी हंटर-किलर सबमरीन, समंदर में कम होगी चीन की हेकड़ी
Heron Drones
भारतीय सेना को इजरायल ने ऐसे ड्रोन्स दिए हैं, जिनके कैमरे, सेंसर्स और राडार किसी बाज की नजरों की तरह तेज हैं. इनका नाम हेरोन ड्रोन्स (Heron Drones) है. भारतीय सेना ने चार हेरोन ड्रोन्स को लद्दाख सेक्टर में तैनात कर दिया है. चीन की हर गतिविधि की जानकारी भारतीय सेना और इंटेलिजेंस को मिलती रहेगी.
इजरायल से मिले ये चार हेरोन ड्रोन्स अत्याधुनिक हैं. भारतीय सेना में मौजूद सभी ड्रोन्स की तुलना में इनकी ताकत, क्षमता, उड़ान का समय सबकुछ बेहद ज्यादा है. इन ड्रोन्स कोई किसी तरह से भी जैम नहीं किया जा सकता. हेरोन ड्रोन एक बार हवा में उठा तो 52 घंटे तक उड़ान भरने में सक्षम है. यह जमीन से 35 हजार फीट यानी साढ़े दस किलोमीटर की ऊंचाई पर बेहद शांति से उड़ता रहता है.
इसे नियंत्रित करने के लिए जमीन पर एक ग्राउंड स्टेशन बनाया जाता है. जिसमें मैन्युअल और ऑटोमैटिक कंट्रोल सिस्टम होता है. यह ड्रोन किसी भी मौसम में उड़ान भरने में सक्षम है. हेरोन ड्रोन (Heron Drone) में कई तरह के सेंसर्स और कैमरा लगे हैं. जैसे- थर्मोग्राफिक कैमरा यानी इंफ्रारेड कैमरा जो रात में या अंधेरे में देखने में मदद करते हैं. इसके अलावा विजिबल लाइट एयरबॉर्न ग्राउंड सर्विलांस जो दिन की रोशनी में तस्वीरें लेता है.
साथ ही इंटेलिजेंस सिस्टम्स समेत कई तरह के राडार सिस्टम लगे है. इस ड्रोन की सबसे बड़ी बात ये है कि ये आसमान से ही टारगेट को लॉक करके उसकी सटीक पोजिशन आर्टिलरी यानी टैंक या इंफ्रारेड सीकर मिसाइल को दे सकता है. यानी सीमा के इस पास से ड्रोन से मिले सटीक टारगेट पर हमला किया जा सकता है.
डीआरडीओ अभ्यास
डीआरडीओ अभ्यास एक उच्च गति वाला खर्च करने योग्य हवाई लक्ष्य (हीट) है, जो भारतीय सशस्त्र बलों के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टाब्लिशमेंट (ADE) द्वारा विकसित गया है. यह एक ड्रोन है जो विभिन्न मिसाइल प्रणालियों के लिए एक लक्ष्य के रूप में उपयोग किया जाएगा.
डीआरडीओ घातक
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने इसके आकार, वजन, रेंज आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. लेकिन ये माना जा रहा है कि यह 30 हजार फीट की ऊंचाई तक जा सकता है. इसका वजन 15 टन से कम है. इस ड्रोन से मिसाइल, बम और प्रेसिशन गाइडेड हथियार दागे जा सकते हैं. इसमें स्वदेशी कावेरी इंजन लगा है. यह 52 किलोन्यूटन की ताकत विमान को मिलती है. अभी जो प्रोटोटाइप है उसकी लंबाई 4 मीटर है. विंगस्पैन 5 मीटर है. यह 200 किलोमीटर की रेंज तक जमीन से कमांड हासिल कर सकता है. अभी एक घंटे तक उड़ान भर सकता है.
डीआरडीओ रुस्तम
यह एक मध्यम ऊंचाई वाला लंबी दूरी की उड़ान भरने वाला ड्रोन है, जिसे भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है. यह ड्रोन हरोन ड्रोन की जगह लेगा और सैन्य अभियानों में मदद करेगा.
HAL कैट्स क्लास ड्रोन
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने Aero India 2025 में एक ऐसे ड्रोन पेश किया है, जो दुश्मन की हालत पस्त कर देंगे. ये हैं CATS क्लास के ड्रोन. CATS क्लास के ड्रोन निगरानी, जासूसी, सामान्य हमला और आत्मघाती हमला करने में सक्षम होंगे. 100 से 170 km की रेंज तक तक ये तबाही मचा देंगे.
एक ही ड्रोन से कई तरह के काम लिए जाएंगे. इन्हें फाइटर जेट में लगाकर उड़ाने से रेंज, सटीकता और मारक क्षमता और ज्यादा बढ़ जाती है. ये अगले एक-दो साल में तैयार हो जाएंगे. इसका नाम है CATS यानी कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम. इसे सिर्फ हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड नहीं बना रहा.
बल्कि उसके साथ DRDO और दो अन्य संस्थान भी शामिल हैं. भविष्य में इनका उपयोग आमतौर पर भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना करेंगे. CATS के चार वैरिएंट्स बनाए जाएंगे. कैट्स वारियर (CATS Warrior), कैट्स हंटर (CATS Hunter), कैट्स अल्फा (CATS Alfa) और कैट्स इन्फिनिटी (CATS Infinity).
यह भी पढ़ें: Aero India 2025 में रूसी Su-57 और अमेरिकी F-35... कौन सा स्टेल्थ फाइटर जेट भारत के लिए बेहतर?
कैट्स वारियर
कैट्स वारियर ड्रोन में PTAE-7 ट्विन टर्बोजेट इंजन लगा है. ये ड्रोन 2-4 का फॉर्मेशन बनाकर हमला करता है. यह स्टेल्थ ड्रोन है. यानी राडार को धोखा देने में माहिर. रेंज है 150 km. यह निगरानी, जासूसी, हमला और आत्मघाती हमला करने में सक्षम है.
सुसाइड मिशन पर इसकी रेंज को बढ़ाकर 700 km कर सकते हैं. यह ऐसा ड्रोन है जिसमें दो कैट्स अल्फा (CATS Alfa-S) ड्रोन भी भेज सकते हैं. ये इन दोनों ड्रोन्स को दुश्मन पर दाग कर वापस आ सकता है. HAL इस ड्रोन के लिए 390 करोड़ रुपए निवेश कर रहा है.
कैट्स हंटर
कैट्स हंटर ड्रोन का वजन 600 kg है. इसमें भी PTAE-7 इंजन लगा है. इसका डिजाइन मिसाइल की तरह बनाया गया है. यह स्टैंडऑफ एयर लॉन्च्ड क्रूज मिसाइल जैसे दागी जाएगी. इसे भारतीय वायुसेना अपने फाइटर जेट्स मिराज-2000, जगुआर या सुखोई सू-30एमकेआई में लगा सकते हैं. इसके विंग्स मुड़ सकते हैं. यह 250 kg वजन का हथियार उठा सकता है. या खुद आत्मघाती हथियार बन सकता है. इसकी रेंज 200 से 300 km है. एक बार टारगेट पर बम गिराने के बाद ये वापस भी लौट सकता है.
कैट्स अल्फा
कैट्स अल्फा स्वार्म अटैक के लिए बनाया गया है. यह एयर लॉन्च्ड फ्लेक्सिबल एसेट स्वार्म (ALFA-S) नाम से जाना जाता है. आत्मघाती हथियार है. यह ग्लाइड करते हुए 100 km की रेंज तक जा सकता है. यह 5 से 8 kg विस्फोटक लेकर 100 km/hr की रफ्तार से दुश्मन पर हमला कर सकती है. यह करीब 2 मीटर लंबी है. इसका वजन 25 kg है. इसे फाइटर जेट्स में लगा सकते हैं. जगुआर में 24 ALFA-S और सुखोई में 30 से 40 अल्फा ड्रोन दागे जा सकते हैं.
कैट्स इन्फिनिटी
इसे न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी विकसित करने में लगी है. यह हाई एल्टीट्यूट सूडो सैटेलाइट (HAPS) की तरह इस्तेमाल होगी. यह ऐसा ड्रोन होगा जो 70 हजार फीट की ऊंचाई पर तीन महीने तक लगातार उड़ान भरेगा. वजन 500 kg होगा. यह इतनी ऊंचाई से लगातार निगरानी कर सकता है. इसका विंग स्पैन 50 मीटर होगा. क्रूज स्पीड 90 से 100 km होगी. मुख्य काम जासूसी, निगरानी होगा. भविष्य में इसे हमला करने के लिए भी तैयार कर सकते हैं.
यह भी पढ़ें: Aero India शो में भारत के नए फाइटर जेट का योद्धा फॉर्मेशन, IAF की बढ़ाएगा ताकत
DRDO TAPAS
तपस (TAPAS) का पूरा नाम है टैक्टिकल एयरबॉर्न प्लेटफॉर्म फॉर एरियल सर्विलांस बेयॉन्ड होराइजन (Tactical Airborne Platform for Aerial Surveillance-Beyond Horizon). तपस का मतलब गर्मी होता है. यह एक संस्कृत शब्द है. तपस एक मेल (MALE) ड्रोन है. यानी मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस ड्रोन.
इसे डीआरडीओ की ही एक ब्रांच एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट इस्टैबलिशमेंट ने बनाया है. तीनों सेनाओं ने मिलकर 76 तपस ड्रोन्स की मांग की है. इसमें से 60 इंडियन आर्मी के पास जाएंगे. 12 इंडियन एयरफोर्स और 4 ड्रोन इंडियन नेवी के पास भेजे जाएंगे. यह अमेरिका के जनरल एटॉमिक्स के MQ-1 प्रीडेटर ड्रोन जैसा ही है.
तपस ड्रोन खुद ही टेकऑफ और लैंड कर सकता है. यह रीयल-टाइम, हाई-रेजोल्यूशन इंटेलिजेंस, सर्विलांस एंड रीकॉन्सेंस, SAR, EO जैसे काम कर सकता है. अगर टारगेट तय कर दिया जाए तो यह लेजर बीम डालकर उसे रोशन कर सकता है, जिसके बाद लेजर गाइडेड मिसाइल या फाइटर जेट से हमला किया जा सकता है.
अगर कम ऊंचाई पर उड़ा रहा हो तो यह अपने हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइल से भी हमला कर सकता है. यह 350 किलोग्राम वजनी पेलोड लेकर उड़ सकता है. 31.2 फीट लंबे इस ड्रोन का विंगस्पैन 67.7 फीट है. इसमें तीन ब्लेड वाले प्रोपेलर लगे हैं, जो इसे उड़ने की ताकत देते हैं.
तपस ड्रोन अधिकतम 224 km/hr की रफ्तार से लगातार 1000 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है. यह लगातार 24 घंटे तक उड़ान भरने की क्षमता रखता है. अधिकतम 35 हजार फीट की ऊंचाई तक जा सकता है. तीनों सेनाओं को यह ड्रोन मिलने के बाद अमेरिकी और इजरायली ड्रोन्स खरीदने नहीं पड़ेंगे. अपने ड्रोन्स के जरिए ही जासूसी, निगरानी और जरुरत पड़ने पर हमला किया जा सकेगा.
डीआरडीओ इम्पीरियल ईगल
यह एक हल्का और छोटा ड्रोन है, जो सुरक्षा बलों के लिए उपयोगी होगा. इसके प्रमुख ग्राहक राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड और सैन्य बल होंगे.
डीआरडीओ कपोथका
यह एक छोटा ड्रोन है, जो टोह लेने और निगरानी के लिए विकसित किया गया है. यह निशांत ड्रोन प्रणाली का पहला संस्करण है.
यह भी पढ़ें: ऊंचाई पर चीन के साथ टैंक युद्ध को सेना तैयार, एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल के साथ किया युद्धाभ्यास
डीआरडीओ लक्ष्य
यह एक दूर संचालित उच्च गति वाला लक्ष्य ड्रोन प्रणाली है, जिसका उपयोग सैन्य प्रशिक्षण और अभियानों में किया जाता है. यह ड्रोन जमीन या जहाज से लॉन्च किया जा सकता है. पैराशूट की मदद से पुनः प्राप्त किया जा सकता है.
डीआरडीओ निशांत
यह एक अनमैन्ड एरियल व्हीकल (यूएवी) है, जो दुश्मन क्षेत्र पर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने और सैन्य अभियानों में मदद करने के लिए बनाया गया है. इसकी उड़ान क्षमता 4 घंटे 30 मिनट है.
डीआरडीओ उल्का
उल्का एक भारतीय डिस्पोजेबल टार्गेट ड्रोन है, जिसे हवा से दागा जाता है. यह विमानों से दुश्मन के रडार को चकमा देने के लिए नकली रडार सिग्नल का उपयोग करता है.