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साल के अंत तक मिलेगा S-400 एयर डिफेंस सिस्टम का चौथा स्क्वॉड्रन, सिलिगुड़ी में होगा तैनात

भारत को रूस से S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम चौथा स्क्वॉड्रन साल के अंत तक मिल जाएगा. चीन के हमले से बचाव के लिए इसे सिलिगुड़ी में तैनात किया जाएगा. पांच की डील हुई थी. तीन आ चुके हैं. दो बाकी चल रहे थे. यूक्रेन युद्ध की वजह डिलिवरी में देरी हुई है.

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एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम से छूटती मिसाइल. (फोटोः AFP)
एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम से छूटती मिसाइल. (फोटोः AFP)

भारत इस साल के अंत तक रूसी निर्मित एस-400 वायु रक्षा प्रणाली के चौथे स्क्वॉड्रन को प्राप्त करने वाला है. सूत्रों ने पुष्टि की है कि पांचवां स्क्वॉड्रन 2026 में आने की उम्मीद है. भारत ने पहले ही एस-400 प्रणाली के तीन स्क्वॉड्रन प्राप्त कर लिए हैं. उन्हें विभिन्न स्थानों पर तैनात किया है. 

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भारत ने 2018 में रूस के साथ एस-400 प्रणाली के पांच स्क्वॉड्रन के लिए लगभग ₹35,000 करोड़ के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे. यह उन्नत वायु रक्षा प्रणाली भारत के रणनीतिक स्थानों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 

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S-400 Air Defence Missile System

एस-400 की तैनाती के प्रमुख क्षेत्रों में होगी

सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए एक स्क्वॉड्रन को तैनात किया गया है. पठानकोट क्षेत्र में एक अन्य स्क्वॉड्रन को तैनात किया गया है ताकि जम्मू-कश्मीर और पंजाब की रक्षा को मजबूत किया जा सके. भारत की पश्चिमी सीमा पर एक स्क्वॉड्रन को तैनात किया गया है ताकि राजस्थान और गुजरात में महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

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भारत के पास S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम मौजूद होने की वजह से चीन या पाकिस्तान सीमा पार से नापाक हरकत नहीं कर पाएंगे. इस एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम के बचे हुए यूनिट्स आने के बाद देश की सुरक्षा अभेद्य हो जाएगी. एस-400 मिसाइल सिस्टम के ऑपरेटर्स की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है. 

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S-400 Air Defence Missile System

हथियार नहीं महाबली है यह अभेद्य रक्षा कवच

एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम हथियार नहीं महाबली है. इसके सामने किसी की भी साजिश नहीं चलती. यह आसमान से घात लगाकर आते हमलावर को पलभर में राख में बदल देता है. एस-400 मिसाइल सिस्टम को दुनिया की सबसे सक्षम मिसाइल प्रणाली माना जाता है. 

पाकिस्तान और चीन भारत के लिए हमेशा से चुनौती रहे हैं. भारत का इन देशों से युद्ध भी हो चुका है. शक्ति का संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसी मिसाइल प्रणाली की देश को जरूरत थी. भारत को एस-400 सिस्टम मिलने से भारतीय वायुसेना की ताकत में इजाफा होगा. 

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S-400 Air Defence Missile System

35 हजार करोड़ रुपए में हुई थी पांच यूनिट की डील

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भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ ऐसे पांच सिस्टम खरीदने का करार  किया था जिसकी लागत 5 अरब डॉलर यानी 35,000 करोड़ रुपये है. चीन हो या पाकिस्तान S-400 मिसाइल एयर डिफेंस सिस्टम के बल पर भारत न्यूक्लियर मिसाइलों को अपनी जमीन तक पहुंचने से पहले ही हवा में ही ध्वस्त कर देगा. 

S-400 से भारत चीन-पाकिस्तान की सीमा के अंदर भी नजर रख सकेगा. जंग में भारत S-400 सिस्टम से दुश्मन के लड़ाकू विमानों को उड़ने से पहले निशाना बना लेगा. चाहे चीन के जे-20 फाइटर प्लेन हो या फिर पाकिस्तान के अमेरिकी F-16 लड़ाकू विमान. यह मिसाइल सिस्टम इन सभी विमानों को नष्ट करने की ताकत रखता है.  रूस ने साल 2020-2024 तक भारत को एक-एक कर ये मिसाइल सिस्टम देने की बात कही थी.  

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S-400 Air Defence Missile System

एक बार में 72 मिसाइल दाग सकता है ये सिस्टम

S-400 एक बार में एक साथ 72 मिसाइल छोड़ सकती है. इसके सबसे खास बात ये है कि इस एयर डिफेंस सिस्टम को कहीं मूव करना बहुत आसान है क्योंकि इसे 8X8 के ट्रक पर माउंट किया जा सकता है. S-400 को नाटो द्वारा SA-21 Growler लॉन्ग रेंज डिफेंस मिसाइल सिस्टम भी कहा जाता है. माइनस 50 डिग्री से लेकर माइनस 70 डिग्री तक तापमान में काम करने में सक्षम इस मिसाइल को नष्ट कर पाना दुश्मन के लिए बहुत मुश्किल है. क्योंकि इसकी कोई फिक्स पोजिशन नहीं होती. इसलिए इसे आसानी से डिटेक्ट नहीं कर सकते.  

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S-400 मिसाइल सिस्टम में चार तरह की मिसाइलें होती हैं जिनकी रेंज 40, 100, 200, और 400 किलोमीटर तक होती है.  यह सिस्टम 100 से लेकर 40 हजार फीट तक उड़ने वाले हर टारगेट को पहचान कर नष्ट कर सकता है.  एस-400 मिसाइल सिस्टम (S-400 Air Defence Missile System) का रडार बहुत अत्याधुनिक और ताकतवर है. 

S-400 Air Defence Missile System

600 km की रेंज में 300 टारगेट ट्रैक करने की ताकत

इसका रडार 600 किलोमीटर तक की रेंज में करीब 300 टारगेट ट्रैक कर सकता है. यह सिस्टम मिसाइल, एयरक्राफ्ट या फिर ड्रोन से हुए किसी भी तरह के हवाई हमले से निपटने में सक्षम है. शीतयुद्ध के दौरान रूस और अमेरिका में हथियार बनाने की होड़ मची हुई थी. जब रूस अमेरिका जैसी मिसाइल नहीं बना सका तो उसने ऐसे सिस्टम पर काम करना शुरू किया जो इन मिसाइलों को टारगेट पर पहुंचने पर पहले ही खत्म कर दे.

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