हिजबुल्लाह के लड़ाकों पर हुए इजरायली पेजर और वॉकी-टॉकी ब्लास्ट के बाद ईरान खौफ में है. ईरान की सेना यानी ईरान रेवोल्यूशनरी गार्ड्स (IRGC) ने अपने सभी सदस्यों को किसी भी तरह के संचार यंत्र (Communication Device) का इस्तेमाल न करने की सलाह दी है.
इसके अलावा ईरान ने IRGC के सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस की जांच शुरू करवा दी है. ताकि उनके यहां इस तरह का हमला न हो सके. यह जानकारी ईरान के सुरक्षा अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दी. यह भी बताया गया कि ज्यादातर डिवासेस ईरान में ही घरों में बनाए गए हैं. या फिर रूस और चीन से आयात किए गए हैं.
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IRGC के सभी जवानों के पास जितने भी गैजेट्स हैं, उन्हें जमा कराकर उनकी बारीकी से जांच कराई जा रही है. खासतौर से ऊंचे तबके के अधिकारियों और बीच के लेवल के जवानों और अफसरों के गैजेट्स. ताकि इजरायली एजेंट्स घुसपैठ करके ईरानी सैनिकों के साथ वह हरकत न कर सकें, जो उन्होंने लेबनान-सीरिया में हिजबुल्लाह के लड़ाकों के साथ की थी.
17 सितंबर को पेजर ब्लास्ट से दहल गया था लेबनान
इजरायल और हमास की जंग में बीच में कूदे लेबनान और उसके हिजबुल्लाह लड़ाकों पर 17 सितंबर 2024 को एक नए तरह का हमला हुआ. अचानक लेबनान और सीरिया के कई शहरों में हिजबुल्ला लड़ाकों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हजारों पेजर फट गए. जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई और 4000 से अधिक लोग जख्मी हुए हैं. इसके बाद 18 सितंबर को कई जगहों पर वॉकी-टॉकी, डोरबेल, डिश कनेक्शन में विस्फोट हुए.
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हिजबुल्लाह पुरानी तकनीक के पेजर इस्तेमाल क्यों कर रही थी?
पूरी दुनिया को पता है कि इजरायल के पास नई तकनीक को इंटरसेप्ट, हैक और ट्रैक करनी की काबिलियत है. किसी भी प्रकार के आधुनिक डिजिटल कम्यूनिकेशन सिस्टम को हैंपर कर सकते हैं. जैसे- इंटरनेट, स्मार्टफोन या लैंडलाइन. इसलिए हिजबुल्लाह ने पुरानी तकनीक पर चलने वाले पेजर का इस्तेमाल किया. ताकि सर्विलांस से बच सकें. कम इस्तेमाल होने वाले पेजर पर हैकिंग, ट्रैकिंग आसान नहीं.
कब से हिजबुल्लाह कर रहा है पेजर्स का इस्तेमाल?
हिजबुल्लाह की खुफिया एजेंसी कई सारे काउंटरइंटेलिजेंस यंत्रों का इस्तेमाल करती है. इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और इंटरसेप्ट टेक्नोलॉजी भी है उनके पास. साल 2011 से हिजबुल्लाह सेलफोन डेटा का एनालिसिस करने की क्षमता रखती हैं. 90 के दशक में ही हिजबुल्लाह के लड़ाके अनइनक्रिप्टेड डेटा डाउनलोड करना सीख गए थे.
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कहा जाता है कि रूस और उसकी जासूसी एजेंसी एफएसबी और ईरान की मदद से हिजबुल्लाह ने काउंटर-इंटेलिजेंस सिस्टम डेवलप किया है. 2008 में इन्होंने माउंट सेनिन के पास संगठन ने फाइबर नेटवर्क में इजरायली बग डिटेक्ट किया था.
पेजर पुरानी तकनीक है. यह ज्यादा सुरक्षित, लो-डेटा कम्यूनिकेशन के लिए जानी जाती है. पेजर का इस्तेमाल कब से हो रहा है, इसकी डिटेल कहीं नहीं है. लेकिन माना जाता है कि ये सारे सिस्टम हिजबुल्लाह ने 1980 से स्थापित किए थे.