आजकल गुजरात का जामनगर चर्चा में है. क्योंकि वहां देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे अनंत की प्री-वेडिंग सेलिब्रेशन हुआ. बड़े फिल्मी सितारे आए. दुनिया के फेमस रईस लोग आए. लेकिन इस दौरान चर्चा में रहा वहां का एयरफोर्स स्टेशन भी. ये वही एयरफोर्स स्टेशन है जिसने पाकिस्तान को शर्मनाक हार दी थी.
पाकिस्तान ने कितने युद्ध लड़े लेकिन हर बार मुंह की खाई. हर जंग में जामनगर एयरफोर्स स्टेशन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. आइए आपको बताते हैं कि यह एयरफोर्स स्टेशन क्यों खास है?
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आजादी से पहले जामनगर में एयरबेस नहीं था. आजादी के बाद वायुसेना एयर फायरिंग और बॉम्बिंग रेंज खोज रही थी. तब जामनगर में वायुसेना ने बेस बनाया. इसे नाम दिया आर्मामेंट ट्रेनिंग विंग (ATW). वायुसेना को अपना सेटअप लगाने में जामनगर के राजा जाम साहेब ने बड़ी मदद की थी. उन्हें एयरफोर्स से खास लगाव था.
पहले पायलट यहां ट्रेनिंग लेने आते थे
यहां पर सरमत में हवा से जमीन पर मार करने वाला रेंज ता. इसके अलावा कच्छ की खाड़ी के ऊपर हवा से हवा में मार करने की प्रैक्टिस के लिए बड़ी जगह थी. यह एक तटीय इलाका है, जिसे जोध्या-बालचंदी कहते हैं. ATW में वायुसेना के अलग-अलग स्क्वॉड्रन के लोग बारी-बारी से ट्रेनिंग करने आते थे.
1952 के समय की वायुसैनिकों की ट्रेनिंग की तस्वीरें आज भी मौजूद हैं. उस समय रॉयल एयरफोर्स के साथ काम कर चुके विंग कमांडर जीडी नॉबी क्लार्क अगले एक दशक तक ट्रेनिंग विंग में इंस्ट्रक्टर बने रहे. इस दौरान उन्होंने पायलटों को PAI फ्लाइट, स्क्वॉड्रन ट्रेनिंग फ्लाइट और टारगेट टोइंग फ्लाइट का प्रशिक्षण देते थे.
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200 से अधिक पायलटों की ट्रेनिंग हुई यहां
इस स्टेशन से पहले PAI पायलट अप्रैल 1958 में ग्रैजुएट हुए. इसके बाद 58 से लेकर 70 तक यहां पर 24 कोर्सेस पूरे हुए. जिसमें 200 पायलटों की ट्रेनिंग हुई. इन्हीं पायलटों में तीन बाद में वायुसेना के प्रमुख भी बने. इसके बाद इन पायलटों को और आधुनिक ट्रेनिंग के लिए विदेश भी भेजा गया.
बाद में इस ATW को टैक्टिकल एंड एयर कॉम्बैट डेवलपमेंट इस्टैबलिशमेंट (TACDE) में बदल दिया गया. यह काम 1972 तक किया गया यहां पर. बाद में इसे 2000 में वापस ले लिया गया. लेकिन भारत में 1956 से 2000 तक जामनगर एयरफोर्स पायलट ट्रेनिंग सेंटर ने सैकड़ों टॉप गन्स को ट्रेनिंग दी.
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1965 और 71 के जंग में पाकिस्तान को रुलाया
1966 में यहां पर ऑपरेशनल ट्रेनिंग यूनिट (OTU) बनाई गई थी. ताकि नए पायलट्स को हंटर्स फाइटर जेट की ट्रेनिंग दी जा सके. यह भी कहा जाता है कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान विंग कमांडर डॉन कॉन्क्वेस्ट ने कराची के ऑयल टैंक पर जामनगर से ही उड़ान भरकर हमला किया था.
12 दिसंबर 1971 को फ्लाइट लेफ्टिनेंट बीबी सोनी ने पाकिस्तानी एयरफोर्स के F-104 स्टारफाइटर को जामनगर के आसमान के ऊपर मार गिराया था. 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान जामनगर एयरफोर्स स्टेशन से कैनबेरा बमवर्षकों ने पाकिस्तान के खिलाफ भयानक हमले किए. कराची की धज्जियां उड़ा दी थीं. उसके अलावा कई अन्य जरूरी और रणनीतिक स्थानों को तबाह कर दिया था.
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देश के पहले स्वदेशी फाइटर जेट का अड्डा भी था
जामनगर एयरफोर्स स्टेशन का स्वदेशीकरण से भी पुराना नाता है. अप्रैल 1967 में जामनगर में ही देश में बने पहले फाइटर जेट मारूत का स्क्वॉड्रन बना. यह जामनगर में बनने वाला पहला कॉम्बैट स्क्वॉड्रन था. चाहे 1965 का युद्ध रहा हो या फिर 1971 का. पाकिस्तान ने हर बार जामनगर को अपना पहला निशाना बनाया.
पाकिस्तान को पता है कि भारतीय वायुसेना को ध्वस्त करने के लिए जामनगर पर टारगेट करने जरूरी है. लेकिन ग्रुप कैप्टन पीट विल्सन की शानदार प्लानिंग और तैयारी की वजह से जामनगर दोनों युद्धों में हमलों के बावजूद सफलतापूर्वक संचालन करता रहा. इसके बाद इसे कॉम्बैट विंग नंबर 33 में बदल दिया गया.
करगिल युद्ध के समय भी पाक की हालत की थी पस्त
अब इसमें समुद्री हमला करने की ताकत दी गई. यानी यहां से फाइटर जेट्स उड़ान भर कर समुद्री निगरानी और हमला करने की क्षमता रखने लगे. जब भी देश की पश्चिमी सीमा पर किसी तरह का वायुसैनिक अटैक किया गया, उसमें जामनगर एयरफोर्स स्टेशन ने बड़ा किरदार निभाया है. यहां से रिलायंस की रिफाइनरी को सुरक्षित रखने के लिए भी जवानों को तैनात किया जाता है.
इस स्टेशन पर फिलहाल नंबर 224 स्क्वॉड्रन है. यह एक ग्राउंड अटैक स्क्वॉड्रन है. इसका निकनेम वॉरलॉर्ड्स है. यहां पर स्पेकैट जगुआर फाइटर जेट्स की तैनाती है. इस सेंटर ने ऑपरेशन मेघदूत और करगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन सफेद सागर में भी बड़ी भूमिका निभाई थी.