एक दशक से ज्यादा समय से चीन लगातार मालदीव्स में आर्थिक सहयोग बढ़ाता जा रहा है. ज्वाइंट ओशन ऑब्जरवेशन स्टेशन बनाना चाहता है. चीन लगातार हिंद महासागर में अपनी पहुंच और ताकत बढ़ाना चाहता है. मालदीव्स की वर्तमान सरकार का चीन के प्रति झुकाव भारत के साथ उसके संबंध बिगाड़ चुका है.
चीन के साथ मालदीव्स के संबंध ज्यादा गहरे होने पर सबसे बड़ा खतरा भारत को है. क्योंकि चीन अपना सैन्य बेस बनाकर वहां से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है. लेकिन एक समय था जब मालदीव्स में हुए सैन्य विद्रोह के बाद तख्तापलट की कोशिश को भारत की सेनाओं ने रोका था. बात है 1988 की.
1988 में मालदीव तख्तापलट के प्रयास को रोकने के लिए भारत ने Operation Cactus नाम का सैन्य अभियान चलाया था. उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति मौमूल अब्दुल गयूम के खिलाफ मालदीव की सेना ने श्रीलंकाई विद्रोहियों की मदद से सैन्य विद्रोह की कोशिश की थी. तब गयूम ने पाकिस्तान, श्रीलंका, अमेरिका जैसे देशों से मदद मांगी थी.
अप्रवासी अब्दुल्ला लुतूफी ने किया था विद्रोह
इन सभी देशों से पहले ही भारत ने मालदीव की मदद की थी. तत्कालीन राष्ट्रपति राजीव गांधी के आदेश पर ऑपरेशन कैक्टस शुरू किया गया था. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के कई जवानों ने मालदीव की धरती पर पहुंच कर विद्रोहियों को ढेर किया था. गयूम के खिलाफ इस विद्रोह की अगुवाई नाराज अप्रवासी अब्दुल्ला लुतूफी ने की थी.
दो तख्तापलट के प्रयास पहले भी हुए थे
तब PLOTE यानी पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम के 80 लड़ाकों ने हिंद महासागर के जरिए मालदीव में घुसकर बमबारी की थी. ऐसा नहीं है कि इससे पहले भी गयूम के खिलाफ दो तख्तापलट के प्रयास हुए थे. पहला 1980 में और दूसरा 1983 में. लेकिन वो इतने गंभीर नहीं थे. 1988 वाला मामला बेहद गंभीर था.
ऐसी थी 1988 के तख्तापलट की कहानी
3 नवंबर 1988 की सुबह Hijack श्रीलंकाई मालवाहक जहाज पर सवार होकर 80 PLOTE सैनिक राजधानी माले में उतरे. उन्होंने एयरपोर्ट, बंदरगाहों, टेलीविजन और रेडियो स्टेशनों जैसे प्रमुख इमारतों और संस्थानों पर कब्जा कर लिया था. इसके बाद ये विद्रोही राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़े. इससे पहले कि वो राष्ट्रपति गयूम को पकड़ पाते. मालदीव के रक्षामंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था.
राष्ट्रपति बंधक नहीं बने तो मंत्रियों को बनाया
राष्ट्रपति को बंधक नहीं बना पाने से नाराज PLOTE विद्रोहियों ने कई मंत्रियों को बंधक बना लिया. राष्ट्रपति गयूम ने श्रीलंका, पाकिस्तान और सिंगापुर जैसे पड़ोसी देशों से मदद मांगी. सभी ने सैन्य क्षमताओं की कमी का हवाला देते हुए मना कर दिया. अमेरिका तैयार हुआ लेकिन कहा कि मालदीव पहुंचने में 203 दिन लग जाएंगे.
राष्ट्रपति गयूम ने इंग्लैंड से संपर्क किया. तब वहां की पीएम प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने भारत से मदद मांगने को कहा. उन्होंने तुरंत भारत से मदद मांगी. भारत ने इसे स्वीकार कर लिया. सभी 80 PLOTE विद्रोहियों और अन्य विद्रोही सैनिकों को पकड़ लिया गया. उनपर मालदीव में मुकदमा चलाया गया. मौत की सजा दी गई. राष्ट्रपति गयूम ने भारत के दबाव में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया.
भारतीय सेना ने खतरनाक जवान भेजे थे
ऑपरेशन कैक्टस 3 नवंबर 1988 को शुरू हुआ. तब IL-76 परिवहन विमान ने 50वीं स्वतंत्र पैराशूट ब्रिगेड, पैराशूट रेजिमेंट की 6वीं बटालियन और 17वीं पैराशूट फील्ड रेजिमेंट की एक टुकड़ी को वहां पहुंचाया. उड़ान आगरा से शुरू हुई थी. सीधे माले उतरी थी. पैराट्रूपर्स ने तुरंत हवाई क्षेत्र को सुरक्षित कर लिया. तब PLOTE के विद्रोहियों से उनकी जमकर लड़ाई हुई. इस दौरान करीब 19 लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर विद्रोही और दो बंधक थे.
भारतीय नौसेनिक फ्रिगेट ने Hijack मालवाहक जहाज को रोक लिया था. यही जहाज श्रीलंकाई तट से विद्रोहियों को लेकर आया था. भारतीय सेना की तत्काल प्रतिक्रिया और तख्तापलट के बारे में प्राप्त सटीक खुफिया जानकारी ने हिंद महासागर में राजनीतिक संकट को सफलतापूर्वक टालने में मदद की.