The FIVE EYES (FVEY) पब्लिक सेफ्टी के नाम पर दुनिया के 5 शक्तिशाली देशों की दादागीरी है. औपनिवेशिक खुमारी में डूबे, अंग्रेजी बोलने वाले विश्व के 5 धनाढ्य देश अपनी सुरक्षा का हवाला देकर दुनिया में कहीं भी जासूसी, फोन टैपिंग, गुप्त ऑपरेशन और मिलिट्री और सिविल इंटेलीजेंस की गतिविधियों को अंजाम देते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बने इस 'कुलीन' क्लब में अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन शामिल हैं.
इन पांच देशों ने मिलकर ग्लोबल इंटेलिजेंस का एक खतरनाक नेटवर्क तैयार किया है. वैश्विक निगरानी से मिले इनपुट को ये पांच देश समय-समय पर अपने हित में इस्तेमाल करते हैं और जरूरत पड़े तो इसका प्रयोग दुनिया के दूसरे देशों पर नकेल कसने के लिए भी किया जाता है. चूंकि ये देश दुनिया के मंच पर ताकत और प्रतिष्ठा का लबादा ओढ़े हुए हैं इसलिए पिछले कई दशकों तक इनकी करनी पर सवाल उठाने वाला कोई नहीं था. लेकिन अब ग्लोबल ऑर्डर में टूट-फूट मचा हुआ है और इनके एक्शन पर लगातार सवाल भी उठाए जा रहे हैं.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अभी यही तरकीब भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं. मगर भारत ने कनाडा को दो टूक और खरी-खरी सुनाकर बता दिया है कि The FIVE EYES की दबंगई और दादागीरी बर्दाश्त करने के लिए भारत के पास वक्त नहीं है.
आसान भाषा में कहें तो FIVE EYES दुनिया भर में जासूसी करने के लिए पांच देशों द्वारा मिलकर बनाया गया एक गुट है. इस जासूसी से मिले इनपुट को ये पांच देश आपस में साझा करते हैं. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को आनन-फानन में बुलाये गये एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि कनाडा ने उन सभी सूचनाओं और इनपुट को फाइव आईज के देशों के साथ साझा किया है जिसमें कनाडा के मुताबिक पिछले साल खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या में भारतीय राजनयिकों के कथित रूप से शामिल होने के आरोप हैं.
दरअसल The FIVE EYES तब वजूद में आया जब दुनिया वर्ल्ड वार-2 के झटकों से गुजर रही थी. ब्रिटिश प्रभुत्व की समाप्ति, अमेरिका के सुपर पावर के रूप में उभरने और अमेरिकी वर्चस्व के खिलाफ सोवियत रूस के उदय ने पश्चिमी दुनिया में खलबली मचा दी. पश्चिमी देशों को अब ऐसे संगठन की जरूरत थी जो दुनिया भर में उनके शत्रुओं की टोह ले सके. इसके अलावा भी एक ऐसे संगठन की जरूरत थी जो दुनिया भर से खुफिया जानकारियां नीति और नियमों से परे जाकर भी इकट्ठा कर सके. फिर इन सूचनाओं को इन संगठन में शामिल देश आपस में साझा कर सकें और अपने कथित राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकें.
पिछले तीन-चार दशकों में चीन के उभार ने भी इन देशों को काउंटर बैलेंसिंग के लिए ऐसी खुफिया जानकारियां इकट्ठा करने के लिए एक फोरम पर आने को मजबूर किया.
इस जरूरत को देखते हुए 1943 में अमेरिका और ब्रिटेन ने पहले एक संधि की. इस समझौते के बाद अमेरिका और ब्रिटेन सिग्नल इंटेलिजेंस में औपचारिक रूप से शामिल हो गए. इसे ब्रिटिश-यू.एस. संचार खुफिया समझौता (BRUSA) कहा जाता है. 1946 में अमेरिका और ब्रिटेन का ये समझौता UKUSA में तब्दील हो गया. इस समझौते के दायरे में कम्युनिकेशन इंटेलिजेंस के तमाम दायरे शामिल थे. इस ग्रुप के सदस्य सर्विलांस और सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) दोनों तरह के कदम उठाते हैं. कनाडा इस गुट में 1948 में शामिल हुआ. फिर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड 1956 में इस क्लब में शामिल हो गए. इस तरह से FIVE EYES वजूद आया.
समय के साथ, इस साझेदारी ने अपनी पहुंच बढ़ा ली है और वैश्विक खुफिया और सुरक्षा ऑपरेशन का एक अभिन्न अंग बन गयी है.
जहां तक इस संगठन को FIVE EYES नाम दिये जाने का सवाल है तो माना जाता है कि ये खुफिया नाम एक क्लासिफाइड डॉक्युमेंट जिसका टाइटल "EYES ONLY" था, से मिला है. इंटेलिजेंस की दुनिया में "EYES ONLY" वे दस्तावेज होते हैं जो अति गोपनीय होते हैं और जिन्हें सिर्फ देखा जा सकता है, इन दस्तावेजों का न तो प्रिंट लिया जा सकता है और न ही इसकी कॉपी की जा सकती है. इसे सिर्फ व्यक्ति आंखों से ही पढ़ सकता है. ऐसा सुरक्षा के लिहाज से किया जाता है.
हैरानी की बात यह है कि ये खुफिया एजेंसी इतने दिनों से वजूद में तो थी लेकिन दुनिया को इसकी जानकारी नहीं थी. ये सिलसिला 1980 के दशक तक चला. यानी कि 1950 के दशक से ही अमेरिका और ब्रिटेन दुनिया के देशों की जासूसी कर रहे थे, लेकिन ये बात पब्लिक डोमेन में नहीं थी. आखिरकार 2010 में UKUSA समझौते के फाइल जारी किये गए तो इस संगठन की जानकारी दुनिया को मिली.
कनाडा के प्रधानमंत्री इसी फाइव आईज का सहारा लेकर भारत पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रूडो ने इसी खुफिया जानकारी के आधार पर दावा किया है कि भारत के राजनयिक खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के मामले में 'पर्सन ऑफ इंटरेस्ट' हैं. भारत ने ट्रूडो के इस आरोप को सख्ती के साथ खारिज किया है और कार्रवाई करते हुए दिल्ली में मौजूद कनाडा के छह राजनयिकों को देश छोड़ने को कहा है. साथ ही भारत ने कनाडा में मौजूद अपने उच्चायुक्त को भी वापस बुला लिया है.
कनाडा में अमेरिका के राजदूत डेविड कोहेन ने कनाडा के एक टीवी चैनल को साक्षात्कार में बताया था कि फाइव आईज सदस्यों के साथ साझा किए गए खुफिया सूचनाओं के आधार पर ही कनाडा ये दावा कर पाया कि निज्जर की हत्या में कथित रूप से भारत सरकार के एजेंटों का हाथ है.
ट्रूडो को लगता है कि वे फाइव आईज का सहारा लेकर इसके सदस्य देशों अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया से भारत के खिलाफ बयान दिलवाकर वे अपने डोमेस्टिक ऑडियंस यानी कि कनाडा में मौजूद सिख कट्टरपंथियों का वोट हासिल कर पाएंगे. बता दें कि कनाडा में कुछ ही महीनों में चुनाव है.
कनाडाई स्क्रिप्ट को फॉलो करते हुए अमेरिका निज्जर मामले पर भारतीय हितों के खिलाफ बयानबाजी भी कर रहा है. अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने अपने दैनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि निज्जर मामले की जांच में भारत कनाडा के साथ सहयोग नहीं कर रहा है. मिलर ने कहा, "जहां तक कनाडा के मामले का सवाल है, हमने स्पष्ट कर दिया है कि आरोप बेहद गंभीर हैं और उन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए. हम चाहते थे कि भारत सरकार कनाडा के साथ जांच में सहयोग करे. जाहिर है, उन्होंने वह रास्ता नहीं चुना है."
हालांकि मिलर ने भारत-कनाडा संबंधों में आए तनाव से कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. मिलर ने कहा कि "मुझे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करनी है. लेकिन जैसा कि हमने पहले कहा है, ये गंभीर आरोप हैं. और हम चाहते हैं कि भारत इन्हें गंभीरता से ले और कनाडा की जांच में सहयोग करे, लेकिन उन्होंने इससे इतर रास्ता चुना है."
फाइव आईज के एक और पार्टनर न्यूजीलैंड ने भी इस मामले में बयान दिया है. न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री विंस्टन पीटर ने कहा है कि कनाडा ने उन्हें इस मामले की जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि "कनाडाई कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक रूप से बताये गए कथित आपराधिक आचरण, यदि सिद्ध हो जाता है, तो ये बहुत चिंताजनक होगा". हालांकि न्यूजीलैंड ने भारत का नाम नहीं लिया.
पिछले साल फाइव आईज के एक और पार्टनर ऑस्ट्रेलिया ने भी इस मामले में बयान दिया था. हालांकि ऑस्ट्रेलिया का बयान भी सधा हुआ था. भारत में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्रनर फिलीप ग्रीन ने कहा था कि "ऑस्ट्रेलिया इस मुद्दे पर भारत के साथ फाइव आईज पार्टनर के तौर पर कम और दोस्त के तौर पर ज़्यादा बातचीत कर रहा है... (हम) भारत का सम्मान करते हैं जिसके साथ हमारे परिपक्व रिश्ते हैं. हम इन मुद्दों पर बंद दरवाजों के पीछे संवेदनशीलता और सावधानी से चर्चा करते हैं."
दरअसल ट्रूडो इस मामले में भारत के खिलाफ प्रेशर पॉलिटिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं और वे वैसी बातें कह रहे हैं जो अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियों के आईने अपरिपक्व, बेबुनियाद और कच्चे हैं. भारत ने कनाडा के इस प्रेशर को साफ खारिज कर दिया है.