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Oxygen Sucker Rockets: क्या होते हैं ऑक्सीजन सोखने वाले थर्मोबेरिक रॉकेट, जानिए क्यों जरूरत है भारत को इनकी?

रूस के पास ऐसे हथियार हैं, जो टारगेट पर गिरते ही आसपास की ऑक्सीजन खींच लेते हैं. भारत के पास ऐसा सिर्फ एक ही हथियार है. पाकिस्तान और चीन की हरकतों को देखते हुए यहां ऐसे हथियारों के डेवपलमेंट की जरूरत है. आइए जानते हैं कि क्या होते हैं, वो हथियार जो दुश्मन की सांस पर कर लेते हैं कब्जा?

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रूस, चीन, अमेरिका जैसे कई देशों के पास इस तरह के हथियार हैं, वह भी ज्यादा और कई तरह के वैरिएंट्स में.
रूस, चीन, अमेरिका जैसे कई देशों के पास इस तरह के हथियार हैं, वह भी ज्यादा और कई तरह के वैरिएंट्स में.

यूक्रेन पर हमले के लिए रूस लगातार एक खतरनाक हथियार का इस्तेमाल कर रहा है. ये रॉकेट्स जहां गिरते हैं, उसके आसपास की ऑक्सीजन खींच लेते हैं. एकसाथ जब दर्जनों या सैकड़ों रॉकेट छोड़े जाते हैं, तब टारगेट के आसपास का पूरा इलाका ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा होता है. दुश्मन सैनिकों की हालत खराब हो जाती है. 

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इस हथियार का नाम है TOS-2 Tosochka. यह रूस का एक मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम है. जिसमें थर्मोबेरिक वॉरहेड लगाया जाता है. साल 2021 से रूस की सेना इसका इस्तेमाल कर रही है. एक रॉकेट सिस्टम में 220 मिलिमीटर कैलिबर के 18 रॉकेट होते हैं. इनकी रेंज 10 किलोमीटर होती है. 

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Oxygen Sucker Rockets, Thermobaric Warheads

रॉकेट की रेंज छोटी जरूर है, लेकिन हमला बेहद घातक. ऐसा ही इसका पुराना वर्जन TOS-1 है. इन दोनों हथियारों के सामने कोई भी सैनिक नहीं आना चाहता. क्योंकि ये आपसे ऑक्सीजन ही छीन लेता है. भारत चाहे तो ऐसे हथियार का इस्तेमाल खुद कर सकता है. भारत के पास पिनाका रॉकेट सिस्टम है. जिसमें थर्मोबेरिक वॉरहेड लगा सकते हैं. ताकि पाकिस्तान या चीन की सीमा से ऐसी हरकत का करारा जवाब दिया जा सके. 

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स्वदेसी तौर पर थर्मोबेरिक वॉरहेड बना लिया जाए या फिर रूस के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर समझौते के तहत उनके वॉरहेड यहां लाए जाएं. पर उससे पहले यह जरूरी है जानना कि थर्मोबेरिक हथियार या वॉरहेड क्या होता है? यह कैसे टारगेट के आसपास का सारा ऑक्सीजन खींच लेता है? 

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Oxygen Sucker Rockets, Thermobaric Warheads

क्या होते हैं थर्मोबेरिक हथियार? 

थर्मोबेरिक हथियार को एयरोसोल बम (Aerosol Bomb) या वैक्यूम बम (Vaccume Bomb) भी कहते हैं. इनका कई तरह से इस्तेमाल होता है. बम के तौर पर या फिर मिसाइल, टैंक के गोले, रॉकेट के आगे लगा कर दुश्मन की तरफ दागा जाता है. यह फटते ही गैस, लिक्विड या पाउडर विस्फोटक के एयरसोल फैला देता है. 

आमतौर पर इनका इस्तेमाल बख्तरबंद वाहनों के अंदर मौजूद सैनिकों को निकालने के लिए. इमारतों या बंकरों में छिपे दुश्मन को बाहर निकालने के लिए किया जाता है. पहले ऐसे हथियारों से हमला करो. जब सैनिक बंकरों से बाहर निकल आएं तो उन्हें आराम से निशान बना लो. इससे बहुत ज्यादा गर्मी निकलती है. फिर ऑक्सीजन कम हो जाता है. 

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Oxygen Sucker Rockets, Thermobaric Warheads

कैसे काम करता है थर्मोबेरिक वॉरहेड? 

ह्यूमन राइट वॉच ने अमेरिकी डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA) की एक स्टडी का हवाला देते हुए बताया था कि जब थर्मोबेरिक हथियार फटता है, तब उससे प्रेशर वेव निकलती है. वैक्यूम बनता है. जिससे फेफड़े फट जाते हैं. इसमें मौजूद विस्फोटक से केमिकल सैनिकों की सांस के जरिए शरीर में चला जाता है. 

शरीर को अंदर से जला देते हैं. आमतौर से इसमें FAE Fuels, इथाइलीन ऑक्साइड, प्रोपीलीन ऑक्साइड डाले जाते हैं. ये बेहद टॉक्सिक होते हैं. शरीर के अंदर न दिखने वाले घाव हो जाते हैं. कान के परदे फट जाते हैं. इसके विस्फोट से बहुत ज्यादा धुंधलापन आ जाता है. शरीर के अंदर के अंग फट जाते हैं. दिखना बंद हो जाता है. भारत के पास फिलहाल अर्जुन टैंक में इस्तेमाल होने हाई-एक्सप्लोसिव स्क्वॉश हेड (HEAD) थर्मोबेरिक गोले हैं. इसके अलावा भारतीय मिलिट्री किसी और थर्मोबेरिक हथियार का इस्तेमाल नहीं करती. 

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