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भारत को जोरावर टैंक की क्यों पड़ी जरूरत... जानिए चीनी टैंक के मुकाबले कितना दमदार

चीन ने हिमालय में 500 हल्के टैंक तैनात कर रखे हैं. उनका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना का जोरावर टैंक सामने आ चुका है. यह तेज-तर्रार है. लेजर, मशीन गन, ड्रोन्स, एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल जैसे हथियारों से लैस है. आइए जानते हैं क्यों पड़ी इस टैंक की जरूरत?

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ये है भारतीय सेना का हल्का टैंक जोरावर. इसे चीन सीमा पर तैनात किया जाएगा. (सभी फोटोः DRDO)
ये है भारतीय सेना का हल्का टैंक जोरावर. इसे चीन सीमा पर तैनात किया जाएगा. (सभी फोटोः DRDO)

भारत का पहला स्वदेशी हल्का टैंक Zorawar सामने आ चुका है. यह आधुनिक है. मोटा है. तेज-तर्रार है. इसमें से ड्रोन उड़ा सकते हैं. एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल दाग सकते हैं. गोले दाग सकते हैं. मशीनगन चला सकते हैं. हिमालय पर तैनात चीन के टाइप-15 टैंकों की धज्जियां उड़ा सकते हैं.  

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यह टी-72 या टी-90 जितना भारी नहीं है. इसलिए इस टैंक को हेलिकॉप्टर से उठाकर आसानी से चीन सीमा के पास पहुंचाया जा सकता है. इसके अलावा यह खुद पहाड़ों पर चढ़ सकता है. इसे डीआरडीओ और लार्सन एंड टुर्बो ने मिलकर बनाया है. यहां नीचे मौजूद वीडियो में आप इसकी तेजी और ताकत देख सकते हैं. 

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भारतीय सेना इस टैंक को लद्दाख में चीन सीमा के पास तैनात करने की तैयारी में है.ज़ोरावर को पंजाबी भाषा में बहादुर कहते हैं. यह एक आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल है. इसे इस तरह से बनाया गया है कि इसके कवच पर बड़े से बड़े हथियार का असर न हो. इसके अंदर बैठे सैनिक सुरक्षित रहे. इसकी मारक क्षमता बेहद घातक है.  

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हल्का और पानी में चलने की ताकत से लैस

यह शानदार स्पीड में चलता है. यह एंफिबियस है. यानी जमीन पर चल सकता है, साथ ही नदियों में तैर सकता है. किसी भी तरह के जलस्रोत को पार कर सकता है. इसका वजन मात्र 25 टन है. इसमें 105 मिलिमीटर की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) भी लगा सकते हैं. 

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भारतीय सेना ने पहले 59 जोरावर का ऑर्डर दिया है. लेकिन कुल मिलाकर सेना ऐसे 354 टैंक खरीदेगी. इसके बाद इन टैंकों को चीन की सटी सीमा यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर तैनात किया जाएगा. इन्हें चलाने के लिए सिर्फ तीन लोगों की जरूरत होगी. 

Zorawar Light Tank, Indian Army, China Border

चीनी-सिख जंग के योद्धा के नाम पर दिया नाम

इस टैंक का नाम जनरल ज़ोरावर सिंह कहलूरिया के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1841 में चीन-सिख युद्ध के समय कैलाश-मानसरोवर पर मिलिट्री एक्सपेडिशन किया था. भारत पहले ऐसे टैंक्स रूस से खरीदना चाहती थी. लेकिन बाद में इसे देश में बनाने का फैसला लिया गया. असल में यह देश का पहला ऐसा टैंक होगा, जिसे माउंटेन टैंक बुला सकते हैं. 

इसे हेलिकॉप्टर से कहीं भी ले जा सकते हैं

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हल्का होने की वजह से इसे उठाकर कहीं भी पहुंचाया जा सकेगा. इसकी नली 120 mm की है. ऑटोमैटिक लोडर है, यानी गोले अपने आप लोड होंगे. रिमोट वेपन स्टेशन है, जिसके ऊपर 12.7 mm की हैवी मशीन गन लगाई जा सकती है. ज़ोरावर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन इंटीग्रेशन, एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम, हाई डिग्री ऑफ सिचुएशनल अवेयरनेस जैसी तकनीके भी है. 

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Zorawar Light Tank, Indian Army, China Border

इसमें मिसाइल फायरिंग की क्षमता होगी. दुश्मन के ड्रोन्स को मार गिराने के यंत्र, वॉर्निंग सिस्टम भी लगे हैं. इलेक्ट्रिकल गन कंट्रोल सिस्टम लगा है. माइनस 10 डिग्री से लेकर 42 डिग्री की चढ़ान या ढलान पर उतर सकता है. इसकी अधिकतम गति 65 किलोमीटर प्रतिघंटा है. लेजर वॉर्निंग सिस्टम लगा है. 

पर जोरावर क्या चीन के टैंक से दमदार है...

चीन ने अपनी तरफ जो टैंक लगाए हैं, वो 33 से 36 टन के हैं. उन्हें आसानी से एयरलिफ्ट किया जा सकता है. चीन के पास ऐसे 500 टैंक हैं. इनकी लंबाई 30.18 फीट है. इसमें भी तीन लोग बैठते हैं. इसमें 105 mm की मुख्य नली है. इसमें ऑटोलोडर है. यह टैंक 38 राउंड गोले स्टोर कर सकता है. रिमोट से चलाने वाला वेपन स्टेशन है. 12.7 मिलिमीटर की मशीन गन है. ऑटोमैटिक ग्रैनड लॉन्चर लगा है. इसकी स्पीड 70 km/hr है. 

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