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... जब अंकित को दी गई 'सजा ए मुहब्बत'

... जब अंकित को दी गई 'सजा ए मुहब्बत'

क्या ज़माने से मोहब्बत देखी नहीं जाती... क्या मज़हब की दीवारें मोहब्बत की दुश्मन बन जाती हैं... आज हम इसी पर चर्चा करेंगे... दिखाएंगे आपको कि क्यों सदियों बाद डिजिटल युग के तौर पर में दिल्ली जैसी जगह पर ज़माना प्यार का दुश्मन है... लेकिन सबसे पहले आपको दिखाते हैं ख्याला का खून खेल ... जहां मोहब्बत का दुश्मन एक मज़हब और इज़्ज़त बन गई... और उसी भेंट चढ़ गया एक नौ-जवान जिसने सिर्फ मोहब्बत की थी.

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