कोरोना काल में देश में कई लाख लोगों की नौकरियां गईं. महामारी के इस दौर में आई इस आपदा ने लोगों को तनाव और एंजाइटी से भी भर दिया. लेकिन ऐसे हालातों में भी कुछ लोगों ने अपने हौसले की मिसाल पेश की. इन्हीं नामों में एक नाम है ओडिशा में पूर्व नर्स रहीं संजुक्ता नंदा का, जिन्होंने नौकरी जाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने नर्स की नौकरी जाने के बाद पुरुषों का फील्ड चुना, उन्होंने स्विगी में डिलीवरी गर्ल की नौकरी करके अपने परिवार का भरण पोषण किया. जानें- संजुक्ता नंदा की कहानी जो हमें बहुत कुछ सिखाती है.
यह कहानी राजधानी भुवनेश्वर में स्थित गढकना गांव की 39 वर्षीय महिला संजुक्ता नंदा की है. नंदा पिछले दो सालों से शहर के एक निजी डेंटल क्लीनिक में नर्स का काम किया करती थी. कोरोना महामारी की वजह से डेन्टल क्लीनिक को बंद कर दिया गया. इसके बाद नंदा पूरी तरह से बेरोजगार हो गई. इसी के साथ कुछ दिनों के बाद नंदा के पति मनोज कुमार नंदा का भी काम बंद होने के कारण घर चलाना मुश्किल साबित होने लगा.
किसी भी प्रकार से आय का स्रोत नहीं होने पर पति और पत्नी दोनों आर्थिक संकट से जूझने लगे. नंदा ने परिवार की सहमति से फूड कंपनी स्विगी के साथ काम करने का निर्णय लिया. नंदा शहर में डिलीवरी वुमन बन कर अपनी स्कूटी से दिन में करीब 10-15 डिलीवरी समय पर डिलिवर करती हैं. स्विगी में काम करने के बाद नंदा की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है और वह अपने परिवार के साथ सुखद जीवन बिता रही हैं.
aajtak.in से बातचीत में डिलीवरी वुमन नंदा ने बताया कि कोरोना महामारी से पहले शहर के एक निजी डेंटल क्लीनिक में नर्स का काम किया करती थीं. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के दौरान डॉक्टर ने क्लीनिक को बंद कर दिया जिसके बाद में वह बेरोजगार हो गई. इसी महीने मेरे पति का भी काम बंद हो गया. अब घर में गुजारा करने के लिए जोड़े गए कुछ पैसे थे, जिससे हम काम चलाने लगे. जरूरत का खर्च इस पैसे से चलने लगा.
कुछ ही दिनों के बाद घर में रखा सारा पैसा खर्च हो गया और हमारा परिवार आर्थिक तंगी का सामना करने लगा. अपने परिचितों, रिश्तेदारों और दोस्तों आदि कई लोगों से हमने उधार लिया पर वह भी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया. हालत ये हुई कि घर में पैसा नहीं होने कारण बेटे की पढ़ाई को भी रोकना पड़ा. परिवार की परेशानियों को देखकर मैं लगातार काम की तलाश में रहती थी.
नंदा ने विस्तार से बताया कि परिवार के एक सदस्य के सुझाव पर मैंने स्विगी कंपनी का सहारा लिया. मैं पिछले तीन महीनों से स्विगी में डिलीवरी वुमन बनकर शहरवासियों को खाना पहुंचाने का काम करती हूं. अब मैं अपने घर से सुबह 8 बजे निकलती हूं और दोपहर के 3.30 बजे वापस घर लौट जाती हूं. इस दौरान पूरे दिन में करीब 10-15 डिलीवरी करती हूं. अब मैं डिलीवरी वुमन बनकर सप्ताह में तीन हजार से अधिक रुपये कमा लेती हूं. इस कार्य में मेरा पूरा परिवार मुझे पूरा सहयोग करता है. अब हम अपना कर्ज भी उतार चुके हैं.
नंदा के पति ने बताया कि कोरोना की शुरुआती दूसरी लहर के दौरान हम दोनों की नौकरी चली गई. मैं भी अपने आप को बेबस और लाचार समझने लगा. कुछ महीने पहले मेरी पत्नी ने स्विगी कंपनी में डिलीवरी वुमन का काम करने की बात की. मैंने उसकी बात को स्वीकार किया और वह अभी डिलीवरी वुमन का काम कर घर चलती है. हालांकि शुरुआती दौर में आस-पड़ोस के लोगों ने ऐसा काम करने पर सवाल उठाया लेकिन मैंने अपनी पत्नी का साथ दिया. मेरी पत्नी घर का पूरा काम समाप्त कर वह कड़ी धूप या बारिश में काम करती है. मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है.
स्विगी की एक ग्राहक स्वीटी ने बताया कि जब मैंने ऑर्डर दिया तो स्विगी की ओर से मुझे एक डिलीवरी वुमन अगले 30 मिनट में खाना लेकर पहुंचेगी का नोटिफिकेशन आया. मैंने देखा कि ठीक समय पर डिलीवरी वुमन स्कूटी के माध्यम से खाना लेकर मेरे पास पहुंची. मेरा यह ऑर्डर मुझे हमेशा याद रहेगा. स्वीटी ने बताया कि महिला किसी भी क्षेत्र में अब पीछे नहीं हैं. वह अपने परिवार के लिए कठिन से कठिन कार्य कर सकती हैं. मैं मैडम को इस कार्य के लिए सम्मान देती हूं.