यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) की प्रीलिम्स परीक्षा 4 अक्टूबर है. ये परीक्षा सबसे कठिन मानी जाती है, जिसे कोई भी उम्मीदवार दिन रात मेहनत कर पास करता है. ऐसे में आज आपको ऐसी लड़की बारे में बताने जा रहे है. जिन्होंने झुग्गी में रहकर इस परीक्षा की तैयारी की और पहले ही प्रयास में परीक्षा पास कर ली. आइए जानते हैं उनके बारे में.
इस लड़की नाम उम्मूल खेर हैं. जिन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा साल 2017 में पास की थी. इस परीक्षा में उन्होंने 420 रैंक हासिल की थी. उम्मूल ने सातवीं कक्षा से पढ़ाई का खर्च खुद उठाया है.
झुग्गी में रहती थी उम्मूल
उम्मुल दिल्ली के निजामुद्दीन में एक झुग्गी में अपने परिवार के साथ रहती थीं. फुटपाथ पर उनके पिताजी कुछ सामान बेचा करते थे, लेकिन जब इन झुग्गियों को हटा दिया गया था, तो उम्मूल परिवार के साथ त्रिलोकपुरी में किराए के घर में शिफ्ट में हो गई थी. लेकिन, उस दौरान उनके पिता के पास कोई काम नहीं था.
उस समय उम्मूल के घर की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बिगड़ी हुई थी. घर को चलाने के पैसे और घर का किराया देने के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल हो पा रहा था. ऐसे में उम्मूल ने आस पास के बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया. जहां उम्मूल रहती थी, वहां गरीब बच्चे भी रहते हैं, ऐसे में संभव नहीं था कि उनके माता- पिता ट्यूशन की फीस ज्यादा दे पाएं, इसलिए पैसे जोड़ने के लिए उम्मूल एक बच्चे की ट्यूशन फीस 50 रुपये ही लेती थीं. उम्मूल ने एक टीवी चैनल का इंटरव्यू देते हुए कहा था, "वो दौर काफी कठिनाइयों से भरा था. ट्यूशन पढ़ाकर किराये और घर के खर्चे के पैसे निकलना, इसी के साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखना, ये काफी मुश्किल थाा."
उम्मूल बचपन से ही पढ़ाई के प्रति काफी सीरियस थी. उन्होंने कहा था, "मुझे बचपन से यकीन था, इस माहौल से अगर कोई चीज मुझे निकाल सकती है तो वह पढ़ाई ही है. इसलिए मेरा फोकस हमेशा पढ़ाई पर रहा."
जब माता पिता से हुई अलग
उम्मूल पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन उनके घर में पढ़ाई का माहौल नहीं था. उनके परिवार वालों ने उम्मूल से कहा था, कक्षा 8वीं तक पढ़ाई काफी है. इसके बाद सिलाई का कोई कोर्स कर लें. उम्मूल के परिवार वालों को पढ़ाई के लिए मनाना मुश्किल हो रहा था. लेकिन उम्मूल ने दूसरी क्लास से ही IAS बनने का सपना देखा था. ऐसे में उन्होंने अपनी पढ़ाई अपने दम पर जारी रखी.
बोन फ्रजाइल डिसीज से ग्रसित
उम्मूल को जीवन में काफी परेशानियां झेलनी पड़ीं. उनकी एक परेशानी जन्म से जुड़ी थी, वह थी हड्डियों के अत्यधिक नाजुक होने की वजह से झट से टूट जाना. जितना प्रेशर या चोट एक आम आदमी का शरीर सह लेता है, इस रोग से ग्रसित व्यक्ति नहीं सह सकता. यही वजह है कि छोटी सी उम्र में उम्मूल ने 15 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी करवाईं. इसके अलावा उम्मूल के पास कोई चारा नहीं था. और तो और जब वे स्कूल में थीं, उसी समय उनकी मां का देहांत हो गया. पिता ने दूसरी शादी कर ली और नई मां को उम्मूल का पढ़ना-लिखना पसंद नहीं था. सबने मिलकर पूरी कोशिश की कि उम्मूल पढ़ाई छोड़ दें. उनके माता- पिता ने कहा था, अगर उम्मूल ने पढ़ाई आगे जारी रखी तो वह उसके साथ अपने सभी रिश्ते तोड़ लेंगे, जिसके बाद उम्मूल ने पढ़ाई तो नहीं छोड़ी लेकिन घर जरूर छोड़ दिया.
घर छोड़ने के बाद वह त्रिलोकपुरी में एक झुग्गी झोपड़ी में रहने लगीं. जिसके बाद उन्होंने ट्यूशन पढ़ाकर पैसे इकट्ठे किए और निर्णय लिया की अब सिविल सेवा परीक्षा के लिए तैयारी करेंगी.
अकेले रहने के कारण उम्मूल को पैसों की काफी जरूरत थी, जिसके बाद उन्होंने ज्यादा ट्यूशन लेने शुरू कर दिए थे. दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक, फिर शाम 5 से 7 बजे, शाम 7 से 9 बजे और रात 9 से 11 बजे तक वह चार बैच में ट्यूशन लिया करती थीं. जिन बच्चों को वह पढ़ाती थीं वह ज्यादातर स्लम क्षेत्रों के थे और प्रत्येक छात्र से 50-100 रुपये मिलते थे.
उम्मूल ने बताया, एक लड़की के लिए एक झुग्गी में अकेले रहना कभी-कभी दर्दनाक था. क्योंकि यह जगह सुरक्षित नहीं थी, लेकिन इसके अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं था.
अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उम्मूल ने इंटरनेशनल स्टडीज में मास्टर के लिए जेएनयू प्रवेश परीक्षा पास की. जिसमें उन्हें 2,000 रुपये का साधन-सह-योग्यता छात्रवृत्ति मिल रही थी. 2013 में, उसने जूनियर रिसर्च फेलोशिप (JRF) को क्रैक किया जिसके तहत उसे प्रति माह 25,000 रुपये मिलने लगे.