हुनर ही नया हथियार है. अगर इस देश के नौजवानों को काम करने की ढेर सारी संभावनाएं दी जाएं और इनके लिए जरूरी हुनर सिखा दिया जाए तो देश के नौजवान नया भारत खड़ा कर सकते हैं.” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 सितंबर, 2014 को अमेरिका में न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर के अपने बहुचर्चित भाषण में यह आह्वान कर संकेत दिया था कि विकसित भारत बनाने की चाबी हुनरमंद युवाओं की मुट्ठी में छिपी है.
दरअसल, देश की मौजूदा स्थिति यह है कि एक तरफ तो करोड़ों युवाओं के पास ऐसी डिग्रियां हैं, जिनकी पढ़ाई उद्योगों में नौकरी के लायक नहीं है, दूसरी तरफ कम पढ़े-लिखे मिस्त्री-कारीगरों की ऐसी फौज है जो काम तो कर रही है, लेकिन उनके पास काम करने की पेशेवर ट्रेनिंग नहीं है. अमेरिका जैसे विकसित देशों में 90 फीसदी कामगारों के पास उनके काम से जुड़ी पेशेवर ट्रेनिंग है, जबकि भारत में 5-6 फीसदी कामगार ही पेशेवर नजरिए से हुनरमंद हैं.
ऐसे में “स्वच्छ भारत” से लेकर “मेक इन इंडिया” तक कई महत्वाकांक्षी अभियानों की कामयाबी इस बात में छुपी है कि क्या भारत अगले 10 साल में कम से कम 15 करोड़ हुनरमंदों की फौज तैयार कर पाता है या नहीं. ऐसा नहीं है कि देश में यह सवाल पहली बार उठ रहा है. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते जब शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बदला गया था तो उसका मूल मकसद पेशेवर शिक्षा को बढ़ावा देना ही था.
इसी तरह मनमोहन सिंह सरकार 2009 में राष्ट्रीय कौशल विकास नीति भी इसी उद्देश्य के तहत लाई, लेकिन 2012 तक 5 करोड़ लोगों को हुनरमंद बनाने का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई. देश में इस समय भी 12,500 से अधिक आइटीआइ चल रही हैं, जिनका मुख्य काम प्लंबर, फिटर, एसी और टीवी इलेक्ट्रिशियन जैसे टेक्नीशियन तैयार करना है. मोदी सरकार का नया कौशल विकास मंत्रालय भी इन्हीं पुरानी योजनाओं को नए तेवर के साथ लागू करने की एक कोशिश है.
करोड़ों हाथों को हुनर
नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएसडीसी) के चेयरमैन दिलीप चिनॉय कहते हैं, “आइटीआइ जैसी संस्थाएं अपनी भूमिका पर खरा उतरने में नाकाम रही हैं. ऐसे में नए किस्म के पाठ्यक्रम, सर्टिफिकेट और संस्थानों की जरूरत है जो उद्योग और वर्तमान जरूरतों के हिसाब से कम समय में युवाओं को प्रशिक्षित कर सकें.” नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (एनएसन्न्यूएफ) के तहत बने 1,000 से अधिक सर्टिफिकेट कोर्स में थ्योरी की तुलना में प्रेक्टिकल पर ज्यादा जोर होगा. इस बात की खास ताकीद होगी कि ये न सिर्फ भारत के लिए मानक बनें, बल्कि दुनिया के किसी भी विकसित देश के मानकों पर खरे उतरें.मोदी जब भी किसी देश की यात्रा पर जाते हैं तो वहां स्किल डेवलपमेंट को लेकर कुछ समझौते जरूर कर आते हैं. ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और अमेरिका जैसे प्रमुख देशों सहित कई देशों से इस बारे में समझौते हो चुके हैं. निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों को इस काम में जोड़ने में सरकार सक्रिय है. देश भर में 17,000 प्रशिक्षण केंद्र एनएसडीसी से जुड़ चुके हैं. यहां सरकारी योजनाओं के तहत कौशल विकास के अलावा उद्योगों की मांग के हिसाब से व्यावसायिक शिक्षा दी जा रही है.
प्रशिक्षण केंद्रों का जाल इस पहल की कामयाबी के बारे में देश भर में 40 से अधिक सेंटरों में युवाओं को प्रशिक्षण दे रहे आइएलएफएस स्किल्स डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट अंकुर आहुजा बताते हैं, “ज्यादातर मामलों में दाखिला उद्योगों की मांग के हिसाब से ही किया जाता है. हर सेंटर पर 4 से 5 ट्रेड की पढ़ाई होती है.” इन संस्थानों में 3 से 6 महीने की ट्रेनिंग और सर्टिफिकेट लेने के बाद व्यक्ति उद्योग की जरूरतों के लिहाज से पक्का हो जाता है. आहूजा बताते हैं कि आइएलएफएस के सेंटरों में प्रशिक्षण ले रहे युवाओं में से 75 फीसदी की स्पॉन्सरशिप सरकार करती है, 10 से 12 फीसदी का खर्च कॉर्पोरेट सोशल रिसपांसिबिलीटी (सीएसआर) के तहत सार्वजनिक तथा निजी उपक्रम उठा रहे हैं और 8 फीसदी अपनी जेब से खर्च कर रहे हैं.
शुरुआत में इन युवाओं को 7,000 रु . से 14,000 रु. तक की नौकरी मिल जाती है. आइएलएफएस से रिटेल में कोर्स करने वाली प्रीति बताती हैं, “मैं और मेरे 10 साथी अभी-अभी पैंटालून में इंटरव्यू देकर आए हैं.” उन्हें और उनके साथियों को किसी जानने वाले ने संस्था के ओखला सेंटर के बारे में बताया था. इन लोगों ने 12वीं पास की है. यहां की ट्रेनिंग के जरिए वे नौकरी करेंगे और इसी नौकरी से अपनी आगे की पढ़ाई का खर्च उठाने का इरादा रखते हैं.
दरअसल मलिक केंद्र सरकार की “उड़ान” योजना के तहत ट्रेनिंग ले रहे हैं, जिसमें पांच साल में जम्मू-कश्मीर के 40,000 युवाओं को हुनरमंद बनाकर उन्हें रोजगार के लायक बनाया जाना है. सीएनसी की ट्रेनिंग के बाद मलिक जैसे युवा ऑटोमोबाइल कंपनियों के पार्ट्स बनाने वाले टेक्नीशियन बन जाएंगे.
कम नहीं हैं चुनौतियांप्रीति और बिलाल जैसे युवा दिल्ली और गुड़गांव के प्रतिष्ठित ट्रेनिंग सेंटरों में पढ़कर नौकरी पाने के लिए आश्वस्त तो हैं लेकिन क्या सबको नौकरी मिल जाएगी? यह सवाल आसान नहीं है. एनएसडीसी के प्रशिक्षण केंद्रों से निकले युवाओं के नौकरी पाने की दर अभी 58 फीसदी ही है. चिनॉय कहते हैं, “हमारा मकसद नौकरी देना नहीं, युवाओं को नौकरी के योग्य बनाना है. बहुत से मामलों में लड़के नौकरी करने की बजाए खुद का काम करना पसंद करते हैं.” प्लसेमेंट की दर बढ़ाने के अलावा केंद्र सरकार के मंत्रालयों के बीच आपसी तालमेल बनाना भी बहुत बड़ी चुनौती है.
वजह यह है कि कौशल विकास की इस योजना में पांच साल में 5 लाख करोड़ रु. लगने का अनुमान है. इस समय केंद्र सरकार के 20 से ज्यादा मंत्रालय अपनी-अपनी स्किल डेवलपमेंट योजनाएं चला रहे हैं जबकि कौशल विकास फंड में महज 1,500 करोड़ रु. हैं. इसलिए मंत्रालयों की योजनाओं को जोड़ना होगा. फिर भी भारी कमी होगी. इसका प्रबंधन कहां से होगा, यही बड़ा सवाल है. कौशल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजीव प्रताप रूडी कहते हैं, “हर बड़े सपने की शुरुआत छोटे स्तर पर होती है. समाज, उद्योग और सरकार के सहयोग से धीरे-धीरे संभव हो जाएगा.” (देखेः बातचीत) चुनौती यह भी है कि जिस तरह आइटीआइ लंबे समय से अपनी भूमिका ढंग से नहीं निभा पाईं, वैसे में क्या गारंटी है कि ये नए कौशल विकास केंद्र कामयाब होंगे. क्या आइटीआइ से कमजोर आर्थिक संसाधनों वाले ये केंद्र आइटीआइ से बेहतर नतीजे दे पाएंगे?
मुश्किलें हैं तो हल भी हैंचिनॉय कहते हैं, “इन्हीं सवालों के हल में तो एनएसडीसी जुटी है.” विकसित देशों से हुए सरकारी समझौतों का मकसद वहां से बेहतर टेक्नोलॉजी और बेहतर ट्रेनर प्राप्त करना है. अगर उद्योगों को हम यह भरोसा दिला पाए कि इन सर्टिफिकेट्स से लैस युवा उनके काम का है तो उद्योग इस दिशा में बेहतर निवेश करेंगे. जहां तक प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता का सवाल है तो इसके लिए विस्तृत मानक बनाए गए हैं. कहीं सरकारी स्पॉन्सरशिप वाली योजनाओं में पहले की तरह फिर फर्जी छात्रों को दिखाकर पैसा खा लिया गया तो? ऐसे कई मामलों की जांच-पड़ताल चल रही है.
चिनॉय कहते हैं, “कई मंत्रालयों ने बायोमीट्रिक हाजिरी और नौकरी पाने वाले छात्र की तीन महीने की सैलरी स्लिप की शर्तें रखी हैं. लेकिन हमारी कोशिश है कि समाज खुद अपने आपको आगे बढ़ाने की ललक पैदा करे. अगर जांच-पड़ताल में ही लगे रहे और शक की नजर से देखते रहे तो स्किल्ड इंडिया का ख्वाब कैसे पूरा होगा?”