देश की अदालतो में काम तो बदस्तूर जारी है लेकिन कैसे इसकी सुध शायद साल भर से चल रही सरकार ने नहीं ली है. नए जजों की नियुक्ति, पुराने जजों की तरक्की या तबादलों का मामला महीनों से अटका पड़ा है. क्योंकि कोलेजियम सिस्टम खत्म हो गया और राष्ट्रीय न्यायपालिका नियुक्ति आयोग यानी एनजेएसी ने काम शुरू ही नहीं किया. सरकार और अदालत कानूनी जंग में जुटी है. सरकार के इस रवैय्ये से जनता हैरान भी है और परेशान भी.
सरकार के इस ढीले रवैय्ये पर संविधान विशेषज्ञ केटी एस तुलसी कहते हैं कि 'सरकार की मंशा नहीं है कि सरकार पर अंकुश लगाने वाले संस्थानों में कोई संवैधानिक व्यक्ति बैठे. उनका ध्यान इस पर नहीं है. साल तो पूरा हो गया लेकिन कई अदालती नियुक्तियों के कई काम अटके पड़े हैं. इस पूरे मामले में जनता परेशान है.' पंजाब-हरियाणा, गुवाहाटी और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट्स में स्थायी मुख्य न्यायाधीश नहीं है. यहां महीनों से कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ही काम कर रहे हैं.
देश के सभी हाईकोर्ट्स में न्यायमूर्तियों के कुल 358 पद खाली पड़े हैं. सबसे ज्यादा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 78 जज, दिल्ली हाईकोर्ट में 19 और झारखंड व पटना हाईकोर्ट्स में 12-12 जजों के पद खाली हैं. देश में लंबित मुकदमों की अनुमानित तादाद पौने तीन करोड़ से ज्यादा है जबकि उच्च न्यायालयों में 1500 जजों की जरूरत है.
संसद के अगले सत्र तक हाईकोर्ट में और भी कई जज रिटायर हो जाएंगे. ऐसे में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीशों की कलम से कई अहम कार्यकारी और वित्तीय फैसले नहीं हो पा रहे हैं. जिसके चलते सिर्फ लंबित मुकदमों के फैसले ही नहीं बल्कि प्रशासनिक फैसले भी फंसे हुए हैं. ये तो सिर्फ देश भर में उच्च न्यायपालिका की हकीकत है. इसके अलावा सीवीसी जैसी कई संवैधानिक संस्थाओं में भी प्रमुख पद खाली है. जिससे सरकार के लिए इस मोर्चे पर भी बड़े सवाल खड़े हो गए हैं.