दिल्ली सरकार के स्कूल ऑफ एक्सीलेंस को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को नोटिस दिया है, कोर्ट ने सरकार को एक हफ्ते में अपना जवाब दायर करने को कहा है.
ये याचिका दिल्ली के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले 10वीं कक्षा के छात्र के द्वारा ही लगाई गई है जिसमें दिल्ली सरकार के स्कूल ऑफ एक्सीलेंस को भेदभावपूर्ण और तर्कसंगत न होने की बात कही गई है.
इस छात्र ने 10वीं की परीक्षा एक सरकारी स्कूल से ही पूरी की. लेकिन 11वीं में बेहतर शिक्षा के लिए जब उसने प्रवेश के लिए स्कूल ऑफ एक्सीलेंस(एसओई) कैटेगरी के स्कूल में एडमिशन के लिए एप्लीकेशन लगाई तो उससे रिजेक्ट कर दिया गया.
दिल्ली सरकार ने आज भी सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट को कहा कि 'राइट टू एजुकेशन एक्ट' के तहत उनके पास स्कूल ऑफ एक्सीलेंस जैसे प्रयोग करने का अधिकार है और यह छात्रों की बेहतरी के लिए किया गया है, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील अशोक अग्रवाल ने कोर्ट को कहा कि राइट टु एजुकेशन एक्ट आठवीं कक्षा तक के 14 साल के बच्चों पर लागू होता है यह छात्र दसवीं की पढ़ाई पूरी करके 11वीं कक्षा में प्रवेश लेना चाहता है.
ऐसे में विज्ञान विषय से पढ़ाई करने के लिए इस छात्र को एडमिशन सिर्फ इस आधार पर मना कर दिया गया कि उसके हिंदी में दो नंबर कम थे जबकि बाकी और दिल्ली सरकार के 900 सरकारी स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई के लिए हिंदी के नंबर 51 फ़ीसदी होना अनिवार्य नहीं है, ऐसे में जब सभी स्कूलों में 11 वीं की विज्ञान की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम के द्वारा की जा रही है तो फिर एडमिशन के लिए सरकारी स्कूल में दिल्ली सरकार दो क्राइटेरिया कैसे तय कर सकती है.
एसओई कैटेगरी में आने वाले स्कूल दिल्ली सरकार के अधीन चलने वाले वह सरकारी स्कूल है जिसमें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करवाई जाती है. फिलहाल इन स्कूलों की संख्या दिल्ली में सिर्फ पांच है.
दिल्ली सरकार के बाकी और सरकारी स्कूलों की तुलना में स्कूल ऑफ एक्सीलेंस कैटेगरी के स्कूलों में पढ़ाई के उच्च मापदंड रखे गए हैं. छात्र ने अपनी याचिका में बताया है कि यहां प्रवेश के लिए जो नियम बनाए गए हैं वह बाकी और सरकारी स्कूलों से बिल्कुल अलग हैं जो छात्रों के साथ भेदभाव पूर्ण है. सरकारी धन से चलने वाले सभी स्कूलों में सभी छात्रों को बराबरी के आधार पर प्रवेश मिलना चाहिए.