पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय इन दिनों चर्चा में हैं. उनका कार्यकाल मुख्य सचिव के बतौर खत्म होने के बाद उन्हें केंद्र सरकार की ओर से बुला लिया गया था लेकिन ममता सरकार ने उनका कार्यकाल तीन माह बढ़ा दिया था. इसी के बाद उनका नाम सुर्खियों में हैं. इंडिया टुडे के सीनियर जर्नलिस्ट जयंत घोषाल उनके सहपाठी रहे हैं. उन्होंने अलपन के साथ अपने कुछ व्यक्तिगत अनुभव साझा किए हैं. आइए उन्हीं की जुबानी अलपन उपाध्याय के बारे में जानते हैं ये खास बातें....
जयंत घोषाल बताते हैं कि वो मेरे साथ नरेंद्रपुर रामकृष्ण मिशन में सहपाठी थे. हम 1976 में कक्षा दसवीं के फाइनल बैच थे. इत्तेफाक से हम एक ही हॉस्टल में रहते थे. अलपन हमेशा से अंतर्मुखी स्वभाव के अच्छे स्टूडेंट थे. वो स्कूल में फाइनल इयर में तीसरे स्थान पर रहे.
वो मूलरूप से कोलकाता के तो नहीं थे लेकिन बंगाल के कोयला क्षेत्र से आए थे. फिर 11वीं कक्षा में जब हर किसी ने सोचा कि वह सामान्य विज्ञान या इंजीनियरिंग स्ट्रीम में जाएंगे तो उन्होंने ह्यूमैनिटी लेकर सभी को चौंका दिया. इसका कारण ये बताया कि वह आईएएस अधिकारी बनना चाहते हैं. फिर कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में प्रथम श्रेणी प्राप्त की.
उसके बाद वो पत्रकारिता में शामिल हुए, यहां से साल 1987 में बंगाल से आईएएस परीक्षा में प्रथम आए. इसके बाद उनका शानदार करियर था. उस समय ज्योति बसु सीएम थे और मुख्य सचिव रथिन सेनगुप्ता थे. वह उनसे प्यार करते थे. एक बार उन्होंने कहा कि देखना अलपन एक दिन तुम मुख्य सचिव बनोगे.
अगर उनकी पर्सनल लाइफ की बात करें तो अलपन ने प्रसिद्ध कवि स्वर्गीय निरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती की पुत्री सोनाली चक्रवर्ती से विवाह किया. सोनाली अब कोलकाता यूनिवर्सिटी की वीसी हैं. हां, अलपन की एक कमजोरी थी. उन्होंने कभी दिल्ली में काम नहीं किया. वो हमेशा बंगाल में रहे. एक बार जवाहर सरकार (सेवानिवृत्त आईएएस) ने उनसे कहा कि अलपन बंगाल से बाहर आ जाओ. अन्य सभी कैडर के लोगों के साथ काम करो.
सबकी तरह आईएएस बनने के बाद वे मसूरी में आईएएस अकादमी गए. उस समय आंध्र कैडर के वरिष्ठ लेकिन बोंग के वरिष्ठ अधिकारी अब सेवानिवृत्त अमिताभ भट्टाचार्य ने कहा कि वह शानदार थे. वह भारतीय दर्शन और टैगोर, गांधी आदि के राजनीतिक विचारों पर बहुत सारी किताबें पढ़ते थे. इसके बाद अलपन अवर सचिव गृह बने. यह एक प्रोटोकॉल ड्यूटी है जो दिल्ली में वीआईपी प्राप्त करते थे. वो एक अच्छे वक्ता भी रहे. जब बुद्धदेव मुख्यमंत्री बने तो वे भी उनसे प्यार करते थे. जैसा कि बुद्ध पहले सूचना और संस्कृति मंत्री थे.
अलपन के भी मीडिया के डीएनए भी हैं इसलिए वह मीडिया और सरकार को जोड़ते थे. वह कभी भी किसी सीएम के बहुत करीब नहीं रहे, वजह उनका स्वभाव था जो कभी भी पिछलग्गू अफसर जैसा नहीं था. बताया जाता है कि दीदी ने उन्हें गृह सचिव नहीं बनाया बल्कि अलपन से जूनियर अत्री भट्टाचार्य को ये पद मिला. उसी समय एक कंट्रोवर्सी ये हुई कि दीदी ने उनकी पत्नी को कोलकाता यूनिवर्सिटी की वीसी बनाकर मामला बैलेंस किया. लेकिन बाद में सीएम का अत्री से मोहभंग हो गया और वे होम सेक्रेटरी से फिर चीफ सेक्रेटरी बन गए।
पीएमओ के साथ सभी सम्मेलन में वो शामिल हुआ करते थे. वह नियमित राज्यपाल से मिलते थे. राज्यपाल के साथ उनके अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं. पीएमओ में पीएम के सलाहकार भास्कर खुल्बे अभी भी सीजफायर की कोशिश कर रहे हैं. उस दिन खुल्बे भी वहीं थे. उन्होंने पीएम और गवर्नर से कहा- सर सीएस क्या कर सकते हैं? अगर सीएम ने उन्हें साथ चलने को कहा! वह कैसे कह सकता है कि सॉरी मैडम सीएम मैं आपके साथ नहीं जा सकता, मुझे पीएम के साथ वहां रहना चाहिए.
हाल ही में अलपन ने अपने भाई को कोविड में खो दिया जो एक मीडिया पर्सन भी थे. फिलहाल अलपन ने इस विवाद पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. दीदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि अगर दिल्ली उन्हें बर्खास्त कर देती है. वह उन्हें सीएम की प्रमुख सलाहकार बनाएंगी. यहां तक कि वे राजनीति में शामिल हो सकते हैं / वे शिक्षा मंत्री / यहां तक कि राज्यसभा सदस्य भी बन सकते हैं.
लेकिन अलपन आज उदास हैं. भले ही उनके पूरे करियर में कोई दाग नहीं है. अब अगर दिल्ली उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करती है तो पेंशन और सेवानिवृत्ति के बाद की सुविधा नहीं मिलती तो यह उनके लिए रिकॉर्ड के मुद्दे पर दुखद होगा.
उन्होंने बांग्ला में सुशासन और नौकरशाही के इतिहास पर एक किताब लिखी है. उन्होंने बंगाल के इतिहास का अध्ययन किया. बंगाल में जाति व्यवस्था पर लिखित लेख / रामकृष्ण परमहंस और हिंदू सुधार आंदोलन पर भी काम किया है. उनका बेटा प्रेसीडेंसी कॉलेज में इतिहास का प्रोफेसर है. उनकी भाभी प्रिंसिपल लेडी ब्रेबोन कॉलेज में प्रिंसिपल हैं.