इमरान खान. पाकिस्तान क्रिकेट टीम का हरफनमौना खिलाड़ी. एक जबरदस्त स्विंग गेंदबाज, एक बल्लेबाज, एक राजनेता और एक लेखक. जिसकी कभी हार न मानने वाली स्पिरिट से पूरी दुनिया वाकिफ है. जिसने अपने स्टाइल और क्लास से न जाने कितने ही युवा दिलों को मुस्कुराने का मौका दिया. वे साल 1952 में 25 नवंबर के रोज ही पैदा हुए थे. वे आज 63 के हो रहे हैं और ऐसा लगता है जैसे वे हमारे सामने ही क्रिकेट खेलते रहे हों. एक आम इंसान और स्टूडेंट उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं.
1. वे जल्दी की शुरुआत में यकीन रखते हैं...
इमरान खान के करियर ग्राफ से वाकिफ लोग जानते हैं कि उन्होंने 16 साल की उम्र में फर्स्ट क्लास क्रिकेट से अपने करियर की शुरुआत की और महज 2 साल के भीतर वे पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का हिस्सा थे. उनकी रिवर्स स्विंग वाली यॉर्कर गेंद पर अच्छे-अच्छे बल्लेबाज गच्चा खा जाते थे.
2. देश से पहले इंग्लैंड में खेले...
वे इंग्लैंड में पढ़े और इंग्लिश स्कूल क्रिकेट सर्किल में वे जाने पहचाने नाम बन गए. वे साल 1974 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी टीम का भी हिस्सा थे. वे ससेक्स और वर्सेश्टशायर की ओर से भी खेल चुके हैं.
3. वे शानदार और सफल कप्तान रहे...
वे पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के शानदार और सफल कप्तान रहे. उनकी तुलना हमेशा भारत के कप्तान कपिल देव से की जाती रही है. उनकी कभी हार न मानने वाली काबिलियत की वजह से जिया उल हक ने उन्हें रिटायरमेंट के बाद फिर से वापसी करने को कहा. जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान ने साल 1992 का एक मात्र विश्व कप अपने नाम किया.
4. वे खेल साथ-साथ सियासत में भी पारंगत हैं...
ऐसा अमूमन कम होता है कि अपना अधिकांश समय खेल के मैदान में देने के बावजूद कोई सियासत का भी शानदार खिलाड़ी साबित हो. इमरान इसके अपवाद हैं. उन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ नाम से अपनी पार्टी बनाई है. चुनाव लड़ते हैं और पाकिस्तान के तमाम राजनीतिक चेहरों के बीच एक शानदार राजनेता बन कर उभरे हैं.
5. खेल और सियासत के साथ-साथ लेखन...
यहां लोग किसी एक जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर पाते और इमरान खेल, सियासत और पढ़ाई-लिखाई के बीच भी सामंजस्य बिठा लेते हैं. वे अब तक पांच किताबें भी लिख चुके हैं. इसके अलावा वे ब्रैडफोर्ड यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति भी रह चुके हैं.
6. सियासत के साथ समाजसेवा...
इमरान खान ने पाकिस्तान में मशहूर कैंसर अस्पताल शौकत खानुम हॉस्पिटल की स्थापना की. पाकिस्तान की आम और वंचित अवाम के लिए यह एक बड़ा तोहफा है. उन्होंने टेक्निकल पढ़ाई के लिए नामाल कॉलेज की भी स्थापना की है.