टाटा. जेआरडी टाटा. जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा. हिन्दुस्तान के उद्योग जगत का एक ऐसा नाम जिनके बिना भारत के उद्योग जगत का इतिहास लिखा जाना असंभव है. जिसे उद्धरित किए बगैर भविष्य पर बात नहीं की जा सकती. इतना ही नहीं. हिन्दुस्तान में तो यह हमेशा ही कहा जाता रहा है कि टाटा और बाटा के बगैर तो भारत में रहा ही नहीं जा सकता.
कौन जानता था कि यूरोप (फ्रांस) की सरजमीं पर पैदा हुआ यह शख्स पूरी दुनिया के लिए एक किंवदंती बन जाएगा. हमारे पुरखे जिसके सफलता और नाकामियों के किस्से सुनाया करेंगे. उनकी मां एक फ्रांसीसी थीं और पिता एक पारसी. व्यापार तो जैसे उनके खून में ही दौड़ता था. वे साल 1904 में 29 जुलाई के रोज ही पैदा हुए और साल 1993 में 29 नवंबर के दिन उनका देहावसान हुआ. इस बीच वो इतना कुछ कर गए कि उनकी मौत के दशकों बाद भी उनका नाम हम-सब के जेहन में जिंदा है. एक आम इंसान और खास तौर पर स्टूडेंट उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं.
1. ड्यूटी से पहले ट्रेनिंग...
एक आम इंसान को आमतौर पर किसी भी शख्स की सफलता ही दिखलाई पड़ती है. उसका संघर्ष हमें नहीं दिखलाई पड़ता लेकिन हम यहां आपको बताते चलें कि जेआरडी टाटा अपनी पढ़ाई के बाद फ्रांस की आर्मी में बतौर रिक्रूट काम कर चुके हैं.
2. ट्रेनिंग के बाद सिर्फ काम...
अपनी एक साल की आर्मी ट्रेनिंग के बाद वे भारत वापस आ गए. उन्होंने साल 1925 में बतौर ट्रेनी टाटा एंड सन्स ज्वाइन किया. उन्हें वहां काम करने का कोई मेहनताना भी नहीं मिलता था. वे वहां 12 साल रहे और फिर उन्हें भारत के सबसे बड़े उद्योग समूह का मुखिया बना दिया गया. इस बीच वे अलग-अलग भूमिकाओं में काम सीखते रहे.
3. हवा की उड़ान...
उन्होंने साल 1948 में एयर इंडिया की स्थापना की. इसके अलावा वे भारत के पहले लाइसेंसधारी पायलट भी थे. उन्होंने अपने हवा में उड़ने के साथ-साथ सबकी उड़ान का इंतजाम किया.
4. एक ही समय में कई जिम्मेदारियां...
ऐसा नहीं था कि वे एकमात्र भूमिका में ही खुश थे. वह अपनी शक्ति को बढ़ाते हुए पूरी दुनिया के लिए नए आयाम खोल रहे थे. वे केमिकल्स, ऑटोमोबाइल्स, चाय और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में भी आए और जमकर आए. इसके अलावा उन्होंने मेडिकल क्षेत्र में भी अपना पैर जमाने की कोशिश की.
5. अपने मातहतों का खयाल...
किसी भी धंधे या उद्योग में बढ़ना तब तक मुमकिन नहीं जब तक आप अपने कर्मचारियों का विश्वास न जीत लें. वे अपनी संस्था में काम कर रहे कर्मचारियों का पूरा खयाल रखते रहे. उनके लिए प्रोविडेंट फंड से लेकर मेडिकल तक की व्यवस्था करायी. संक्षेप में कहें तो वे उनके परोक्ष अभिभावक थे.
शायद, यही वजह है कि जेआरडी टाटा के देहावसान के इतने वर्षों के बाद भी ऐसा लगता है जैसे वे हमारे बीच ही हों. हम उनसे हमेशा कुछ-न-कुछ सीखते रहे. विनम्र श्रद्धांजलि जेआरडी टाटा.