हरियाणा के हिसार की रहने वाली साइना एक मध्यम वर्ग परिवार से ताल्लुक रखती हैं और दुनिया में इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया है. वह दुनिया में बैडमिंटन की नंबर एक खिलाड़ी रह चुकी हैं. भारत के लिए बैडमिंटन के खेल में ओलम्पिक्स का एकमात्र मेडल जीत चुकी हैं. आज जिन्हें देख कर हमारे देश की अधिकांश लड़कियां-लड़के व खिलाड़ी प्रेरणा लेते हैं.
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि अपने खेल में जीजान लगा देने वालीं साइना धर्म-अध्यात्म और फिलॉसफी पर भी अच्छी-खासी पकड़ रखती हैं. ऐसे में जानें कि वे लगातार शिखर पर बने रहने के लिए क्या-क्या करती हैं और आगे बढ़ने के लिए आप उनसे क्या सीख सकते हैं -
1. हर मैच से सीखती हूं...
मेरी फिलॉसफी है कि मैं किसी से न डरूं. अगर मैं अच्छा खेलूं तो, ठीक; अगर नहीं तो, मैं मैच से सीखती हूं और आगे बढ़ जाती हूं.
2. दुनिया से नहीं डरती...
मैं फील्ड और सोसाइटी में किसी से नहीं डरती, लेकिन मैं रात में माता-पिता के बगैर डर जाती हूं. मैं डरावनी फिल्मों में अज्ञात के डर से डर जाती हूं.
3. बेस्ट होने का लगातार प्रयास...
मैं बेस्ट होना चाहती हूं, यह रैंकिंग के बजाय मेरे लिए कंसिस्टेंसी का मामला है.
4. पेरेंट्स का सपोर्ट...
मेरे अंकल और रिलेटिव्स लड़कियों को आगे बढ़ाने के खिलाफ हैं, और इसमें खेल भी शामिल है. मैं उनसे बड़ी मुश्किल से बातें करती हूं. मेरे माता-पिता अधिक खुले हैं. वे मेरी हर संभव मदद करते हैं.
5. असफलता पर रोना मगर हिम्मत नहीं हारना...
मैं एक इंसान हूं. जब आप असफल होते हैं तो आप रोते हैं. ऐसा कई बार हुआ है कि मैं रोई हूं. लेकिन
6. लक्ष्य पाने पर सच्ची खुशी...
एक बार जो आप अपने लक्ष्य को पाकर खुश होते हैं, वही वास्तविक खुशी होती है.
7. सफलता को चढ़ने न दें...
आप अपनी सफलताओं को अपने सिर के ऊपर नहीं जाने दे सकते, और न ही असफलताओं से मायूस हो सकते हैं.
8. खुद पर भरोसा रखें...
ऐसा कई बार हुआ है कि मुझे साधारण टैलेंट कह कर खारिज करने की कोशिश हुई है. मुझे कोच खोजने में बहुत संघर्ष करना पड़ा. मुझे कइयों ने रिजेक्ट किया. मैं ईश्वर के प्रति शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे मेरे माता-पिता के रूप में शानदार लोग दिए. वे हर आड़े मौके पर मेरे संबल बन कर खड़े रहते हैं और कभी मेरा भरोसा खुद पर से टूटने नहीं देते हैं.