आईएमएच (Institute of Medical Health) चेन्नई ने दो ट्रांसजेंडर को रोजगार ऑफर करके उनके जीवन को एकदम नई दिशा दी है. उन्हें फिलहाल ये नौकरी कॉन्ट्रैक्ट पर दी गई है, जिसकी आय स्थिर होती है.
IMH की निदेशक पूर्णा चंद्रिका ने कहा कि वो ट्रांसजेंडर से मिलती थीं क्योंकि उन्हें ट्रांसजेंडर वेलफेयर कार्ड प्राप्त करने के लिए IMH से प्रमाण पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता होती थी. उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा सोचा कि यदि इन्हें एक स्थिर नौकरी दी जाए तो वे जीवन में उत्कृष्टता हासिल करेंगे.
निदेशक ने कहा कि हम चर्चा कर रहे थे कि ट्रांसजेंडर दुनिया में कई तरह की समस्याओं का सामना करते हैं, इनमें सबसे मुख्य एक बेरोजगारी है. जब उनके पास नौकरी नहीं होती तभी उन्हें व्यावसायिक यौनकर्मी बनने के लिए मजबूर होना पड़ता है. या फिर कई बार वो एक दुकान से दूसरी दुकान जाकर पैसा मांगते हैं.
वो कहती हैं कि मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि काबिलियत होने के बावजूद सिर्फ ट्रांसजेंडर होने के कारण बहुत से युवाओं को मरीन इंजीनियर, लेक्चरर और तमाम प्रोफेशनल जॉब नहीं मिल सके. इसीलिए मनीषा और वैष्णवी को देखकर उन्हें तुरंत जॉब ऑफर की.
पहले ऐसी थी मनीषा और वैष्णवी की लाइफ
27 वर्षीय मनीषा चेन्नई के एक प्रमुख सरकारी अस्पताल में सुरक्षा टीम के साथ काम करती थी. उसकी तीन बहनें हैं और बचपन में उसे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा. मनीषा को यह भी याद है कि एक बार उसके पिता ने उसे छत से लटका दिया था क्योंकि वो उसे एक्सेप्ट नहीं कर पा रहे थे. अंत में बाहर आने के बाद, मनीषा को सामाजिक कलंक होने जैसा फील कराया गया. उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली. हालांकि पूर्णा से मिलने के बाद उसकी किस्मत बदल गई, क्योंकि पूर्णा ने उसे एक टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में नियुक्त किया.
मनीषा कहती हैं कि एक ट्रांसजेंडर के लिए ऐसी नौकरी पाना आसान नहीं है. नौकरी मिलने पर मैं बहुत आभारी हूं. हमें यहां कोई समस्या नहीं है और केवल यही चाहते हैं कि हमारी कम्युनिटी को भी शिक्षा और नौकरियों में समान अवसर मिले. हम जहां भी नौकरी की तलाश में गए, नियोक्ता ने हमें अगले दिन आने का आश्वासन देकर लौटा दिया और कुछ नहीं हुआ. मनीषा ने कहा कि मेरा अब एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य सामान्य महिला की तरह जीवन जीना है.
मनीषा ने कहा कि मेरा उद्देश्य उन लोगों की मानसिकता को भी बदलना है जिन्होंने हमें कलंकित किया है. काश, वे भी हमारे साथ समान व्यवहार करें. वहीं वैष्णवी के दो भाई और दो बहनें हैं. उसके पिता एक ड्राइवर थे, वो भी वैष्णवी को मन से अपना नहीं पाए थे. सात साल की उम्र में जब उसने अपनी आईब्रो को सेट कराया तो ये बात पिता को अच्छी नहीं लगी थी. फिर 17 साल की उम्र में वैष्णवी को अपना घर छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्हें जीवन में कई अकथनीय कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. वो भी अब IMH में हाउसकीपिंग का काम करती हैं.
ट्रांसजेंडर को भी मिले अच्छी जिंदगी जीने का अवसर
वैष्णवी ने कहा कि मैं वास्तव में खुश हूं क्योंकि मुझे यहां नौकरी मिल गई है. मैं बस यही चाहती हूं कि अन्य ट्रांसजेंडरों को भी ऐसे अवसर मिले. 15 साल की उम्र में मुझे मरने के लिए कहा गया. मेरे पिता मां से पूछते थे कि इसे खाना क्यों दे रही हो. फिलहाल अब मेरे परिवार ने मुझे स्वीकार कर लिया है. वैष्णवी ने यह भी कहा कि उन्हें लगा कि एक व्यावसायिक यौनकर्मी बनने से कहीं अच्छा भीख मांगकर जीविका चलाना है.
मनीषा और वैष्णवी को अनुश्री द्वारा संचालित 'सेल्फ कॉन्फिडेंस ट्रांसजेंडर सोशल वेलफेयर ट्रस्ट' के जरिए पूर्णा से मिलने का मौका मिला, जो ट्रांसजेंडरों को बेहतर अवसर दिलाने के लिए भी संघर्ष कर रही है. मनीषा और वैष्णवी ने सीएम एमके स्टालिन से ट्रांसजेंडर को आरक्षण और काम का कोई भी साधन प्रदान करने का अनुरोध किया है क्योंकि उन्हें भी इस दुनिया में एक अच्छा जीवन जीने का अधिकार है.