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आप भी बन सकते हैं कुंबले, धोनी और विराट, बस ये ट्रिक लगानी होगी...

अगर आप पढ़ाई करने के साथ-साथ स्पोर्ट्स में भी इंटरेस्ट रखते हैं और खुद के प्रति ईमानदार रहते हुए देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह रखते हैं तो यह लेख खास आपके लिए है...

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थोड़ा अनुशासन आपको दोनों फील्ड्स में आगे रखेगा
थोड़ा अनुशासन आपको दोनों फील्ड्स में आगे रखेगा

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हमारे देश में वैसे तो न जाने कितनी ही कहावतें प्रचलित रही हैं लेकिन "खेलोगे कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे होगे नवाब" से तो हम सभी का पाला पड़ा ही होगा. हालांकि बदलते समय और दौर में इन कहावतों की धार कुंद पड़ी है. अब हमारी पीढ़ी पढ़ाई के साथ-साथ खेल के साथ भी सामंजस्य बिठा रही है. खेलने-कूदने वालों को अब दोयम दर्जे का मानने के बजाय सम्मान से देखा जा रहा है.

बहुत हैं उदाहरण
ऐसे खिलाड़ी चाहे क्रिकेट खेलते हों (विराट कोहली- दिल्ली विश्वविद्यालय),पहलवानी- साक्षी मलिक, या फिर बैडमिंटन- पी वी सिंधु. पूरा देश उन्हें उम्मीद और सम्मान से देखता है. इसके अलावा भारत में क्रिेकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को आज कौन नहीं जानता. गौरतलब है कि सचिन तेंदुलकर का एकेडिमक रिकॉर्ड शुरुआती दिनों में कुछ खास नहीं था. वे स्कूली दिनों में फेल भी होते रहे. हालांकि बाद के दिनों में उन्होंने पढ़ाई भी पूरी की और अंग्रेजी भी बोलने लगे. अंग्रेजी बोलने का जिक्र इसलिए क्योंकि हमारे देश में अंग्रेजी बोलने को आज भी पढ़े-लिखे होने का पैमाना माना जाता है.

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देश में पढ़ाई करते हुए स्पोर्ट्स खेलने की परंपरा को बूस्ट देने के क्रम में अलग-अलग स्कूल और विश्वविद्यालय स्पोर्ट्स कोटे के तहत भी दाखिला देते हैं. इतना ही नहीं इन विश्वविद्यालयों में स्पोर्ट्स कोटे से दाखिल स्टूडेंट्स ने बीते ओलंपिक्स खेलों में देश का भी प्रतिनिधित्व किया.

नौकरी मिलने में होगी आसानी...
विश्वविद्यालय में स्पोर्ट्स कोटे से दाखिल स्टूडेंट राज्य, जोन और राष्ट्रीय स्तर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हैं, और मेडल जीतने पर उन्हें देश के तमाम सर्विसेस जैसे रेलवे, बैंकिंग और सेना में नौकरियां भी मिलती है. वे वहां भी सर्विसेस की ओर से स्पोर्ट्स खेलने का काम करते हैं. उन्हें स्पोर्टस अलाउंस, छुट्टियां और सुविधाएं मिलती हैं सो अलग. वे इन सर्विसेस की ओर से खेलते-खेलते देश का प्रतिनिधित्व भी करने लगते हैं. उदाहरण- महेंद्र सिंह धोनी. वे खेल के दम पर ही रेलवे में टिकट कलेक्टर हुए और आगे अच्छा खेलते हुए इंडियन क्रिकेट टीम के कप्तान भी बने.

इन तमाम बातों के बाद जो सबसे जरूरी चीज निकल कर आती है कि पढ़ाई के साथ-साथ खेल के साथ कैसे बैलेंस करें. स्पोर्ट्स में पार्टिसिपेट करने वालों को किस तरह की दिक्कतें आती हैं. वे इनसे किस तरह निपटते और खुद को प्रेरित करते हैं.

  • अब इस बात से तो सभी वाकिफ होंगे कि स्पोर्ट्स खेलना हमसे अतिरिक्त सावधानी और एनर्जी की मांग करता है. इसके लिए एथलीट और खिलाड़ी प्रोटीन रिच डाइट का सहारा लेते हैं.
  • ऐसा करने की चाह रखने वालों को अपनी लाइफ में डिसिप्लिन को शामिल करना होगा. बिना डिसिप्लिन के तो स्पोर्ट्स में रिजल्ट मिलने से रहे.
  • पढ़ाई को निचले पायदान पर डालने के बजाय साथ-साथ लेकर चलें. वो कहा जाता है न कि किसी भी प्रकार की पढ़ाई बेकार नहीं जाती और इस देश में सारे स्पोर्ट्समैन सफल ही नहीं हो जाते.
  • स्पोर्ट्स खेलते रहने से आपकी फिटनेस बरकरार रहती है. वह फिटनेस आपके साथ ताउम्र बनी रहती है. आखिर स्वास्थ्य को ही तो दुनिया की सबसे बड़ी नेमतों में शुमार किया जाता है.

तो ज्यादा सोचिए मत और बस जुट जाइए. एक बार आप अपने सफर पर निकल गए तो फिर सभी आपकी मदद और प्रशंसा करेंगे. सफलता आपके कदमों को चूमेगी.

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