दिन पर दिन अफगानिस्तान में तालिबान की पकड़ मजबूत होती जा रही है. यहां तालिबान ने 50 से ज्यादा जिलों पर कब्जा कर लिया है. अमेरिकी सेना की वापसी के बीच तालिबान ने इन इलाकों को नियंत्रण में ले लिया है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच जारी संघर्ष को देखते हुए कई देशों ने वहां अपने कॉन्सुलेट को बंद कर दिया है. भारत ने भी अफगानिस्तान में कांधार स्थित वाणिज्यिक दूतावास से अपने स्टाफ को वापस बुला लिया है. आइए जानते हैं अफगानिस्तान के बारे में ये खास बातें, कैसा रहा है भारत से रिश्ता...
भारत के मित्र देशों में गिने जाने वाले अफगानिस्तान के बारे में कई पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं हैं. आज के अफगानिस्तान का मानचित्र 19वीं सदी के अन्त में तय हुआ था. इतिहास के तथ्यों को मानें तो 1700 ई. से पहले दुनिया के नक्शे पर इस देश का कोई वजूद नहीं था. फिर जब 328 ईसा पूर्व में सिकन्दर का आक्रमण हुआ, वहां फारस के हखामनी शाहों का शासन था. इसके बाद ग्रेको-बैक्ट्रियन शासन में यहां बौद्ध धर्म लोकप्रिय हुआ. फिर ईरान के पार्थियन और भारतीय शकों के बीच बंटने के बाद अफगानिस्तान के आज के भूभाग पर सासानी शासन आया.
फिर फारस पर इस्लामी फतह का समय कई साम्राज्यों का रहा. यहां पहले बगदाद स्थित अब्बासी खिलाफत फिर खोरासान में केन्द्रित सामानी साम्राज्य और उसके बाद गजना के शासक. फिर यहां गौरी साम्राज्य का अंग बन गया. मध्यकाल में कई अफगान शासकों ने दिल्ली की सत्ता पर अधिकार किया या करने का प्रयत्न किया जिनमें लोदी वंश का नाम प्रमुख है. इसके अलावा भी कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अफगान शाहों की मदद से भारत पर आक्रमण किया था जिसमें बाबर, नादिर शाह तथा अहमद शाह अब्दाली शामिल है. उस दौर में अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अंग थे.
अफगानिस्तान और भारत के रिश्तों की बात करें तो एक दूसरे के पड़ोसी होने के साथ साथ ये दो प्रमुख दक्षिण एशियाई देश हैं. यही नहीं ये दोनों देश दक्षिण एशियाई क्षेत्रिय सहयोग संगठन (दक्षेस) के भी सदस्य हैं. इन दोनों देशों के बीच काफी समय से गहरे संबंध रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में अफगानिस्तान के गांधार जो वर्तमान समय में कंधार है, की राजकुमारी का विवाह हस्तिनापुर (वर्तमान दिल्ली) के राजा धृतराष्ट्र से हुआ था.
21वीं सदी में तालिबान के पतन के बाद दोनों देशों के संबंध फिर से काफी मजबूत हो गए थे. लेकिन एक बार फिर अफगानिस्तान में तालिबान के मजबूत होने से दुनिया के दूसरे देशों से रिश्ता बिगड़ रहा है. इतिहास के दूसरे पहलू को देखें तो चार अक्टूबर 2011 को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई की भारत यात्रा के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हुई बैठक में सामरिक मामले, खनिज संपदा की साझेदारी और तेल और गैस की खोज पर साझेदारी संबंधी तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे.
भारत और अफगानिस्तान का संबंध काफी मित्रता और भाईचारे वाला है. भारत ने अफगानिस्तान के साथ कई प्रकार के विकासीय समझौते किए हैं, इसलिए भारत और अफगानिस्तान दोनो एक दूसरे का हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंच पर समर्थन करते हैं. बता दें कि साल 1919 में अफगानिस्तान ने विदेशी ताकतों से एक बार फिर स्वतंत्रता पाई. आधुनिक काल में 1933-1973 के बीच का समय यहां का सबसे अधिक व्यवस्थित काल माना जाता रहा है. ये वो वक्त था जब ज़ाहिर शाह का शासन था, पर पहले उसके जीजा और बाद में कम्युनिस्ट पार्टी के सत्तापलट के कारण देश में फिर से अस्थिरता आ गई.
सोवियत सेना ने कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग के लिए देश में कदम रखा और मुजाहिदीन ने सोवियत सेनाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और बाद में अमेरिका तथा पाकिस्तान के सहयोग से सोवियतों को वापस जाना पड़ा. 11 सितम्बर 2001 के हमले में मुजाहिदीन के सहयोग होने की खबर के बाद अमेरिका ने देश के अधिकांश हिस्से पर सत्तारूढ़ मुजाहिदीन (तालिबान), जिसको कभी अमेरिका ने सोवियत सेनाओं के खिलाफ लड़ने में हथियारों से सहयोग दिया था, के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.
भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों को लेकर अब जैसे हालात बन रहे हैं, उसे लेकर पाकिस्तान भी कई तरह के बयान दे रहा है. पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख रशीद ने रविवार को कहा कि अफगानिस्तान में भारत को भारी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है और अपने लोगों को वहां से बुलाने के अलावा भारत के पास कोई और विकल्प नहीं बचा था. मौजूदा हालात को देखते हुए अभी दोनों देशों के रिश्तों को लेकर बहुत कुछ कहा जा नहीं सकता.