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इतिहास

अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी ये 10 कविताएं

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 1/11

एक सुलझे राजनेता, प्रखर वक्ता और बेहतरीन कवि अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर 1924 में जन्मे थे. भारत के दसवें प्रधानमंत्री रहे अटल जी को भारत रत्न भी दिया जा चुका है. आज उनकी जयंती पर आइए पढ़ते हैं उनकी ये कविताएं जो जीवन पर हर कदम नई सीख देती हैं. 

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 2/11

इस कविता पर बजीं खूब तालियां, लोगों को राह भी दिखाती है ये कविता, पढ़ें 

शीर्षक- कदम मिलाकर चलना होगा 
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों से हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
 
हास्य-रुदन में, तूफानों में,
अमर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
 
उजियारे में, अंधकार में,
कल कछार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, 
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को दलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
सम्मुख फैला अमर ध्‍येय पथ,
प्रगति चिरन्तन कैसा इति अथ,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
 
कुश कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वञ्चित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुवन,
पर-ह‍ति अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 3/11

अटल बिहारी बाजपेयी की गीत नया गाता हूं, शीर्षक से लिखी कविता सोच को बदलने की ताकत रखती है, ये कविता दो भागों में लिखी गई. यहां पढ़ें पूरी कविता... 

-पहली अनुभूति

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं 
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

-दूसरी अनुभूति

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं

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Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 4/11

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय 

मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार
डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार
रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधार

 फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं
यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर
पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पीकर
अधरों की प्यास बुझाई है, पी कर मैंने वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात्, जिसको पल भर में ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मैं नर, नारायण, नीलकंठ बन गया न इस में कुछ संशय
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान
मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?
शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन देकर
विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर

यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उंचे स्वर से 'हिन्दू की जय' तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय
दुनिया के वीराने पथ पर जब-जब नर ने खाई ठोकर
दो आंसू शेष बचा पाया जब-जब मानव सब कुछ खोकर
मैं आया तभी द्रवित हो कर, मैं आया ज्ञानदीप ले कर
भूला-भटका मानव पथ पर ‍चल निकला सोते से जग कर

पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल
मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल
जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय

मैं ‍वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार
अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाजार?
क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर?
जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर
वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूं
यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए?

कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं?
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय
मैं एक बिंदु, परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दू समाज
मेरा-इसका संबंध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैंने पाया तन-मन, इससे मैंने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण

मैं तो समाज की थाती हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 5/11

अटल जी के व्यक्‍तित्व को परिभाषित करती ये कविता भी पढ़ें---

मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूं,
इतनी रुखाई कभी मत देना

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 6/11

ये कविता जो साल 2018 में उनके निधन के बाद कई अखबारों में छपी, टीवी पर भी इस कविता का पाठ टेलीकास्ट किया गया. पढ़ें..... 

शीर्षक- मौत से ठन गई!

ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आजकल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?


 

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 7/11

शीर्षक- क्षमा करो बापू !

क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे
चिताभस्म की चिंगारी से,
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 8/11

ये कविता भी खूब सराही गई... यहां पढ़ें 

कौरव कौन
कौन पांडव
टेढ़ा सवाल है

दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है

धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है

बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है 

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 9/11

दूध में दरार पड़ गई

खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया
बंट गए शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार गड़ गई
दूध में दरार पड़ गई
 खेतों में बारूदी गंध,
टूट गए नानक के छन्द
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी वितस्ता है,
वसंत में बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं गैर,
खुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता
बात बनाएं, बिगड़ गई
दूध में दरार पड़ गई

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Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 10/11

उनकी याद करें

जो बरसों तक सड़े जेल में, उनकी याद करें
जो फांसी पर चढ़े खेल में, उनकी याद करें
याद करें काला पानी को,
अंग्रेजों की मनमानी को,
कोल्हू में जुट तेल पेरते,
सावरकर से बलिदानी को
याद करें बहरे शासन को,
बम से थर्राते आसन को,
भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू
के आत्मोत्सर्ग पावन को
अन्यायी से लड़े,
दया की मत फरियाद करें
उनकी याद करें
बलिदानों की बेला आई,
लोकतंत्र दे रहा दुहाई,
स्वाभिमान से वही जियेगा
जिससे कीमत गई चुकाई
मुक्ति मांगती शक्ति संगठित,
युक्ति सुसंगत, भक्ति अकम्पित,
कृति तेजस्वी, घृति हिमगिरि-सी
मुक्ति माँगती गति अप्रतिहत
अंतिम विजय सुनिश्चित, पथ में
क्यों अवसाद करें?
उनकी याद करें

Atal Bihari Vajpayee Birthday
  • 11/11

ऊंचाई


ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है

 

(साभार- मेरी इक्यावन कविताएं, अटल बिहारी वाजपेयी)

 

 

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