दूर-दूर तक पहाड़, हरियाली और प्रकृति को बाहों में समेटे खड़ा उत्तराखंड का चमोली इलाका अब त्रासदी का दूसरा नाम बन गया है. रविवार को ग्लेशियर टूटने के चलते इस पूरे शहर को बड़ा नुकसान पहुंचा है. इस घटना में कई लोगों के मारे जाने की खबर है तो कई लोग अब भी लापता हैं. जानिए चमोली का पूरा इतिहास..
chamoli.gov.in वेबसाइट के अनुसार गढ़वाल का ये इलाका किलों की भूमि कहलाता है. चमोली 1960 तक जिले से कवर क्षेत्र कुमाऊं के पौड़ी गढ़वाल जिले का हिस्सा था. ये गढ़वाल मार्ग के पूर्वोत्तर के किनारे पर स्थित है और मध्य-हिमालय में प्राचीन हिमालय पर्वत के तीन हिस्सों में से एक बहिरगिरि के रूप में प्राचीन पुस्तकों में वर्णित हिमाच्छन्न इलाके में स्थित है.
आज के गढ़वाल को कभी केदार-खण्ड के नाम से जाना जाता था. पुराणों में केदार-खण्ड को भगवान का निवास कहा गया है. तथ्यों के अनुसार वेद, पुराण, रामायण और महाभारत ये हिंदू शास्त्र केदार-खण्ड में लिखे गए हैं. ऐसा भी विश्वास है कि भगवान गणेश ने व्यास गुफा में वेदों की पहली लिपि लिखी, जो बद्रीनाथ से केवल चार किलोमीटर दूर अंतिम गांव माना में स्थित है.
7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने के बाद कई इलाकों में जलस्तर बढ़ने की खबर आने के बाद एनडीआरएफ और आईएएफ को संयुक्त रूप से बचाव कार्य अभियान का जिम्मा सौंपा गया. इसके बाद आईएएफ की तरफ से तीन हेलिकॉप्टर जिनमें दो Mi-17 और एक ALH ध्रुव को देहरादून में तैनात किया गया. इन पर बाढ़ प्रभावित इलाकों में बचाव कार्य की जिम्मेदारी सौंपी गई.
बर्फ से ढके पर्वतों के बीच मौजूद चमोली जिला बेहद खूबसूरत है. यह अलकनंदा नदी के पास बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है. यहां हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. चमोली की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. पूरे चमोली जिले में कई ऐसे मंदिर हैं जो हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
चमोली मध्य हिमालय के बीच में स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 3,525 वर्ग मील है. यहां के बड़े और छोटे मंदिर इसे और भी भव्य बनाते हैं. यहां स्थित चाती ऐसी जगह है जहां सैलानी रुकते हैं. चाती एक प्रकार की झोपड़ी है जो अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है. अलकनंदा नदी यहां मशहूर है जो तिब्बत की जासकर श्रेणी से निकलती है.
कुछ इतिहासकार और वैज्ञानिक मानते हैं कि यह भूमि “आर्य वंश” की उत्पत्ति है. ऐसा माना जाता है कि लगभग 300 ईसा पूर्व पहले खासा जनजाति ने कश्मीर, नेपाल और कुमाऊं के रास्ते गढ़वाल पर आक्रमण किया. इस आक्रमण से एक संघर्ष बढ़ता गया और बाहरी और स्थानीय लोगों के बीच एक संघर्ष हुआ. उनकी सुरक्षा के लिए मूलभूत रूप से “गढ़ी” नामक छोटे किले बनाए गए, हालांकि ग्लेशियर से इनके नुकसान की खबर नहीं आई है.
बता दें कि आज का चमोली पहले एक तहसील था. फिर 24 फरवरी, 1960 में चमोली को एक नया जिला बनाया गया. अक्टूबर 1997 में चमोली जिले की दो पूरी तहसीलों और दो अन्य खंड (आंशिक रूप से) का रुद्रप्रयाग जिले में विलय हो गया. चमोली को ‘देवों के निवास’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वहां मिथकों को विभिन्न देवताओं और देवी को जोड़ना है. फिलहाल इलाके में बचाव कार्य के लिए सेना, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और भारतीय वायुसेना समेत कई सैन्य बल की तैनाती की गई है.